सर्वश्रेष्ठ रणनीतिः लड़ाई-झगड़ा होने पर चुप रहें, बाद में शांति से अपनी बात कहें
कभी आपने सोचा है! जब तूफान आता है तो हवा और पानी रौद्र रूप धारण कर लेते हैं। चारों तरफ़ जबरदस्त विनाश होता है और हमारी जान पर बन आती है। कुछ ऐसा ही इंसानों के साथ भी होता है। कभी-कभी आपस में लड़ाई-झगड़ा होने पर, मनमुटाव या मतभेद होने पर हमारा दिल टूट जाता है।
ऐसा लगता है, मुसीबत ने हमें चारों तरफ से घेर लिया है। मानसिक थकान, मनमुटाव और मतभेद हम पर हावी हो जाते हैं। इन हालात में कुछ लोग जल्दबाजी में ऐसी बातें भी कह जाते हैं जिनके लिए बाद में उन्हें पछताना पड़ता है।
हमेशा पूरे जोश लेकिन ठंडे दिमाग से काम करना आसान नहीं होता। बावजूद इसके, हमें यह ध्यान रखना चाहिए, कभी-कभी एक गलती का खामियाजा कई वर्षों तक भुगतना पड़ता है। इसीलिए ऐसे ख़तरनाक समय में ठंडे दिमाग से काम लेना और शांत रहना आपके लिए लाजिमी हो जाता है।
जब चोट सीधे आपका दिल दुखाती है…
हम अक्सर लोगों को कहते-सुनते हैं, ‘आपका दिल टूट गया है’ या फिर ‘आपके अंदर बहुत गुस्सा है’। लेकिन आपको सबसे ज्यादा कष्ट तब होता है, जब लड़ाई-झगड़ा होने पर आपका दिमाग शांत नहीं रहता। मानसिक द्वंद्व आपकी सबसे बड़ी परेशानी बन जाता है।
आइए, इस बारे में विस्तार से समझते हैं।
लड़ाई-झगड़ा होने के दौरान मनोवैज्ञानिक बदलाव
जब लड़ाई-झगड़ा करने से समस्या हल नहीं होती है, जब बहस के दौरान आपको कोई बात परेशान करती है या दुर्भाग्य घेर लेता है, तब आपका दिमाग तुरंत इन्हें एक ‘खतरा’ मान लेता है।
- यानी कोई चीज आपकी आस्था को चोट पहुंचा रही है। आपकी दुनिया उलट-पुलट कर रही है।
- आप बहुत दुखी हैं, क्योंकि जिस व्यक्ति का आप बहुत सम्मान करते हैं वह उन चीज़ों को लेकर भ्रम पैदा कर रहा है जो आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
- आपसी बातचीत के दौरान इस्तेमाल किए गए शब्दों, विचारों और यहां तक कि ख़तरनाक और नफ़रत भरी निगाहों से भी आपको डर लगने लगता है।
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इन हालात को आपका दिमाग ‘खतरा’ समझता है और आपके पैरासिंफैथैटिक सिस्टम को नियंत्रित करके स्वाभाविक प्रतिक्रिया देना शुरू कर देता है। यह आपको अपनी सुरक्षा करने और मुसीबत से बचने के लिए तैयार करता है। जैसेः
- आपके दिल की धड़कन बढ़ जाती है।
- आपको बचाने के लिए तैयार करने के लिए मांसपेशियों को नर्वस मैसेज भेजे जाते हैं। सबसे पहले आप कांपने लगते हैं, आपका पूरा शरीर थरथरा जाता है। आप अपने हाथों, पेट और टांगों में कंपन महसूस कर सकते हैं।
भयंकर गुस्से में आपका दिमाग कुछ सोच-समझ नहीं पाता
जब आपकी किसी से तू-तू, मैं-मैं हो जाती है, आवेश में आकर आप लड़ने-झगड़ते हैं, तो सामने वाले की बात नहीं समझते हैं। उस समय आपका दिमाग केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचता है और शरीर को बचाव के लिए तैयार करता है।
इसी वजह से आप ठंडे दिमाग से सोचने, शांत रहने और स्पष्ट रूप से बोलने में अक्षम हो जाते हैं।
- दरअसल, किसी के साथ तू-तू, मैं-मैं होने पर आपका सुरक्षा तंत्र नाकाम हो जाता है। इस समय आपका वह ‘फिल्टर’ गायब हो जाता है जो आपको कुछ विशेष बातें कहने से रोकता है।
- इस मानसिक द्वंद्व के दौरान आप अपने दिल की भड़ास निकाल देते हैं।
- आपकी हर बात सही होती है लेकिन सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि इस समय कही गई बातें अक्सर नकारात्मक होती हैं। आप एेसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं जिनसे आपका गुस्सा जाहिर होता है और जिन्हें लेकर आप बाद में पछताते रहते हैं।
हो सकता है, शुरू में आपको इस बात का सुकून हो कि आपने अपने दिल की भड़ास निकाल दी। लेकिन अंत में आपको एहसास होता है ये बातें न कही जाती तो ज़्यादा अच्छा रहता।
गुस्सा आए तो चुप रहें, बाद में शांति से अपनी बात कहें
किसी के लिए भी यह रणनीति अपनाना आसान नहीं है। लेकिन अगर आप गुस्सा आने पर चुप रहते हैं और अपनी ऊर्जा स्पष्ट रूप से सोचने-समझने में लगाते हैं तो यह सबसे अच्छी प्रतिक्रिया साबित होगी।
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ऐसा करने के लिए आप नीचे दिए गए तौर-तरीके अपना सकते हैंः
अपनी ‘सुरक्षा की दीवार’ के भीतर रहें
जब आपकी अचानक किसी से बहस हो जाए, आप ख़ुद को मुश्किल हालात में पाएं। जब छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़ा और मनमुटाव होने लगे, तब अपने दिमाग में एक ‘सुरक्षा की दीवार’ की कल्पना करें।
- इस दीवार के पीछे आप एक शांत महल में बैठे हैं। आप चाहें तो इस महल की खिड़कियों से बाहर देख सकते हैं, लोगों की बातें सुन सकते हैं पर वहां आपको परेशान करने वाला कोई नहीं है।
- इस आरामदेह और सुरक्षित स्थान से आप अपने सामने वाले व्यक्ति के मुंह से निकला हर एक शब्द अच्छी तरह सुनते हैं। उसकी आखिरी बात तक। बाद में आप शांति से परिस्थिति का गहराई से विश्लेषण करते हैं।
- जब अपनी बात मनवाने के लिए सामने वाला व्यक्ति आवेश में आकर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दें तो आप थोड़ी बेरुखी दिखाते हुए शांत हो जाएं। आपका रवैया ऐसा होना चाहिए, उसकी बात सुनें और समझें लेकिन उसके चीखने-चिल्लाने और उसकी खरी-खोटी बातों का आप पर असर न पड़े।
लड़ाई-झगड़ा शांत होने के बाद दृढ़ता से रखें अपनी बात
जब झगड़ा ख़त्म हो जाए और कुछ घंटे या दिन बीत जाएं, तब सही समय चुनकर संबंधित व्यक्ति से बात करें। शुरुआत में ही आपको यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि आप फिर से लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहते, तनाव और नहीं बढ़ाना चाहते हैं।
- विश्वास करें या न करें, जब आप सामने वाले व्यक्ति से शांत और संयमित होकर बात करते हैं तो वह चुपचाप आपकी बात ध्यान से सुनता है।
- यही वह समय है जब आप अपनी बात दृढ़ता और गंभीरता के साथ रख सकते हैं। हमेशा बताएं कि आप उस व्यक्ति की बात समझते हैं लेकिन असहमत हैं।
- इस दौरान, “मैं माफ़ी चाहता हूं”, “मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं”, “मैं आपकी बात समझता हूं” जैसे व्यक्तिगत भावनाएं दर्शाने वाले शब्दों का इस्तेमाल करने से भी न चूकें।
- अगर अब भी वह व्यक्ति आपकी बात समझे बिना लड़ाई-झगड़ा करने पर उतारू है या फिर केवल अपनी बात पर अड़ा रहता है तो उससे आगे बातचीत करने का कोई फ़ायदा नहीं होगा।
- सबसे अच्छा यही रहेगा कि आप उससे कुछ दूरी बना लें।
लड़ाई-झगड़ा होने पर भी जब कोई आपकी बात समझने के लिए तैयार न हो तो मनमुटाव दूर करने के लिए कष्ट उठाने की कोई ज़रूरत नहीं हैं। इस संबंध को वहीं खत्म कर देना चाहिए।
Pronk, E. J. (2006). Het recept voor ruzie. Medisch specialisten werken in een emotioneel mijnenveld. Medisch Contact.