बच्चों में मोटापा : एक बड़ी समस्या

 बचपन का मोटापा भविष्य में होने वाली कई स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा हुआ है, जैसे कि ऑबेसिटी यानी मोटापा और हाई कोलेस्ट्रॉल। ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें!
बच्चों में मोटापा : एक बड़ी समस्या

आखिरी अपडेट: 25 जनवरी, 2020

बच्चों में मोटापा सबसे गंभीर पब्लिक हेल्थ प्रॉब्लम से एक है। यह एक विश्वव्यापी घटना है और इसकी तादाद धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। यह ऐसी स्थिति है जो अमेरिका जैसे देशों से ज्यादा जुड़ी है। हालाँकि यह छोटे और निम्न-आय वाले देशों में इधर खूब बढ़ी है। दुर्भाग्य से अनुमान लगाया गया कि पाँच साल से कम उम्र के लगभग 42 मिलियन बच्चे मोटापे के शिकार हैं।

मोटापा एक बीमारी है जो न सिर्फ ब्यूटी पर नेगेटिव असर डालता है। दरअसल इसके गंभीर हेल्थ प्रॉब्लम हैं। उदाहरण के लिए जो बच्चे इसके शिकार होते हैं उनमें ज़िन्दगी भर डायबिटीज या हार्ट प्रॉब्लम से पीड़ित होने की ज्यादा संभावना होती है।

हम जिस समाज में रहते हैं उसमें बच्चों के लिए स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखना और अच्छी डाइट पर अमल करना मुश्किल लगता है।

हालाँकि हमें इस समस्या को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। इस लेख में हम आपको वह सब कुछ बताएंगे जो आपको बच्चों में मोटापा के बारे में जानना चाहिए।

बच्चों में मोटापा क्या है?

बच्चों में मोटापा जीवन के इस स्टेज में सबसे आम न्यूट्रीशन से जुड़ी गड़बड़ी है। इसमें शरीर में अत्यधिक इकठ्ठा हो जाता है, जो बच्चे के स्वास्थ्य को खतरे में डालता है।

यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें कई फैक्टर शामिल हैं; यह सिर्फ न्यूट्रीशन पर निर्भर नहीं करता है, दरअसल जेनेटिक और फिजिकल एक्टिविटी भी दो अहम निर्धारक हैं। हालांकि, एक खराब डाइट इस बीमारी की अहम कारण है। वर्तमान में ऊँची मात्रा वाले सेचुरेटेड फैट के साथ हाई डेंसिटी एनर्जी फ़ूड इसका कारण हैं।

संक्षेप में बच्चों में मोटापा एक असंतुलित डाइट, सुस्त जीवन शैली, और दूसरे फैक्टर के साथ आनुवांशिकी का एक संयोजन है। जैसा कि हमने ऊपर बताया, यह जानना अहम है कि यह रोग डायबिटीज सहित कई हेल्थ प्रॉब्लम से जुड़ा है।

कैसे पता करें कि बच्चा मोटा है

बच्चों में मोटापा नज़र में नहीं आता है। इसके बजाय, इसकी गणना बॉडी मास इंडेक्स या बीएमआई (Body Mass Index – BMI) नाम के पैरामीटर से की जाती है। बीएमआई वजन को हाईट से जोड़ती है और इसकी गणना वजन (किलोग्राम में) को ऊंचाई के वर्ग (मीटर में) से विभाजित करके की जाती है।

कई टेबल और संदर्भ बीएमआई की तुलना स्टैण्डर्ड मानकों से करते हैं जिससे पता चल सके कि बच्चा मोटापे का शिकार है या नहीं। हालांकि, बच्चों में परसेंटाइल कर्व का इस्तेमाल करना ज्यादा सटीक होता है।

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बचपन में मोटापा : रिस्क फैक्टर

जैसा कि हमने ऊपर बताया यह बीमारी सिर्फ बच्चे की डाइट पर निर्भर नहीं करती है। दरअसल कई फैक्टर इससे जुड़े हैं जैसे कि :

  • जेनेटिक्स : कई स्टडी ने ज्यादा वजन वाले बच्चों से ज्यादा वजन वाले पैरेंट को जोड़ा है, जिसमें कहा गया है कि अगर माता-पिता मोटापे से ग्रस्त हैं, तो बच्चा मोटे होने की संभावना तीन गुना ज्यादा है। हालाँकि यह फर्क करना मुश्किल है कि वजह साझी लाइफस्टाइल या आनुवांशिकी में है।
  • जन्म के समय वजन : वैज्ञानिक 9 पौंड वाले शिशुओं को बचपन के या वयस्क अवस्था के मोटापे से जोड़ते हैं।
  • दिलचस्प बात यह है कि जीवन के पहले वर्ष के दौरान एक बच्चे का ब्रेस्ट फ़ीडिंग करना बचपन में इस बीमारी के कम रिस्क से जुड़ा लगता है।
  • जन्मस्थान : ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में पैदा होने वाला बच्चा ज्यादा एक्टिव लाइफस्टाइल पाता है, और उसमें शहर में बड़े होते बच्होचे के मुकाबले ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी करनी होती है। जाहिर है उस बच्चे में मोटापे का जोखिम कम होता है।

यह स्थिति दूसरे फैक्टर जैसे नींद या परिवार के आर्थिक स्तर से भी जुड़ी है। हालाँकि हमें स्पष्ट होना चाहिए कि इस समस्या का समाधान करने की कुंजी बच्चे की लाइफस्टाइल पर फोकस करना है।

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बच्चों में मोटापा : कैसे कम करें जोखिम

यह बीमारी एक बच्चे के जीवन को प्रभावित कर सकती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आत्म विश्वास और सौंदर्य को प्रभावित करने के अलावा, यह हार्ट और मेटाबोलिज्म से जुड़ी समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।

इसलिए बच्चों को स्वस्थ आहार अपनाने में मदद करने के तरीकों की तलाश करना ज़रूरी है। अगर आप नहीं जानते कि यह कैसे करना है, तो डॉक्टर या न्यूट्रीशन एक्सपर्ट से सलाह लेना सबसे अच्छा है।

साथ ही यह बच्चों के एक्टिव रहने के लिए आदर्श है। स्पोर्ट्स को अपनी रूटीन में शामिल करना पहले स्टेज में से एक होना चाहिए। दरअसल इससे बच्चे को अपने सोशल स्किल को सुधारने में भी मदद मिलेगी।




यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।