ग्लूकोमा से बचने के प्राकृतिक उपाय
ग्लूकोमा आँखों की एक ऐसी बीमारी होती है, जिसमें आँखों के अंदर का दबाव बढ़ जाता है। इस बढ़ते दबाव की वजह से ऑप्टिक तंत्रिका में मौजूद फाइबर्स की मात्रा कम हो जाती है व उसकी दिखावट में एक बदलाव आ जाता है।
ज़्यादातर मरीज़ों में तो इस रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई भी नहीं देते। लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीतता जाता है, उनकी आँखों की रोशनी भी गायब होती जाती है।
इस लेख में ग्लूकोमा से बचने के प्राकृतिक उपाय के बारे में हम आपको बताएँगे।
ग्लूकोमा के बारे में आपको क्या पता होना चाहिए
बहुत से लोग ग्लूकोमा की चपेट में आ जाते हैं (40 साल से ऊपर की जनसँख्या का करीब 2%)। और तो और, स्थायी अंधेपन के प्रमुख कारणों में इस बीमारी का भी नाम आता है।
ग्लूकोमा दो तरह का होता है:
एंगल-क्लोज़र ग्लूकोमा
इसमें कॉर्निया और आईरिस के तले के बीच बनने वाला कोण कम हो जाता है। साथ ही, इसकी वजह से इंट्राओकुलर दबाव भी तेज़ी से बढ़ने लगता है। फैली हुई पुतलियाँ, लाल आँखें, हैलो दिखाई देना और बहुत तेज़ दर्द का उठाना इस ग्लूकोमा के प्रमुख लक्षण होते हैं।
ओपन-एंगल ग्लूकोमा
धीरे-धीरे पनपने वाला यह ग्लूकोमा हमारी नज़र को भी धीरे-धीरे प्रभावित करता जाता है। उपर्युक्त दो तरह के ग्लूकोमा में यह बीमारी ज़्यादा आम होती है और इसके लक्षण भी इतने साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देते।
ग्लूकोमा पैदाइशी (जन्म से लेकर तीन साल की उम्र के बीच सामने आने वाला), किशोर (तीन साल की उम्र के बाद पनपने वाला आनुवंशिक ग्लूकोमा) या वयस्क (40 साल की उम्र के बाद सामने आने वाला) हो सकता है।
वह मोतियाबिंद, विट्रीअस हेमरेज, और अन्य बीमारियों को भी जन्म दे सकता है। इस बीमारी से छुटकारा पाना के लिए आपको कई ऑपरेशन करवाने पड़ सकते हैं।
ग्लूकोमा का पता लगाने के लिए डॉक्टर कई तकनीकों और टेस्ट्स का सहारा लेते हैं। इंट्राओकुलर दबाव का पता लगाकर वे यह देखते हैं कि ऑप्टिक तंत्रिका में खोखलेपन के कोई लक्षण हैं या नहीं:
- हेडलबर्ग रेटिना टोमोग्राफ (एच.आर.टी.)
- पैकीमेट्री (कॉर्निया की मोटाई को मापने के लिए)
- हाई रेज़ॉल्यूशन सोनोग्राम (आँख की बनावट की जांच करने के लिए)
- गोनियोस्कोपी (आईरिस और कॉर्निया के बीच के कोण को मापने के लिए)
- स्लिट लैंप और बायोमाइक्रोस्कोप (ऑप्टिक तंत्रिका के सिरे को बढ़ाकर देखने के लिए)
- एप्पलेनेशन टोनोमेट्री (आँख में तरल के दबाव को मापने के लिए)
- नज़र की फील्ड जांच (पेरिफेरल विज़न की जांच करने के लिए)
ग्लूकोमा की चपेट में आ जाने का सबसे ज़्यादा खतरा इन लोगों को होता है:
- अफ़्रीकी या एशियाई मूल के लोग
- 60 साल से ज़्यादा उम्र वाले लोग
- स्थायी रोगों से ग्रस्त लोग (खासकर मधुमेह, हाइपोथाईरॉइडिज़्म या हाई ब्लड प्रेशर)
- जिनके परिवार में पहले किसी को ग्लूकोमा रह चुका है
- आँखों के घावों या फ़िर मायोपिया से ग्रस्त लोग
- कॉर्टिकोस्टेरियोड्स लेने वाले लोग
इसे भी पढ़ायें: रोज़ाना ग्रीन टी पीने का हमारे शरीर पर क्या असर होता है?
ग्लूकोमा से बचने के प्राकृतिक उपाय क्या हैं?
एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और साल में एक बार आँखों के किसी डॉक्टर से अपना चेक-अप करवा लेना बेहद ज़रूरी होता है। ऐसा करने से या तो आप आँखों की बीमारियों से बचे रहते हैं या फ़िर आपको वक़्त रहते उनके बारे में पता चल जाता है। पर सिर्फ़ इतना ही काफ़ी नहीं होता। इन टिप्स का भी पालन करें:
इन्सुलिन के अपने स्तर को कम करें
हमारी यह सलाह सिर्फ़ डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए ही नहीं है। चीनी और हमारे खून में शुगर के स्तर को बढ़ा देने वाली चीज़ों के अत्यधिक सेवन से परहेज़ कर हम सभी को इन्सुलिन के अपने स्तर को काबू में रखना चाहिए।
ग्लूकोमा से बचने के लिए इन खाद्य पदार्थों का कम से कम सेवन करें:
- पास्ता
- ब्रेड
- सफ़ेद चावल
- रिफाइंड अनाज
- मिठाई
- आलू
नियमित रूप से कसरत करें
हमारी पिछली सलाह ही की तरह, इन्सुलिन और हाई ब्लड प्रेशर को कम करने के सबसे कारगर तरीकों में से एक है कसरत करना।
हफ़्ते में दो या तीन बार अच्छी-ख़ासी कसरत कर लेने से आपकी आँखें भली-चंगी रहती हैं और आप ग्लूकोमा से बचे रहते हैं। कसरत कोई भी हो, मगर आपको नियमित रूप से उसे करना होगा।
ल्यूटिन का सेवन करें
ल्यूटिन आपकी नज़रों में “मज़बूती” लाता है। किसी एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करने वाला यह पोषक तत्व हमारे शरीर की कोशिकाओं को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाए रखता है। समान खूबियों वाले ज़ेक्सान्थिन नामक कंपाउंड को भी आप आज़माकर देख सकते हैं।
ये कंपाउंड इन खाद्य पदार्थों में मौजूद होते हैं:
- करमसाग (केल)
- पालक
- फूलगोभी
- अंडे का योक
- ब्रसल स्प्राउट
फैट्स से बचें
हमारे ज़्यादातर खान-पान में फैट्स मौजूद होते हैं। ट्रांस फैट्स की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह है कि वे ओमेगा 3 फैटी एसिड्स के सोखे जाने में दखल देते हैं। हमारी आँखों की सेहत के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड्स बहुत अच्छे और ज़रूरी होते हैं।
बहुत ज़्यादा फैट्स खा लेने से हम मैकुलर डीजेनरेशन के शिकार हो जाते हैं। हमें इन-इन चीज़ों से परहेज़ करना चाहिए:
- मक्खन
- फ्रेंच फ्राइज़
- पेस्ट्री
- हैमबर्गर
- प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स
बेर खाएं
ब्लूबेरी और क्रैनबेरी जैसे लाल फल हमारी आँखों का ध्यान रखने के शानदार प्राकृतिक उपाय होते हैं। वे ग्लूकोमा या मोतियाबिंद जैसी बीमारियों से भी हमारी रक्षा कर सकते हैं।
इसके पीछे उनमें मौजूद फ्लैवोनोइड्स का हाथ होता है, जिनकी वजह से उनका रंग लाल होता है। ये फ्लैवोनोइड्स हमारी केपिलरी, मांसपेशियों, और ऑप्टिक तंत्रिकाओं में मज़बूती लाते हैं।
मगर फिर भी, चीनी की अपनी मात्रा की वजह से बेर हमारे शरीर में इन्सुलिन के स्तर में बढ़ोतरी ला सकते हैं। इसीलिए उनका सेवन ज़रा संभलकर करें व दिन में मुट्ठीभर बेर से ज़्यादा न खाएं।
ग्लूकोमा से बचने या उसके विकास को धीमा कर देने में कुछ और ज़रूरी व काम की टिप्स ये होती हैं:
- वे काम न करें, जिनसे आपकी आँखों पर दबाव पड़ता है
- ठंडे और धुंधले दिनों में भी चश्मे का इस्तेमाल करें
- हद से ज़्यादा शराब न पिएं
- धूम्रपान न करें
- कैफीन का कम से कम मात्रा में सेवन करें
- विटामिन ए और सी से युक्त आहार लें
- रात को जल्दी सोएं
आपको अपनी आँखों का भी ख्याल रखना चाहिए। सारा-सारा दिन कंप्यूटर के सामने न बैठें। एक-एक घंटे बाद कुछ मिनट का ब्रेक लें या अपने डॉक्टर द्वारा बताए चश्मे का इस्तेमाल करें।
इन सभी बातों का पालन करने से आपकी आँखों की थकान कम होगी और उनपर दबाव बढ़ने की संभावना भी कम हो जाएगी।
यह आपकी रुचि हो सकती है ...