ऑरोफरीन्जियल कैंसर के इन लक्षणों की अनदेखी न करें

ऑरोफरीन्जियल कैंसर के लक्षणों को अन्य बीमारियों के लक्षण समझने की गलती की जा सकती है। इसीलिए हमें उन्हें नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए। धुम्रपान न करना इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि आप खतरे से बाहर हैं।
ऑरोफरीन्जियल कैंसर के इन लक्षणों की अनदेखी न करें

आखिरी अपडेट: 21 नवंबर, 2018

ऑरोफरीन्जियल कैंसर का संबंध सिर्फ़ तंबाकू से ही नहीं होता। मुंह, जीभ, तालू (पैलेट) और ग्रसनी (फेरिंक्स) में केंद्रित यह रोग सूरज की रोशनी और ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एच.पी.वी.) की वजह से भी हो सकता है।

यह कहना काफ़ी होगा कि जयादा व्यापक न होने के बावजूद यह बीमारी ज़्यादातर पचास साल से ऊपर की उम्र वाले लोगों में ही पायी जाती है।

जीवन-काल (लाइफ एक्स्पेक्टेंसी) में बढ़ोतरी आने के साथ-साथ इस बीमारी की संभावना में भी बढ़ोतरी आती रहती है। आमतौर पर यह पुरुषों में ज़्यादा सामान्य होती है।

इसके लक्षणों की जल्द से जल्द पहचान कर लेना इसलिए भी ज़रूरी होता है कि उन्हें छोटे-मोटे दाद, नासूरों या मुंह की मामूली सूजन समझने की भूल किसी से भी हो सकती है

धुम्रपान न करने वाले लोगों में तो यह समस्या और भी जटिल रूप धारण कर लेती है। ऑरोफरीन्जियल कैंसर की बात उठते ही ज़्यादातर लोगों को स्मोकिंग करने वाले लोगों का ख्याल आ जाता है।

“मैं तो सिगरेट पीता ही नहीं, तो मुझे कैसा खतरा?”

दरअसल सच तो यह है कि भले ही हम धुम्रपान करते हों या नहीं, इस बीमारी की चपेट में आने की संभावना हम सभी पर बनी रहती है

शुरुआती चरणों में ही इसके लक्षणों के बारे में सही जानकारी का होना इसीलिए ज़रूरी होता है।

ऑरोफरीन्जियल कैंसर के लक्षण

ऑरोफरीन्जियल कैंसर के अधिकांश मामलों के पीछे कार्सिनोमा का हाथ होता है।

पतली, चपटी पपड़ी वाली एक ख़ास तरह की कोशिका को कार्सिनोमा कहा जाता है। वे कोई मामूली फोड़े नहीं होते।

मुंह के संक्रमणों, छालों या मसूड़ों से निकलते खून के आदी हो चुके कमज़ोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों के लिए इस बीमारी के लक्षणों पर ध्यान न देना कोई इतने अचरज वाली बात भी नहीं होती।

आपके डॉक्टर द्वारा आपकी जीभ और आपके फेरिंक्स की संपूर्ण जांच किए जाने पर ऑरोफरीन्जियल कैंसर का पता लगाया जा सकता है।

आगे जाकर बीओप्सी का सहारा लेकर इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि आप इस ओन्कोलॉजिकल रोग से पीड़ित हैं या नहीं।

आइए इसके प्रमुख लक्षणों पर एक नज़र डालते हैं।

मुंह में आए बदलाव

मुंह के छाले ऑरोफरीन्जियल कैंसर की निशानी हो सकते हैं
  • ऑरोफरीन्जियल कैंसर का सबसे पहला लक्षण होते हैं ठीक न होने वाले छोटे-छोटे छाले
  • जीभ, मसूड़ों या फ़िर होंठों पर लाल या सफ़ेद निशानों का दिखायी देना भी आम होता है।
  • कुछ ही दिनों में ठीक न होने वाले असामान्य बदलावों के प्रति सजग रहते हुए उनके बारे में अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं।

समय के साथ बदतर होने वाला छोटा-मोटा दर्द

ऑरोफरीन्जियल कैंसर के प्रमुख लक्षणों में से एक होता है खाने को चबाने या निगलने पर होने वाला दर्द। नकली दांतों (डेंचर्स) का इस्तेमाल करने वाले लोगों को अचानक ही उनसे परेशानी होने लगती है, जिसके नतीजतन उन्हें खून आता है और दर्द होता है।

  • बात करना अचानक ही बहुत दर्दनाक हो जाता है।
  • अपनी जीभ को हिलाने या सिर्फ़ ब्रश करने से भी आपको लगातार दर्द होता रहता है।
  • यह दर्द आपके कानों तक भी फ़ैल सकता है।

गले में किसी “गाँठ” का महसूस होना

निगलने में कठिनाई, टॉन्सिल्स में लगातार होने वाली जलन या फिर कभी-कभी खून वाली खांसी आने आदि जैसे लक्षणों की आपको कभी भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

  • लेकिन यहाँ हम यह भी साफ़ कर देना चाहेंगे कि अक्सर इन परेशानियों के पीछे किसी गंभीर कारण का हाथ नहीं होता व आपके फेरिंक्स में मौजूद ट्यूमर अघातक भी हो सकता है।
  • हालात कुछ भी हों, आपको जल्द से जल्द अपनी जांच करवा लेनी चाहिए, जिसके लिए आपका इन बदलावों के प्रति सचेत रहना ज़रूरी होता है।

बेवजह वज़न घटना

ऑरोफरीन्जियल कैंसर की वजह से आपका वज़न कम होने लगता है

ऑन्कोलॉजिकल बीमारियों से ग्रस्त लोगों में वज़न का कम होना एक आम बात होती है। ऑरोफरीन्जियल कैंसर के मामले में भूख न लगना और यहाँ तक कि खाना चबाने में मुश्किल आना भी आम होता है।

इसकी वजह से हमारा इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है और हमारा वज़न धीरे-धीरे कम होने लगता है।

क्या ऑरोफरीन्जियल कैंसर से बचा जा सकता है?

जैसाकि हम अक्सर कहते हैं, किसी भी बीमारी से बचे रहने का कोई सीधा-साधा उपाय नहीं होता

हाँ, कुछ बातों का ध्यान रखकर हम उसकी संभावना को कम तो कर ही सकते हैं।

इस कैंसर का संबंध इन चीज़ों से होता है:

  • तंबाकू
  • शराब
  • ह्यूमन पेपिलोमावायरस (एच.पी.वी.)। गले के इस कैंसर (जिसमें ऑरोफरीन्जियल कैंसर भी आ जाता है) का संबंध एच.पी.वी-16 से होता है।
  • पराबैंगनी किरणें। उदहारण के तौर पर होंठों का कैंसर (लिप कैंसर) बाहर काम करने वाले लोगों में ज़्यादा आम होता है। सूरज की किरणों के वे ज़्यादा संपर्क में जो रहते हैं।
  • खराब ख़ुराक और कमज़ोर इम्यून सिस्टम।
  • फैनकोनी एनीमिया जैसे आनुवांशिक रोग।
ऑरोफरीन्जियल कैंसर के मामले में अपने डॉक्टर की बात सुनें

अब जब हम ऑरोफरीन्जियल कैंसर के कारणों को समझ ही चुके हैं तो हमें ऑब्सेसिव हुए बगैर अपनी जीवन-शैली पर थोड़ा ध्यान भी देना चाहिए।

धुम्रपान छोड़ देना, संतुलित और विविध आहार का सेवन करना व अपनी त्वचा और होंठों पर सन स्क्रीन लगाना एक अच्छा ख्याल होगा।

पूरी कहानी का सार यही है कि आपको घबराना नहीं चाहिए। अपने डॉक्टर की राय लेने में शर्म न करें। उदहारण के लिए, किसी तरह की कोई भी जांच करवाते वक़्त कोई झिझक दिखाएं।

सचेत रहकर इस बात को ध्यान में रखने में कोई हर्ज़ नहीं है कि जान है तो जहान है


यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।