8 बातें जो सामाजिक सूझबूझ वाले लोग नहीं करते
सच्ची सामाजिक सूझबूझ आत्मविश्वास और खुद की समझ से ही आती है। इस सूझबूझ के बिना हम दूसरों के साथ परिपक्व बातचीत नहीं कर सकते। सामाजिक सूझबूझ वाले लोग कुछ चीज़ों को इतना बखूबी करते हैं कि दूसरों की नाक में दम कर देने वाली खराब आदतों वाले लोगों से वे कोसों आगे होते हैं।
अब हम आपको ऐसे ही लोगों की कुछ ख़ास आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं। उन्हें पढ़कर आप देखेंगे कि रोज़मर्रा की अपनी ज़िन्दगी में उन्हें अपना लेना कितना आसान होता है।
सामाजिक सूझबूझ वाले लोग कभी किसी की बात नहीं काटते
आमतौर पर देखा जाता है कि सामाजिक सूझबूझ वाले लोग बातचीत करने में काफ़ी अच्छे होते हैं। दूसरों से बहस करने या उनकी बात काटने में उनकी कोई रूची नहीं होती।
अपनी बारी का वे सब्र से इंतज़ार करते हैं। अपनी बात को सामने वाले इंसान पर थोपने की भी उन्हें कोई ज़रूरत महसूस नहीं होती। आख़िर अपने विचारों को लेकर वे इतने आश्वस्त जो होते हैं।
सामाजिक सूझबूझ वाले लोगों को पता होता है कि अपनी राय का मूल्यांकन करने के लिए उसे दूसरों के सामने रखने की कोई ज़रूरत नहीं होती।
वे हमेशा खुद को प्राथमिकता नहीं देते
सामाजिक सूझबूझ वाले लोगों की एक और खासियत यह होती है कि अपनी कीमत उन्हें पता होती है व आगे बढ़कर अपने अंदर सुधार लाते रहने की कोशिश वे लगातार करते रहते हैं।
वे समझते हैं कि रिश्तों की फसल को पनपने के लिए वक़्त और ध्यान, दोनों ही की ज़रूरत होती है। वे न सिर्फ़ अपने दोस्तों, साथी और घरवालों के लिए कई आदतों का एक ढांचा तैयार कर लेते हैं, बल्कि खुद भी उस ढाँचे के दायरे में रहकर बर्ताव करते हैं।
अपनी अहमियत को खोए बगैर भी उन्हें इस बात की बखूबी समझ होती है कि दुनिया उनके इर्द-गिर्द नहीं घूमती। आपकी ज़रूरत के समय आपका साथ निभाने वाले इन लोगों को वक़्त आने पर “न” कहना भी अच्छी तरह आता है।
खुद को सही साबित करने के लिए वे दूसरों को गलत साबित नहीं करते
हमारी भावनात्मक और बौद्धिक सूझबूझ का एक अच्छा पैमाना होता है दूसरों से अपने मनमुटाव की हमारी समझ।
जब अपने विचारों या अपनी राय को ऊपर रखने के लिए हम दूसरों को गलत साबित करने की कोशिश करते हैं तो इसका इकलौता नतीजा यही होता है कि अपनी बात को हमारे सामने रखने से लोग कतराने लगते हैं।
किसी की बात से सहमत हुए बिना भी अपने मन को खुला रखकर दूसरों की बात सुनने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
दूसरों की राय को बदलने की वे कोशिश नहीं करते
सामाजिक सूझबूझ वाले लोगों की यह एक शानदार खूबी होती है। हमारी ही तरह, अन्य लोगों की भी भावनायें होती हैं। उनकी बात को धैर्यपूर्वक सुनते हुए हमें उन्हें भी पूरी इज्ज़त देनी चाहिए।
दूसरों की राय की परिपक्व समझ व अपनी राय को सम्मानपूर्वक रख पाने की काबिलियत आ जाने पर लोगों से हमारा बोलचाल ज़्यादा लाभकारी और शांत हो जाता है।
अपनी बात की अहमियत जताने के लिए दूसरों को नीचा दिखाने की आपको कोई ज़रूरत नहीं होती।
शांत स्वभाव के इन लोगों को अपनी आवाज़ का सही इस्तेमाल करना आता है
ज़िन्दगी की परेशानियों का सामना करने का सबसे अच्छा तरीका होता है अपनी आग्रह-शक्ति का इस्तेमाल करना। आग्रह की ओट में छिपे गुस्से और आक्रामकता से समाधान कम और समस्यायें ज़्यादा पैदा होती हैं।
सामाजिक सूझबूझ वाले लोगों में आत्मविश्वास कूट-कूटकर भरा होता है।
आत्मविश्वास से किसी के बात सुनके अपनी बात रखना और अपने आसपास वाले लोगों से तालमेल बिठाना उन्हें बखूबी आता है।
वे कम आलोचनात्मक होते हैं
बहुत से लोग खुद को “एंटीसोशल” (असामाजिक) कहकर अपने आसपास मौजूद सभी लोगों को लगातार बुरा-भला कहते रहते हैं – खुद को भी।
आमतौर पर सामाजिक सूझबूझ वाले लोगों को इस बात को मानने में कोई परेशानी नहीं होती कि हम सभी में अगर दस खराब बातें होती है, तो कोई एक अच्छी बात भी होती है।
जिन लोगों को दूसरों से तालमेल बनाना आता है, उन्हें अपने व सामने वाले इंसान के बर्ताव में अच्छी बातें खोज निकालना भी आता है।
इसके पीछे हाथ होता है उनके मज़बूत आत्मविश्वास का, जो उन्हें हर स्थिति के सकारात्मक पहलू को देखने की प्रेरणा देता है।
दूसरों की बातों का वे हद से ज़्यादा विश्लेषण नहीं करते
अपने रिश्तों के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा सोचने पर आप उनका मज़ा नहीं ले पाते। इसीलिए अपने रिश्तों को लेकर पूर्वाग्रहों की चपेट में आने से आपको बचना चाहिए।
किसी बात के ख़त्म हो जाने पर उसके बारे में आपको ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए।
लेकिन इस आदत को बिल्कुल चरमसीमा तक ले जाने से भी बचें। बुरी बातों पर ध्यान देने के बजाये अपनी बातचीत के प्रति एक सकारात्मक नज़रिया अपनाएं।
आपके खराब रिश्तों में जान फूंककर ये तरकीब आपको हैरान कर देगी।
उनकी बॉडी लैंग्वेज अच्छी होती है
किसी सामाजिक स्थिति में आपका शरीर बोलने लगता है।
सामाजिक सूझबूझ वाले लोग अपनी शारीरिक भाषा को सकारात्मक रखते हैं।
किसी की आँखों में आँखें डालकर मुस्करा देने पर आप उन्हें यह एहसास दिलाते हैं कि उनके प्रति आपका रवैया दोस्ताना और खुला है। सीधे खड़े होकर आप यह जताते हैं कि आपको अपने ऊपर पूरा भरोसा है।
इंतज़ार करने की जगह वे बात शुरू करना पसंद करते हैं
इस बात का इंतज़ार करना कि कब कोई हमसे संपर्क कर हमसे कुछ करने को कहेगा, वक़्त की बर्बादी होती है। सामाजिक सूझबूझ वाले लोग इस बात से वाकिफ़ होते हैं कि सोशल रिलेशनशिप्स में ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती।
अगर आप किसी को यह बताना चाहते हैं कि वह आपके लिए कितने मायने रखता है तो एक पहल कर उससे बात करने की आपको एक कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने के लिए आपको बस इतना ही तो करना है:
- कॉल या टेक्स्ट्स के माध्यम से उससे संपर्क बनाए रखें
- अपने दोस्तों से मिलने जाएँ
- एक गैट-टुगेदर आयोजित करें
हालांकि कुछ लोगों की सामाजिक सूझबूझ बचपन से ही बाकी लोगों के मुकाबले ज़्यादा विकसित होती है, थोड़ा-सा ध्यान देकर कोई भी इस हुनर को सीख सकता है।
इन छोटी-छोटी आदतों को अपनाना बेहद आसान जो होता है।
- Fragoso-Luzuriaga, Rocío. (2015). Inteligencia emocional y competencias emocionales en educación superior, ¿un mismo concepto?. http://www.scielo.org.mx/scielo.php?script=sci_arttext&pid=S2007-28722015000200006