रेनल ट्यूबरक्लोसिस : डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट
रेनल ट्यूबरक्लोसिस यानी किडनी की टीबी एक क्रोनिक समस्या है। आम तौर पर इसकी वजह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस ( Mycobacterium tuberculosis) नाम का बैक्टीरिया है। यह दोनों गुर्दे को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे किडनी फेल्योर और यहां तक कि मौत भी हो सकती है।
अक्सर यह फेफड़ों में शुरू होता है और लंग्स टीबी के बहुत से रोगियों में होता है। सीधे संपर्क, खून या लिम्फैटिक सिस्टम के जरिये माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस किडनी तक पहुँच जाता है। पल्मोनरी टीबी के बाद दरसल रेनल ट्यूबरक्लोसिस ही सबसे आम है।
रेनल ट्यूबरक्लोसिस से प्रभावित होने वाले पहले अंग किडनी, एपिडेमिस और प्रोस्टेट हैं। हालांकि यह जननांगों को भी प्रभावित कर सकता है।
रेनल ट्यूबरक्लोसिस के लक्षण (Symptoms of renal tuberculosis)
सबसे आम लक्षणों में से कुछ हैं:
- किडनी में दर्द
- बार-बार और तकलीफ़देह ढंग से पेशाब होना
- मूत्र में खून आना
ज्यादातर मरीजों में ट्यूबरकुलिन ( tuberculin ) की सकारात्मक प्रतिक्रिया होती है। इसके अलावा उनके मूत्र में बेसिलस कोच (bacillus Koch) का टेस्ट पॉजिटिव आता है। पुरुषों में यह आमतौर पर एपिडाईडिमिस से जुड़ा होता है। यह प्रोस्टेटाइटिस (prostatitis) से भी जुड़ा हुआ है जो कि उतना आम नहीं है।
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डायग्नोसिस
रेनल ट्यूबरक्लोसिस की डायग्नोसिस करने के लिए एक्सपर्ट को माइक्रोस्कोप से देखना होगा। इसकी जांच करने के लिए उन्हें कल्चर करना और इसे अलगाना पड़ता है।
माइक्रोबियल डायग्नोसिस
डायग्नोसिस तीन चरणों में होती है:
- एसिड-अल्कोहल रेजिस्टेंट बेसिली का प्रदर्शन
- बैक्टीरिया को अलग करना
- कभी-कभी यह देखने के लिए मरीज कहीं एंटी-ट्यूबरकुलोसिस दवाओं के प्रति संवेदनशील तो नहीं है, एक्सपर्ट को उसका भी टेस्ट करना होता है
पहचाने जाने के लिए इन बैक्टीरिया के मामले में स्पेशल स्टेनिंग टेकनीक की ज़रूरत होती है। क्योंकि उनकी सेल वाल पर ढेर सारे लिपिड होते हैं। इसके अलावा वे बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं। इसलिए एक्सपर्ट को 8 हफ़्ते तक कल्चर करना पड़ता है।
कल्चर की स्टेनिंग करना और माइक्रोस्कोप के नीचे उन्हें देखना सबसे आसान और सबसे तेज़ प्रक्रिया है। दरअसल यह आमतौर पर पहली डायग्नोसिस है।
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मायकोबैक्टीरिया की कल्चर और पहचान
कल्चर मीडिया कई तरह की होती हैं : ठोस, रेडियोमेट्रिक लिक्विड, नॉन-रेडियोमेट्रिक और बाईफेजिक लिक्विड। आजकल सबसे संवेदनशील और सबसे तेज़ ठोस और तरल माध्यम हैं।
सबसे प्रभावी तकनीकें लाइसिस सेंट्रीफ्युजेशन (lysis-centrifugation) और रेडियोमेट्रिक टेकनीक हैं। दरअसल एक्सपर्ट इसका उपयोग एचआईवी के गंभीर मामलों और अज्ञात कारणों से होने वाले बुखार में करते हैं।
नई डायग्नोस्टिक टेकनीक : डीएनए या आरएनए का जीन एम्प्लीफिकेशन (Gene amplification of DNA or RNA)
इन तकनीकों से इसकी डायग्नोसिस बहुत जल्दी होती है। वे कोशिकाओं के कुछ हिस्सों की लाखों प्रतियां बनाते हैं।
इन विट्रो सेंसेटिव स्टडी
इसके अलावा इन विट्रो स्टडी के अलग-अलग तरीके हैं।
पैथोलोजिकल डायग्नोसिस
रोग निदान के लिए माइक्रोस्कोप के नीचे सैम्पल को देखा जाता है। एक्सपर्ट इन नमूनों की बायोप्सी करवाते हैं।
गुर्दे की टीबी का इलाज
इसका इलाज करने के लिए आपको यह निश्चित करना होगा कि मरीज कुछ दवाओं के लिए प्रतिरोधी नहीं है। इसके अलावा अपने ट्रीटमेंट का सख्ती से पालन नहीं करना या इसे पूरी तरह से न करना आपके शरीर में रेजिस्टेंस पैदा कर सकता है।
आपको इसे वापस आने से रोकने के लिए इलाज का पूरा पालन करना होगा। इलाज के लिए अपनी प्रतिक्रिया की निगरानी करने का सबसे अच्छा तरीका बैक्टीरिया का टेस्ट है।
दरसल किडनी टीबी के इलाज के लिए दवाओं के दो ग्रुप हैं। ये ग्रुप इस बात पर आधारित हैं कि वे कितना अच्छा काम करते हैं और उनके साइड इफेक्ट क्या हैं:
शुरुआती मामलों के इलाज के लिए पहली पसंद
- बैक्टीरियासाइड्स : आइसोनियाज़िड (isoniazid), रिफैम्पिसिन (rifampicin)
- बैक्टीरियोस्टेटिक: एथमब्यूटोल
दूसरी पसंदीदा दवाएं : ये कम सक्रिय हैं, और इनके ज्यादा साइड इफेक्ट हैं। डॉक्टर उन्हें विशेष मामलों में या रोग के रेजिस्टेंट रूपों के मामलों में लिखते हैं। हालांकि केवल प्रशिक्षित पेशेवरों को उनका उपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए इन दवाओं में से कुछ हैं:
- केनामाइसिन (Kanamycin)
- एमिकासिन (Amikacin)
रेनल ट्यूबरक्लोसिस की ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट
सबसे आम साइड इफेक्ट लीवर डैमेज (हेपेटोटॉक्सिसिटी) है। दरअसल यह आइसोनियाज़िड और रिफैम्पिसिन का उपयोग करने से हो सकता है।
हल्के साइड इफेक्ट आम हैं। अगर आप इन्हें महसूस करें तो दवा बंद करने की ज़रूरत नहीं है। दूसरी ओर गंभीर साइड इफेक्ट्स का मतलब यह हो सकता है कि आपको दवा लेना बंद करना होगा या अपना इलाज बदलना होगा। हालांकि ये कम समय के ट्रीटमेंट वाले -5% रोगियों में ही होते हैं।
एक्सपर्ट अभी भी गुर्दे की टीबी के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। विकसित और विकासशील देशों में रोगियों के बीच अंतर का कारण भी स्पष्ट नहीं है। वैज्ञानिकों को अभी भी इस बीमारी की गहरी स्टडी करने की ज़रूरत है।
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