आपकी स्पाइन और दूसरे अंगों का आपसी सम्बन्ध

रीढ़ की हड्डी और हमारे शरीर के कुछ विशिष्ट अंगों के बीच के संबंध को समझकर कई शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बीमारियों की आपकी समझ में भी सुधार आ जाएगा।
आपकी स्पाइन और दूसरे अंगों का आपसी सम्बन्ध

आखिरी अपडेट: 30 जून, 2019

हमारी स्पाइन यानी रीढ़ की हड्डी हमारे शरीर को सहारा देती है। उसी की बदौलत हम रोज़मर्रा के अपने काम कर पाते हैं। प्रत्येक कशेरुका (Vertebrae) का एक ख़ास काम होता है। वे मिलकर हमारे सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम (दिमाग, नसें और स्पाइनल कॉर्ड) की रक्षा करती हैं।
इस लेख में हम रीढ़ की हड्डी और हमारे शरीर के बाकी हिस्सों के दिलचस्प रिश्ते के बारे में आपको बताएँगे। आगे पढ़ें!

स्पाइन और अंगों का अहम उद्देश्य होता है

शरीर की हरेक कोशिका को निर्देश देने के लिए रीढ़ की हड्डी और नर्व के माध्यम से हमारा दिमाग उन्हें आदेश भिजवाता है। इसी तरह हमारे शरीर की अहम गतिविधियाँ सुचारू रूप से चलती रहती हैं।

हमारे दिमाग और शरीर के बीच के इस संपर्क की रक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी स्पाइन की होती है। इस प्रकार, हमारी रीढ़ की हड्डी और शरीर के हिस्सों के बीच एक सीधा संबंध होता है।

इसलिए आपके शरीर की छोटी से छोटी वर्टीब्रा के भी हिल जाने पर वह आपकी किसी न किसी नस में जा चुभती है और आपके दिमाग से आते संदेशों के लिए अड़चन बन जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे शरीर का सामान्य कामकाज हमारी रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है।

भावनाओं और बीमारियों से वर्टीब्ररा (Vertebrae) का रिश्ता

आज कमर का दर्द इतना आम हो चुका है कि उससे किसी को कोई हैरानी नहीं होती। कंप्यूटर के सामने घंटों बैठे रहने, किसी गलत मुद्रा में आँख लग जाने या फ़िर भारी-भरकम सामान उठा लेने आदि वह किसी भी वजह से हो सकता है।

क्या आप जानते हैं, मांसपेशियों की ऐंठन का संबंध भी हमारी भावनाओं से होता है?

पीठ में आई मोच का संबंध भी हमारी भावनाओं से होता है। आपकी रीढ़ की हड्डी के हरेक हिस्से का आपके शरीर के किसी न किसी हिस्से, भावना और दर्द से कुछ न कुछ लेना देना ज़रूर होता है।

सर्वाइकल स्पाइन (cervical spine)

सर्वाइकल स्पाइन

खोपड़ी और कंधों के बीच मौजूद इस जगह में 7 वर्टीब्रा शामिल होती हैं। लिखते वक़्त इसे “सी” (यानी कि सर्वाइकल) और एक से लेकर सात तक की किसी संख्या से लक्षित किया जाता है।

हमारे शरीर की सर्वाइकल स्पाइन से उसके एनर्जी सिस्टम का पता चलता है। जीवन और संचार का आधार वही होती है।

  • सी-1: यह हमारे सिर को सहारा देकर उसे संतुलित करती है। इसपर दबाव पड़ने पर हमारा सिर दर्द करने लगता है, अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में हमें परेशानी आती है या हमारा तंत्रिका तंत्र परेशानियों की चपेट में आ जाता है।
  • सी-2: यह हमारी आँखों, नाक और सूंघने की शक्ति को आपस में जोड़ती है। इसके तन जाने पर हम अपने मन की बात को अपने अधरों पर नहीं ला पाते।
  • सी-3: इसका संबंध हमारी हड्डियों, नसों, त्वचा और चेहरे से होता है। कुछ लोग इसे “सोलिटरी सर्वाइकल वर्टीब्ररा” के नाम से भी जानते हैं।
  • सी-4, सी-5 और सी-6: ये तीनों एक-साथ काम करती हैं। इसीलिए इनमें से किसी एक में भी कोई परेशानी होने पर वह बाकी दोनों से टकराने लगती है। थाइरोइड ग्रंथि, वोकल कॉर्ड्स, ग्रसनी और मुंह के साथ-साथ कंधों का भी इनसे सीधा संबंध होता है।
  • सी-7: सर्वाइकल स्पाइन की यह आखिरी वर्टीब्ररा हमारे कंधों, कोहनियों और हाथों को प्रभावित करती है।

पीठ वाली रीढ़ की हड्डी (Dorsal spine)

पीठ वाली स्पाइन

कंधों से लेकर कमर तक फैले डॉर्सल स्पाइन (पीठ वाली रीढ़ की हड्डी) में 12 वर्टीब्रा मौजूद होते हैं। शरीर के सबसे प्रमुख अंग इसी जगह में होते हैं। इसीलिए किसी एक डॉर्सल वर्टीब्रा पर भी आंच आ जाने पर उससे जुड़े अंग पर भी असर पड़ता है। व्यक्ति को अपनी टांगों और पैरों में भी थकान महसूस होने लगती है। हमारी सर्वाइकल स्पाइन और शरीर के हिस्सों के बीच के ये संबंध हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी को प्रभावित कर सकते हैं:

  • डी-1: इसका असर हमारी उँगलियों के सिरों, कोहनियों और साँसों पर पड़ता है। इसीलिए दमे और फेफड़ों के रोगों का संबंध इसी वर्टीब्रा से होता है।
  • डी-2: यह दिल और फेफड़ों वाली वर्टीब्रा तो होती ही है, इसका असर हमारी भावनाओं और विचारों पर भी पड़ता है।
  • डी-3: हमारी छाती और साँसों का संबंध इसी वर्टीब्ररा से होता है। इसपर पड़ता दबाव भावनात्मक और शारीरिक तनाव के रूप में बाहर आता है।
  • डी-4: पित्ताशय के संपर्क में रहने वाली इस वर्टीब्ररा का संबंध हमारी इच्छाओं, कामनाओं और ख़ुशी से होता है। शरीर के बीचोबीच मौजूद होने की वजह से यह हमारे दैनिक जीवन को संतुलित करने का काम करती है।
  • डी-5: यह वर्टीब्रा हमारे रक्त प्रवाह को हमारे लीवर से जोड़ती है। यह हमारी हरकतों और परेशानियों को नियंत्रित करने के साथ-साथ उनका बोझ भी ढोती है।
  • डी-6: हमारी आत्मालोचना और हमारे जीवन में होती घटनाओं की हमारी स्वीकृति को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी इस वर्टीब्ररा की होती है। इस छठी डॉर्सल वर्टीब्रा का असर हमारे पेट पर भी पड़ता है।
  • डी-7: यह वर्टीब्रा हमारी पाचक-ग्रंथि और डुओडेनम से जुड़ी होती है। यह हमें इस बात का एहसास करवाने के लिए भी ज़िम्मेदार होती है कि हमारे सोने और आराम करने का वक़्त हो चुका है
  • डी-8: खून और तिल्ली से संबंधित इस वर्टीब्रा में हमारा डर और शंकायें वास करती हैं। इसका संबंध डायाफ्राम में उठते दर्द से भी होता है।
  • डी-9: इस वर्टीब्रा में कोई दिक्कत आने पर आपको एलर्जी हो जाएगी व आपकी भावनाएं अपने चरम पर पहुँच जाएँगी। एड्रेनल ग्लैंड का संबंध इसी वर्टीब्रा से होता है।
  • डी-10 और डी-11: इस वर्टीब्रा का संबंध हमारे गुर्दों, नसों, तनाव और डर से होता है।
  • डी-12: मलाशय, बड़ी आंत, जोड़ों और लिम्फैटिक प्रणाली से जुड़ी हुई होने की वजह से यह एक बेहद अहम वर्टीब्रा होती है। औरतों में तो यह गर्भाशय वाली नली से भी जुड़ी होती है। बात जब भावनाओं की आती है, तो इस वर्टीब्रा का संबंध जलन और आलोचना से होता है।

कमर वाली रीढ़ की हड्डी (Lumbar spine)

निचली स्पाइन

हमारी कमर की रीढ़ की हड्डी में 5 वर्टीब्रा होते हैं। बैठते समय सही मुद्रा में न होने पर अक्सर उनमें दर्द पैदा हो जाता है। दिन में बहुत ज़्यादा मेहनत कर लेने से भी उनमें दर्द हो सकता है। हमारे शरीर के ऊपरी हिस्सों को सहारा देते हुए वे हमारे शरीर के निचले हिस्सों से संपर्क स्थापित करती हैं।

इसका संबंध हमारी कामुकता और आत्मसम्मान से होता है। इस स्पाइन और हमारे शरीर के हिस्सों के बीच के कुछ और सम्बन्ध हैं:

  • एल-1: इस वर्टीब्रा का संबंध कब्ज़ और बदहज़मी पैदा करने वाली आँतों के असंतुलन से होता है। यह कमज़ोरी और अंदरूनी बीमारियाँ पैदा करने वाली समस्याओं को काबू में रखती है।
  • एल-2: यह हमारे पेट को हमारी टांगों से जोड़ती है। इस वर्टीब्रा पर कोई दबाव पड़ने या ऐंठन पैदा होने पर आपको अकेलापन महसूस होने लगता है।
  • एल-3: यह हमारे गुप्तांगों और मूत्र प्रणाली से जुड़ा वर्टीब्रा होता है। यह हमारे जोड़ों (खासकर घुटनों) से संबंधित होता है।
  • एल-4: मर्दों में यह प्रॉस्टैट ग्रन्थि से जुड़ी होती है। यह हमारी नितम्ब वाली तंत्रिका की परेशानियों की ओर भी इशारा कर सकती है।
  • एल-5: यह वर्टीब्रा हमारे घुटनों, पैरों और टांगों से जुड़ी होती है।

सेक्रम (Sacrum)

अंत में, इस जगह में पांच वर्टीब्ररा होते हैं। रीढ़ की इस हड्डी और अन्य शारीरिक अंगों के बीच के इस जुड़ाव का संबंध हमारी कामवासना, आत्मविश्वास और नियंत्रण की एक भावना (एस-1 व एस-3) से हो सकता है। एस-4 और एस-5 हमारे गुर्दे में मौजूद समस्याओं, बांझपन, हॉर्मोन असंतुलन, ख़राब रक्तसंचरण या मोटापे को दर्शाती हैं।



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