ऑस्टियोआर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और आर्थराइटिस : तीनों में क्या अंतर हैं?
आर्थराइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस तीनों अलग-अलग चीजें हैं। इनमें से किसी भी बीमारी से पीड़ित कोई व्यक्ति यह अच्छी तरह से जानता है। फिर भी, बाकी लोगों के लिये इन शब्दों से भ्रमित होना आसान है। ये सभी आपकी हड्डियों से संबंधित हैं, लेकिन इनमें से हर बीमारी के अपने ख़ास कारण है और उनके ट्रीटमेंट के तरीके भी अलग हैं।
आज की आबादी में ये सभी बीमारियाँ बहुत आम हैं। अर्थराइटिस, ऑस्टियोअर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस में एक समानता है, कि ये तीनों ही पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं। इसलिए महिलाओं को समय रहते उनका पता लगाने के लिए लगातार जांच करवाते रहना ज़रूरी है। यहाँ इसके बारे में और जानिए।
सबसे पहले, ये तीनों डिजेनरेटिव बीमारियाँ हैं, जिनका कोई इलाज नहीं है। इसका मतलब यह है कि उनसे छुटकारा पाने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। हालांकि कुछ ऐसी दवाइयाँ ज़रूर हैं जो इनके लक्षणों से मुकाबला करने में आपकी मदद करती हैं। इसके अलावा, सूजन, सुन्नता (numbness) या दर्द को कम करने में मदद करने के लिए कुछ इलाज मौजूद हैं।
आज के आर्टिकल में हम इन तीनों स्थितियों के बीच के अंतर के बारे में समझाना चाहते हैं। बीमारी की सटीक पहचान करना, इस स्थिति का सही इलाज करने और अपने दर्द को कम करने का तरीका जानने का पहला कदम है।
ऑस्टियोआर्थराइटिस सबसे आम समस्या (Osteoarthritis, the most common)
रूमैटिक (rheumatic) बीमारियों में ऑस्टियोअर्थराइटिस सबसे आम बीमारी है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह आपके जोड़ों के कार्टिलेज को ख़त्म कर देता है। इससे बहुत ज्यादा दर्द और तकलीफ़ होती है।
इसके अलावा, याद रखें कि कार्टिलेज एक टिशू है जो आपकी हड्डियों के सिरों पर लगा होता है। यह उन्हें एक दूसरे से टकराये बिना घूमने में मदद करता है। जब आपका कार्टिलेज अपनी मज़बूती या गुणवत्ता खो देता है, तो इससे हड्डियों में घर्षण, दर्द और सूजन की समस्या हो सकती है।
ऑस्टियोअर्थराइटिस कूल्हों (hips), घुटनों और टखनों (हर वह जोड़ जो शरीर का वजन उठाता है) में बहुत आम है। दुर्भाग्य से, जैसा कि हमने पहले भी बताया है, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कोई इलाज नहीं है। आप इस बीमारी के बढ़ने की रफ़्तार को कम कर सकते हैं, लेकिन आप इसे रोक नहीं सकते।
अगर आपको ऑस्टियोअर्थराइटिस नहीं है और आप इसे होने से रोकना चाहते हैं, तो छोटे और हल्के खेलों का अभ्यास करना और वजन बढ़ने से रोकना एक अच्छा विचार है। आपको विटामिन C से भरपूर संतुलित आहार भी लेना होगा, क्योंकि यह कोलेजन के निर्माण में मदद करता है। कोलेजन बढ़ने से आपका कार्टलेज ज्यादा स्वस्थ और मजबूत बनेगा।
फिर भी, अगर आप पहले से ही ऑस्टियोअर्थराइटिस की समस्या से पीड़ित हैं, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि कभी भी विटामिन C या मिनरल जैसे कि कैल्शियम और मैग्नीशियम, सिलिकॉन और सल्फर की खुराक लेना न भूलें। स्थिति को ज्यादा बढ़ने से रोकने के लिए अपने डॉक्टर के संपर्क में बने रहें।
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आर्थराइटिस (गठिया), उम्र से संबंधित नहीं है
गठिया उम्र बढ़ने के साथ नहीं होती है। आप बड़े हो रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि यह भी आपके शरीर में विकसित हो रही है। इसलिए अपनी हड्डियों के दर्द को लेकर सचेत रहना बहुत ज़रूरी है।
अर्थराइटिस के कई अलग-अलग टाइप हैं। यह बीमारी बच्चों, एक्टिव लाइफस्टाइल वाले लोगों, एथलिटों और काम के दौरान बहुत तेज़ एक्टिविटी करने वाले लोगों में दिखाई दे सकती है। समय-समय पर अपनी हड्डियों के स्वास्थ्य की जांच करवाते रहना ज़रूरी है, क्योंकि स्वस्थ जीवनशैली के बावजूद आपको गठिया हो सकती है।
अर्थराइटिस की कई वजहें हो सकती हैं:
- इम्यून सिस्टम: आपका इम्यून सिस्टम आपकी साइनोवियल झिल्ली (ऊतक की परत जो आपके जोड़ों के अंदरूनी हिस्सों को सही स्थिति में बनाए रखती है) पर हमला कर सकती है। ऐसे में, आपके डॉक्टर के लिये उस बीमारी की पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण होता है जो आपकी हड्डियों को नुकसान पहुंचाती है।
- चोट के कारण: यह तब होता है जब आपके साथ कोई दुर्घटना हुई हो या जब आप लगातार नीचे बैठे रहते हों या अपनी हड्डियों पर ज़ोर डालते रहे हों।
- इसके अलावा, यूरिक एसिड से बनने वाला क्रिस्टल भी अर्थराइटिस का कारण हो सकता है। इसे रोकने के लिए एक स्वस्थ डाइट लेना ज़रूरी है।
अर्थराइटिसल गातार और बहुत तेज़ दर्द के साथ होती है। जबकि ऑस्टियोअर्थराइटिस से पीड़ित लोगों को उस समय राहत महसूस होगी जब वे आराम पर होंगे। अर्थराइटिस के दर्द को दूर नहीं किया जा सकता है।
अर्थराइटिस से बचने के लिए ऐसी डाइट लें जो कैल्शियम, ओमेगा -3 फैटी एसिड और ओमेगा -6 फैटी एसिड से भरपूर हो। इसके अलावा मीडियम गति की फिजिकल एक्टिविटी करें। बाहर समय बितायें, विटामिन D प्राप्त करने के लिए भरपूर धूप लें। ये छोटे-छोटे बदलाव आपको स्वस्थ आदतें बनाने में मदद करेंगे, आपके शरीर को पोषण देंगे और आपको बेहतर महसूस करने में मदद करेंगे।
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ऑस्टियोपोरोसिस महिलाओं में बहुत आम है
ऑस्टियोपोरोसिस एक सिस्टमिक, क्रोनिक बीमारी है जो हड्डियों को प्रभावित करती है। आपको अपने रोग की जानकारी हुये बिना कई साल गुज़र सकते हैं, जब तक कि अचानक बिना किसी कारण के आपकी हड्डी में कोई फ्रैक्चर न हो। इसका मतलब है, आपकी हड्डियाँ पिछले कुछ समय से अपनी मज़बूती खो रही हैं।
दूसरे टिशू की तरह आपकी हड्डियाँ भी लगातार खुद की मरम्मत करती रहती हैं। यह उन्हें मजबूत और स्वस्थ रहने में मदद करता है। हालाँकि कई बार यह प्रक्रिया रुक सकती है। उदाहरण के लिए मेनोपॉज (menopause) के साथ आपकी हड्डियाँ कमजोर हो सकती हैं। इसके अलावा, उम्र बढ़ने के साथ यह प्रक्रिया धीमी और कम असरदार हो जाती है।
दूसरे शब्दों में, समय बढ़ने के साथ-साथ आपके शरीर में नए मजबूत टिशू बनने बंद हो जाते हैं। समय के साथ आपकी हड्डियों का घनत्व भी कम हो जाता है, जिससे हड्डियों के टूटने-फूटने का ख़तरा बढ़ता है। ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियाँ अधिक छेददार हो जाती हैं, खासकर कलाई, कूल्हों और कशेरुक (vertebrae) के आसपास। यह उन्हें बहुत कमजोर बनाता है और चोट खाने की संभावना बढाता है।
इस बीमारी के इलाज में कैल्शियम और विटामिन C से भरपूर सप्लीमेंट आपकी मदद करेंगे। अगर आपका डॉक्टर सलाह दे, तो कैल्शियम को बोन टिश्यू के अन्दर डालने और इसे फिर से नया जीवन देने में मदद करने के लिए बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स बहुत मददगार होते हैं।
जानने वाली बात यह है कि, पिछले कुछ सालों से बाजार में कुछ ऐसी दवाएँ उपलब्ध हैं जो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से बनाई गई हैं। ये सुइयों की मदद से शरीर में डाली जाती हैं और इस समस्या से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में आश्चर्यजनक रूप से सुधार कर सकती हैं।
भले ही इन बीमारियों में आपस में बहुत स्पष्ट अंतर हो, फिर भी अगर आपको कोई परेशानी महसूस हो तो अपने डॉक्टर से मिलने में संकोच न करें। वह सुनिश्चित करेंगे कि हड्डियों में क्या क्या चल रहा है। वे इससे निपटने के तरीकों के बारे में आपको सही सुझाव देंगे।
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