अपने बच्चों को सपने देखना सिखायें, डरना नहीं
अपने बच्चों को सपने देखना सिखाइये। इसका यह मतलब नहीं है कि उनके पैर जमीन पर ही न टिकें, वे जीवन को निष्पक्षता और जिम्मेदारी के साथ न देखें।
इसका का मतलब यह है कि उन्हें उन सपने देखने की इजाजत दी जाए जिन्हें वे पाना चाहते हैं। अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ जिससे वे अपनी सीमाओं की रचना खुद करने के लिए आजादी का अनुभव करें।
जिस परवरिश में डर मौजूद रहता है वह पहले ही असुरक्षा और अनिश्चयता की भावना पैदा करता है। इससे बच्चे के दिल और पैरों में जंजीरें पड़ जाती हैं।
डर सिर्फ दर्द और घाव देता है, शिक्षा कतई नहीं
यह सच है, हम पेडागॉगी (pedagogy) या शिशु-मनोविज्ञान की शब्दावलियों में माहिर नहीं हैं। हम सिर्फ यही जानते हैं कि हरेक बच्चे की एक जरूरत होती है। उस जरूरत को पूरा करने के लिए दिल से दी गई इस चीज से बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता। यह चीज है, उनसे नजदीकी बनाए रखना। एक अनोखा मार्गदर्शक बनकर अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ : ऐसा गाइड जो उनकी खुशियों में निवेश करना चाहता है, डर में बिल्कुल नहीं।
कैसे अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ, इसके लिए आज इस दिलचस्प विषय पर हम गहराई से नज़र डालना चाहते हैं : “सपनों” की शिक्षा देने का मूल्य।
अपने बच्चों का खयाल रखिए, वे नाजुक हैं, और यही वह चीज है जिससे सपने बनते हैं
किसी बच्चे का दिमाग सीखने, अनुभव करने, बूझने, समझने और सपने देखने के लिए उत्सुक रहता है। उनका दिमागी लचीलापन हैरतअंगेज है। और यह ऐसा ही बना रहेगा जब तक वे चार या पाँच वर्ष के नहीं हो जाते।
इस शुरुआती बचपन में जो कुछ भी होता है वह उनके दिमाग पर एक स्थायी छाप छोड़ता है। इसलिए इस समय के दौरान यह बहुत ही जरूरी है कि आप उस बंधन का खयाल रखें। एक स्वस्थ और अनोखा लगाव पैदा करें जिससे आपका बच्चे को महसूस हो कि उससे प्यार किया जा रहा है और वह सुरक्षित है। फिर अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ।
हमने बच्चों के बारे में पहले जो कहा है, शायद उसपर आपका ध्यान गया है : क्या बच्चे किसी नाजुक मिट्टी से बने हैं? एक तरह से यह सही है। इसके कारण नीचे दिए गए हैं:
- बच्चे के जीवन के पहले अनुभवों का असर उसके भविष्य का विकास निर्धारित कर सकता है।
- उदाहरण के लिए, जिस बच्चे के रोने पर ध्यान नहीं दिया गया है, वह बड़ा हो कर ज्यादा तनावग्रस्त हो सकता है।
- जिस बच्चे को गोद में नहीं लिया गया हो, सीने से नहीं लगाया गया हो या जिसे माता या पिता की प्यार भरी छुअन महसूस न हुई हो वह कभी भी उस बच्चे के बराबर न्यूरल कनेक्शन नहीं बना पाएगा जिसे लगातार ध्यान और स्पर्श मिलता रहा है।
आप जितना सोचते हैं, बच्चे उससे भी ज्यादा नाजुक होते हैं। वे दुनिया के मायने उस उसकाव से लगाते हैं, जो उन्हें मिलता है। इसलिए इस मामले में बहुत सावधान और बुद्धिमान होना इतनी अहमियत रखता है।
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सकारात्मक मजबूती, छलावा और सपने
बच्चों को सपने देखना सिखाने में बहुत ज्यादा समय, धीरज और अभिलाषा-भरी सोच की जरूरत होती है। अक्सर मन में कुछ संदेह पनपने लगते हैं।
क्या मैं एक अच्छी माँ बन सकूँगी? क्या मैं अपने बच्चे के लिए एक अच्छा पिता बन सकूँगा?
इन प्रश्नों पर ज्यादा मगजमारी मत कीजिए। कभी-कभी खुद अपनी मनोवृत्तियों से मार्गदर्शन लेने वाले माता-पिता हमेशा के लिए सबसे सफल बन जाते हैं।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनकी मनोवृत्तियों को प्रेम से मार्गदर्शन मिलता है। इसके साथ-साथ उनका बच्चे के साथ प्यार भरा अंतरंग संपर्क होता है जिसे दूसरा कोई भी नहीं समझ सकता।
अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ, डर के बग़ैर
- डर के बग़ैर शिक्षा दें। जिस बच्चे ने चलना, बोलना और वातावरण से निपटना शुरू कर दिया है वह पहले ही दुनिया के लिए खुल चुका है। उसकी प्राथमिक जरूरत उन हाथों की सुरक्षा है जो उसकी देखभाल करते हैं, उन शब्दों की है जो उसे खोजने, जानने, खेलने और मज़े करने के लिए बढ़ावा देते हैं।
- किसी बच्चे का जीवन बहुत हद तक एक खेल जैसा होना चाहिए। यह एक उपाय है, जो उनके आगे बढ़ने के साथ-साथ उनकी असलियत को नया रूप देता है। इन लमहों को प्रोत्साहित कीजिए और शेयर कीजिए।
- खिलौनो और किताबों के साथ सपनों की रचना कीजिए। गलियों में दौड़ते हुए, मिट्टी और कीचड़ में हाथ मैले करते हुए फूल चुनिए।
- आप अपने बच्चों के साथ जितना अनुभव करेंगे, जितनी बातचीत करेंगे, उनमें उतने ही सपनों का संचार करेंगे। इस तरह अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ। यदि आप “तंग मत करो, अभी नहीं,” “अभी मेरे पास समय नहीं है,” “तुम हमेशा कोई बकवास लेकर मेरे पास चले आते हो…” जैसी बातों से केवल अवरोध खड़े करते हैं तो उनकी जिंदगी में चुप्पी छा जाती है।
आखिरकार, वह बच्चा इस डर के साथ बड़ा होगा कि उसकी कोई अहमियत नहीं है।
आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। आप अपने बच्चे को जो सबसे बढ़िया उपहार दे सकते हैं उसका नाम है, “समय।”
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अपने बच्चे को समझिए और डर का सामना करने में उसकी मदद कीजिए
आपको इस पर जरूर सोचना चाहिए। किसी बच्चे का जीवन बहुत ही जटिल होता है। हालांकि, आप हर पहलू और हर ब्यौरे पर ध्यान देते हैं, माता-पिता के रूप में उनके जीवन के हर पहलू नजर रखना असंभव है।
- जब वे स्कूल जाना शुरू करते हैं तो उन्हें डराया-धमकाया जा सकता है। इससे उन्हें कुछ डर और चिंताएँ सता सकती हैं। इस ओर से सतर्क रहना जरूरी है।
- उनका दिन कैसा गुजरा, इसके बारे में अपने बच्चे से बातें करने के लिए कुछ समय निकालने में बिल्कुल झिझक न करें।
- उदाहरण के लिए, इससे पहले कि वे बिस्तर पर जाएँ, बग़ैर अपनी राय दिए उनके साथ बातचीत कीजिए। इसमें अपनी मनोवृत्ति का इस्तेमाल कीजिए और उन्हें एक ऐसा स्पेस दीजिए जहाँ से वे मन में जो भी आए उसे खुलकर बोल सकें।
इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता कि वे 4 वर्ष के हैं या 14 के। उन्हें हमेशा आपके मदद की जरूरत है। इसके साथ-साथ अपने बच्चों को सपने देखना सिखाएँ और उनके लिए आपको वहाँ मौजूद होना चाहिए।
Mundkur, N. (2005). Neuroplasticity in children. In Indian Journal of Pediatrics. https://doi.org/10.1007/BF02731115