फेफड़े को मजबूत बनाने के लिए ये नुस्खे महत्वपूर्ण हैं। कारण यह है कि वे श्वसन प्रणाली का हिस्सा हैं।…
क्या होगा अगर आपने बहुत ज्यादा विटामिन D खा लिया है
विटामिन D टॉक्सिसिटी आमतौर पर कोई गंभीर लक्षण नहीं दिखाती और सौभाग्य से आसानी से इसका असर खत्म भी हो सकता है। इस तरह इसका पता चलना आसान नहीं होता। अगर आपको इसके ज्यादा सेवन का संदेह हो तो किसी एक्सपर्ट को दिखाना जरूरी है।

विटामिन का सेवन आपको सेहतमंद, एनर्जेटिक, एक्टिव और जिन्दगी से भरपूर रखने के लिए जरूरी है। हालाँकि जरूरी नहीं कि आपको यह मालूम हो कि इन सप्लीमेंट को संयमित मात्रा में ही लिया जाना चाहिए, क्योंकि विटामिन D जैसे कुछ विटामिन का अधिक सेवन नुकसानदेह हो सकता है।
विटामिन लेना शुरू करने पर यह जांचना जरूरी होता है कि आपको इसकी कितनी जरूरत है और आप जो डेली डोज ले सकते हैं, उसकी सही मात्रा कितनी है। बिना पूर्व जानकारी के या सलाह के, आपको सीधे फार्मेसी में नहीं चले जाना चाहिए और दवा की शीशी नहीं लेनी चाहिए।
याद रखें: कई खाद्यों और ड्रिंक में विटामिन की वह मात्रा होती है जिनकी आपको दिन में जरूरत होती है। इस तरह सप्लीमेंट लेने का हमेशा कोई मतलब नहीं होता और आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
आखिरकार किसी भी चीज की अति नुकसानदेह होती है।
विटामिन D धूप की किरणों से कोलेस्ट्रॉल की सिंथेसिस से बनता है। कुछ लोगों को पर्याप्त धूप मिलती है और वे इस तरह से डाइट लेते है कि उनके शरीर में पूरी मात्रा बनी रहती है।
लेकिन दूसरों में इस पोषक तत्व के कम सेवन के कारण विटामिन सप्लीमेंट की जरूरत होती है। लेकिन बिना मेडिकल प्रेस्क्रिप्शन के इसे लेने में खुराक में गलती हो सकती है।
एक पॉइंट पर यह पॉइजनिंग पैदा कर सकता है। आज हम उस पर एक नज़र डालेंगे।
विटामिन D टॉक्सिसिटी
विटामिन D पानी में नहीं घुलता है, जिससे शरीर के इए इससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए यह जमा हो जाता है। यह पोषक तत्व एक स्टेरॉयड हार्मोन की तरह काम करता है और सेल्स के अंदर घूमता हुआ पाया जाता है।
जब शरीर में इसकी मात्रा ज्यादा होती है, तो जिन अंगों में विटामिन जमा होता है – जैसे प्रोटीन रिसेप्टर्स और कैरियर – इससे भर जाते हैं और सफलतापूर्वक इसके साथ बाइन्ड नहीं होते।
इस कम्पाउंड के शरीर में जाने पर यह आंत में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाता है। यह हाइपरकैल्सेमिया (hypercalcemia) का कारण बनता है। दूसरे प्रभावित स्थान कोमल अंग हैं जैसे कि फेफड़े, किडनी और हृदय।
कुछ छोटी-मोटी स्थितियाँ भी पैदा हो सकती हैं:
- नॉजिया और उल्टी
- कब्ज
- मांसपेशियों की थकान और हड्डियों में दर्द
- एंग्जायटी और डिप्रेशन
- भ्रम
विटामिन D का दैनिक सेवन 4000 आईयू से कम होना चाहिए। हालांकि भोजन या धूप के जरिये इसी ज्यादा मात्रा भी शरीर में जाने पर विटामिन D टॉक्सिसिटी की संभावना बहुत न्यूनतम होती है।
टॉक्सिसिटी के लिए रोगी के खून में इसकी मात्रा 150 ng / ml (375 nmol / l) होनी चाहिए।
सौभाग्य से टॉक्सिसिटी के लगभग सभी मामले रिवार्सिबल हैं। इसके अलावा बहुत कम ही मामले आर्टरी कैल्सिफिकेशन या किडनी फेल्योर का कारण मानते हैं।
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टॉक्सिसिटी के लक्षण
कभी-कभी विटामिन D टॉक्सिसिटी के तत्काल लक्षण नहीं होते हैं। हालाँकि कुछ मामलों में निम्न में से कुछ स्थितियाँ मौजूद हो सकती हैं:
- हाइपर कैल्शेमिया (Hypercalcemia)
- नॉजिया और उल्टी
- कब्ज
- चिंता
- दुर्बलता
- चेतना में बदलाव
- उच्च रक्तचाप
- किडनी की कमजोरी
- बहरापन
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विटामिन D टॉक्सिसिटी को खत्म करने के कदम
- सबसे पहले, आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। आपका डॉक्टर खून में इस तत्व की मात्रा का पता लगाने के लिए जरूरी टेस्ट तय करेगा। डॉक्टर से मिले बिना लैब में नहीं जाना चाहिए।
- यदि आपको एब्नार्मल हाई ब्लड प्रेशर है, तो विटामिन D की खुराक को बंद करें। यहां तक कि रोजाना 10,000 आईयू का सेवन करने पर भी टॉक्सिसिटी का खतरा कम होता है। पर इसका सेवन 4000 से नीचे रखना ही बेहतर है। बच्चों और बुजुर्गों के मामले में रोजाना 700 IU पर्याप्त है।
- आपको पता होना चाहिए कि आप रोजाना विटामिन D का कितना सेवन करते हैं। यदि आपको धूप का पर्याप्त जोखिम है, तो सप्लीमेंट लेना जरूरी नहीं है। आम तौर पर यह सप्लीमेंट उन लोगों के लिए होता है, जो उन जगहों पर रहते हैं, जहां धूप कम रहती है।
- अपने भोजन के सेवन का मूल्यांकन करें। मछली, सेम, फोर्टीफाइड मिल्क या संतरे का रस हर सर्विंग में 600 और 1000 IU तक की मात्रा दे सकते हैं। इसके साथ धूप का थोड़ा सेवन आपके शरीर के लिए पर्याप्त है।
- कैल्शियम से भरपूर सप्लीमेंट या खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना भी जरूरी होता है।
- इस बीच ऐसे प्रोडक्ट का सेवन बढ़ाएं जिनमें सोडियम, साथ ही भरपूर लिक्विड हो।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विटामिन D की अधिकता को उभरने में महीनों और साल भी लग सकते हैं, इसलिए इसका पता लगना कठिन होता है। आपको अपने लक्षणों को दूसरी बीमारियों से अलग करना सीखना होगा और किसी भी बदलाव के लिए तैयार रहना होगा।