अफ्रीकी देशों ने महिला खतना को अलविदा कहा
अफ्रीकी महाद्वीप के देशों में महिला खतना यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (Female Genital Mutilation) का लम्बे समय से विरोध हुआ था। आखिरकार अगस्त 2016 में अफ्रीकी संसद ने इस कष्टकारी और भेदभावपूर्ण समाजिक कुरीति पर पाबंदी लगाने का बड़ा समझौता किया।
नाईजीरिया जैसे देशों ने इस कुप्रथा पर नियंत्रण करने और मुक़दमे चलाने की पहल की थी। इस छोटी सी शुरुआत ने बड़ा रूप ले लिया और इस प्रयास को चौतरफा प्रोत्साहन मिल रहा है।
यूनिसेफ (UNICEF) के अनुसार, अंततः यह समझौता हुआ है कि दक्षिण अफ्रीका स्थित अफ्रीकी संसंद विश्व भर में 20 करोड़ महिलाओं को मानसिक यंत्रणा देने वाली इस कुप्रथा को नियमित करेगी, मुक़दमा चलाएगी और अंत में जड़ से खत्म करेगी।
इसकी पूरी जानकारी इस प्रकार है।
महिला खतना : हजारों महिलाओं का ख़ौफनाक दर्द
महिला खतना ऐसी समस्या नहीं है जो केवल अफ्रीका तक सीमित है। भग-शिश्न (Clitoris) को काटकर हटाने की कुरीति लगभग सभी मुस्लिम देशों में प्रचलित रही है।
क़ुर्दिश समुदाय के अलावा यह अफ़ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान, ब्रुनेई, मलेशिया और इंडोनेशिया में भी प्रचलित है। ख़ास बात यह है कि इन देशों में एक बहुत दर्दनाक तरीका अमल में लाया जाता है।
यहां इन्फिबुलेशन (Infibulation) प्रकिया अपनाई जाती है जिसमें भग-शिश्न और लैबिया (भगौष्ठ) को काटकर हटा दिया जाता है।
हम जानते हैं, यह एक ऐसी जंग है जो अभी खत्म नहीं हुई है। हालांकि यह तय है कि अफ्रीका ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। उम्मीद करते हैं कि जल्द ही महिला खतना ख़त्म करने पर बनी सहमति कानून का रूप धारण कर लेगी।
फिर भी, जैसा कि हमने कहा है, यह अनगिनत महिलाओं को मानसिक पीड़ा देने वाली इस ख़ौफनाक कुरीति पर लगाम लगाने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है।
महिला खतना : यह रिवाज़ नहीं बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन है
महिला खतना की कुप्रथा के कारण लड़कियों को छोटी उम्र में ही असहाय पीड़ा से गुजरना पड़ता है।
- अक्सर कहा जाता है कि इसकी शुरुआत प्राचीन मिस्र में हुई थी। हालांकि यह कुप्रथा एशिया, यूरोप, ओसीनिया और यहां तक कि अमेरिका में अलग-अलग रूपों में पाई जाती रही है।
- इसलिए भले ही यह आज मुस्लिम दुनिया से ज्यादा करीबी रूप से जुड़ी है लेकिन भूतकाल में यह जीवात्मवादी संस्कृतियों, इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म से भी जुड़ी रही है।
- बावजूद इसके आज भी यह ख़ौफनाक कुकृत्य किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा मक़सद महिलाओं को सहवास के आनंद के एहसास से महरूम रखना है।
- ख़ास बात यह है कि जिस प्रकार अंग-भंग किया जाता है, वह तरीका सदियों बाद भी नहीं बदला है। काँच, चाकू और रेज़र ब्लेड का इस्तेमाल करके भग-शिश्न को काटकर हटाया जाता है।
स्वच्छता का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता है। नतीजतन संक्रमण का ख़तरा बहुत बढ़ जाता है। इस कुप्रथा के कारण अनेकों लड़कियां अपनी जान गंवा चुकी हैं।
इन बातों से यह साफ़ है कि यह कोई धार्मिक रिवाज़ नहीं बल्कि मानवाधिकाओं का उल्लंघन है। यह एक समझ से परे और बर्बर कुकृत्य है जिसकी पीड़ा करोड़ों लड़कियों को पांच वर्ष की होने से पहले ही भुगतनी पड़ती है।
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समझौता बना उम्मीद की एक किरण
पूरे अफ्रीका महाद्वीप ने महिला खतना को ‘ना’ कहा है और दुनिया भर में यह ख़बर मुखरता से पहुंची है। आइए इसके बारे में और जानते हैं।
- यह समझौता कन्वेंशन फॉर द एलिमिनेशन ऑफ आल फॉर्म्स ऑफ डिक्रिमिनेशन अगेंस्ट वीमेन (CEDAW) और अफ्रीका महाद्वीप के विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद हुआ था।
- इन्हें यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNPF) का भी सहयोग मिला।
- समझौैते के तहत कार्ययोजना (प्लान ऑफ एक्शन) पर सहमति बनी।
- अफ्रीकी संसद के 250 हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा योजना की औपचारिक प्रक्रिया की शुरुआत की बात तय की गयी।
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय और स्थानीय अथॉरिटीज के साथ एक समन्वय प्रणाली तैयार करना है। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य विभाग परिवारों से एक ऐसे दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवाएगा जो यह इंगित करेगा कि वे अपनी बेटियों के जननांग विक्षत नहीं करेंगे।
- यह कुप्रथा प्रमुख रूप से (90%) मिस्र, सूडान, इरिट्रिया, जिबूती, इथियोपिया और सोमालिया में प्रचलित है। समझौते का मुख्य उद्देश्य लोगों की मानसिकता बदलना और जागरूकता का स्तर बढ़ाना है।
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जंग जीतना अभी बाकी है
इस समझौते का उद्देश्य नाईजीरिया जैसी उपलब्धि हासिल करना है। हालांकि इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश यह जानते हैं कि यह कितनी मुश्किल चुनौती है।
कुछ देशों, जैसे कि गिनिया में ‘ना’ कहने के बाद भी महिला खतना की कुप्रथा जारी है। उनके ऐसा करने के पीछे कई स्पष्ट कारण हैं।
- कई महिलाएं और पुरुष यह मानते हैं कि अपने समुदाय से तालमेल बिठाने के लिए यह कुप्रथा अपनाना ज़रूरी है।
- इससे एक जटिल सामाजिक सच्चाई उजागर होती है जो कि समाज में लंबे समय से पैठ बनाए हुए है।
इसके बावजूद मानवतावादी संगठनों की भाषा में मानसिकता में बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। यह बदलाव इतना तेज़ है कि कई लोगों को विश्वास है कि कुछ ही दशकों में महिला खतना पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
हम उम्मीद करेंगे कि ऐसा ही होगा।