सीजेरियन सेक्शन के पहले और बाद में की जाने वाली देखभाल
सीजेरियन सेक्शन एक तरह की सर्जरी होती है। इस सर्जरी के दौरान गर्भवती महिला के पेट में चीरा लगाकर शिशु को बाहर निकाला जाता है। वर्तमान में विशेषज्ञों का मानना है कि योनि के रास्ते किए जाने वाले प्रसव के दौरान होने वाली संभावित जटिलताओं से बचने या उनका समाधान करने के लिए सीजेरियन सेक्शन ही सबसे सुरक्षित उपाय होता है।
यहाँ आपको सीजेरियन सेक्शन और एपीसीटीओटोमी में फर्क पता होना चाहिए। एपीसीटीओटोमी के दौरान महिला के पेरीनियम (मूलाधार) में चीरा लगाकर प्रसव को और भी आसान बना दिया जाता है। लेकिन सीजेरियन सेक्शन में वह चीरा पेल्विस के ऊपर लगाया जाता है।
पहले इस ऑपरेशन का सहारा सिर्फ़ उन्हीं मामलों में लिया जाता था, जहाँ माँ की जान को खतरा था व शिशु अभी भी जीवित था। पर स्वाभाविक जन्म के अव्यावहारिक हो जाने पर डॉक्टरों ने इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
आज सीजेरियन सेक्शन विकसित देशों में सबसे आम प्रास्विक सर्जिकल ऑपरेशन बन चुका है। बीते कुछ सालों में सीजेरियन सेक्शन वाले ऑपरेशन की संख्या में भारी बढ़ोतरी आई है।
1960 के दशक में सिर्फ़ 5% जन्म ही सीजेरियन सेक्शन के माध्यम से होते थे। 90 के दशक में यह आंकड़ा 25% हो चुका था।
महिलाओं को सीजेरियन सेक्शन की ज़रूरत आख़िर कब होती है?
स्त्रीरोग विशेषज्ञों का सुझाव है कि सीजेरियन सेक्शन तब किया जाना चाहिए, जब योनि से किया जाने वाला प्रसव गर्भवती महिला और उसके शिशु के लिए खतरनाक लगे। प्रसव-प्रक्रिया के लंबा और जटिल होने पर कुछ संभावित परेशानियाँ जन्म ले सकती हैं। हो सकता है, गर्भवती महिला का पेल्विस असामान्य हो, वह थक कर चूर हो चुकी हो या फ़िर वह गर्भाशय की विकृतियों की चपेट में आ गई हो।
अगर खतरे की तलवार बच्चे की सिर पर लटक रही हो तो आमतौर पर डॉक्टर सीजेरियन सेक्शन वाली इस सर्जरी का रास्ता ही अपनाते हैं।
प्रीएक्लेम्पसिया या एक्लेम्पसिया जैसी जटिलतायें इस सर्जरी को चुनने का एक और कारण हो सकती हैं। इसके अलावा, कई बार जन्म दे चुकी महिला या फ़िर बच्चे का किसी असामान्य मुद्रा में होना, जैसे कि पेल्विस की तरफ सिर न होकर उसका सिर ऊपर की तरफ होना, जैसे मामलों में भी इस प्रक्रिया का चयन किया जा सकता है।
डॉक्टरों द्वारा सामान्य डिलीवरी के बजाय सीजेरियन सेक्शन करने के लिए ये कारण भी ज़िम्मेदार हो सकते हैं:
- मैक्रोसोमिया
- सिकुड़ा हुआ पेल्विस
- इंट्रायुटेरीन (अंतर्गर्भाशयी) संक्रमण का प्रमाण
- प्रसव-प्रक्रिया को शुरू करने में नाकामयाबी
यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि सीजेरियन सेक्शन के बारे में अलग-अलग विशेषज्ञों की अलग-अलग राय होती है।
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सीजेरियन सेक्शन से पहले की जाने वाली तैयारियां
सीजेरियन सेक्शन करवाने से पहले किसी भी माँ के लिए यह समझ लेना बहुत ज़रूरी होता है कि इस ऑपरेशन से उसे आख़िर क्यों गुज़रना होगा। ऐसे में, उसके डॉक्टर का यह फ़र्ज़ बनता है कि यह बात वह उसे ठीक-ठीक समझाए।
उसके बाद, रोगी को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए डॉक्टर को इस प्रक्रिया को संक्षेप में बयान करना चाहिए। आमतौर पर सीजेरियन सेक्शन वाले सभी ऑपरेशनों की प्रक्रिया एक-जैसी ही होती है।
दूसरी तरफ, कुछ महिलायें एक नियोजित सीजेरियन सेक्शन का अनुरोध करने का फैसला कर लेती हैं। पर यहाँ आपको यह बात समझ लेनी चाहिए कि आपको खुद को योनि से किए जाने वाले प्रसव के लिए तैयार करना चाहिए, क्योंकि सीजेरियन सेक्शन का इस्तेमाल केवल किसी अंतिम उपाय के तौर पर ही किया जाता है। इसीलिए इस प्रक्रिया से जुड़े जोखिमों को आपको ध्यान में रखना चाहिए।
इसके जोखिमों के अलावा, ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर को इस प्रक्रिया के फायदों को भी रोगी के सामने ज़ाहिर कर देना चाहिए। सीजेरियन सेक्शन के ऑपरेशन में संक्रमण जैसी जटिलताओं का खतरा कम होता है।
अपने डॉक्टर के साथ बैठकर अपने सी-सेक्शन की योजना बना लेने का महत्त्व भी कुछ कम नहीं होता। यह ऑपरेशन करवाने से पहले आपको अपने सभी उचित मेडिकल टेस्ट करवा लेने चाहिए।
ऑपरेशन से एक दिन पहले महिला को अच्छी नींद लेने की कोशिश करनी चाहिए। उसे अपनी योनि के बालों को शेव नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से संक्रमण का जोखिम बढ़ सकता है। दूसरी तरफ, अगर रोगी के शरीर में आयरन की कमी हो तो डॉक्टर खान-पान या सप्लीमेंट के रूप में अधिक आयरन का सेवन करने की सलाह भी दे सकता है।
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ऑपरेशन के बाद
ऑपरेशन के बाद महिला को रिकवरी रूम में ले जाया जाता है, जहाँ वह आठ घंटे तक बिस्तर पर आराम करती है। उसके बाद वह अपने बिस्तर या किसी कुर्सी पर उठकर बैठ सकती है।
शुरू-शुरू में बहुत तेज़ दर्द होना एक आम बात होती है। इसके लिए डॉक्टर पेन रिलीवर्स दे देते हैं। उसके बाद वे उस महिला को एक आई.वी देते हैं, क्योंकि सर्जरी के ठीक बाद वह खा-पी नहीं सकती।
आमतौर पर घर जाने से पहले वह महिला अस्पताल में तीन दिन बिताती है। हाँ, चार-छः हफ़्तों के बाद वह एक सामान्य जीवन जीना शुरू कर सकती है।
सी-सेक्शन करवाने के बाद भारी चीज़ें उठाने से परहेज़ करना चाहिए, क्योंकि इससे खून बहने का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी तरफ, रक्तस्त्राव के रुक जाने तक टैम्पोन्स का इस्तेमाल भी नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, यौन संबंधों से भी आपको परहेज़ करना चाहिए। ढेर सारा पानी पीकर खुद को हाइड्रेटेड रखना भी बहुत अहम होता है।
सी-सेक्शन करवाने के बाद अगर आपको बुखार या पेट दर्द होता है तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि ये किसी संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं।
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