15 दिनों में अपनी चिंता को सही दिशा देकर उससे छुटकारा पाने की 5 पर्सनल टिप्स
चिंता का रूप कोई भी हो, अपने शिकार के लिए वह किसी कठोर, भयानक और अप्रत्याशित भाव जैसी ही होती है।
कुछ लोगों के लिए तो वह किसी राक्षस जैसी होती है। समय-समय पर हमारे मन के आँगन में आकर उसे तहस-नहस करके हमारी वास्तविकता को अपने हाथों में ले लेने वाले वह किसी अनचाहे मेहमान जैसी होती है।
इसके अलावा, हमारी साँसों को उखाड़ने, हमारे संतुलन को बिगाड़ने और अपने जीवन के हरेक काम करने की हमारे विश्वास पर सवालिया निशान लगा देने की भी उसमें काबिलियत होती है।
कुल मिलाकर, हमारी चिंता हमें यह दिखाती है कि कभी-कभी हमारे अपने विचार ही हमारे सबसे बड़े दुश्मन होते हैं।
इस बात का एहसास हमें अपनी किशोरावस्था में भी हो सकता है। हाँ, वयस्क हो जाने पर हमें अपना मन शांति और शोर-गुल के बीच उछलती किसी गेंद जैसा लग सकता है।
किसी ख़तरे को भांपकर हमारे शरीर में एड्रेनालाईन के बढ़े स्तर की वजह से हमारे दिमाग द्वारा पैदा की गई इन तीव्र प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना या उनसे बचना कोई आसान काम नहीं होता।
धकधकी होना, दिल की धड़कनों का तेज़ हो जाना, पसीना आना, नकारात्मकता का हम पर हावी हो जाना का आना और बुरे ख्याल आना इस समस्या के प्रति हमारी सबसे आम प्रतिक्रियायें होती हैं।
इस परेशानी से आपको छुटकारा दिलाने के लिए आज हम आपको 5 टिप्स देने जा रहे हैं।
उन्हें अमल में लाना बेहद आसान है व ऐसा करने के लिए आपको बस थोड़ी-सी इच्छाशक्ति और ढेर सारी दृढ़ता की ज़रूरत होगी। हाँ, इन टिप्स का पालन करने पर 15 दिन के अंदर-अंदर नतीजे आपके सामने होंगे।
1. नयी रूटीन्स बनाएं
चिंता की मौजूदगी और प्रभाव को कम करने में हमारी रूटीन्स बहुत कारगर साबित होती हैं। हमें और सुरक्षित महसूस करवाने के साथ-साथ भविष्य में घटने वाली किसी भी घटने के लिए तैयार रहने में वे हमारी मदद करती हैं। मगर उनसे होने वाला हमारा सबसे बड़ा फायदा तो यह होता है कि काम और मौज-मस्ती के बीच अपने वक़्त को बांटकर हम अपनी ज़िन्दगी में एक सही तालमेल बिठा पाते हैं।
आमतौर पर दिन में अपने काम का प्रमुख समय ही चिंता से पीड़ित लोग के लिए सबसे मुश्किल वक़्त साबित होता है। यह वही समय होता है, जब वे अपनी सभी जिम्मेदारियां निभा रहे होते हैं।
अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभाने के लिए आपको अपने दिन की शुरुआत कुछ मिनटों के लिए ध्यान लगाकर या योग करके करनी चाहिए। अपने मन को शांत और ठंडा करने का यह एक शानदार उपाय होता है।
रिलैक्स करने के लिए अपनी दिनचर्या में आपको रात की अच्छी-ख़ासी नींद को भी शामिल कर लेना चाहिए। हो सके तो आपको सैर पर जाना चाहिए या तैराकी करनी चाहिए। अगर रंगोलियाँ बनाने या कोई किताब पढ़ने से आपको सुकून मिलता है तो उस काम को बेझिझक करें।
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2. अपनी सोच को तर्कसंगत बनाएं
अपने डर को जाने-समझे बगैर कोई भी उसका सामना नहीं कर सकता।
चिंतन-मनन और आत्मविश्लेषण करना हमारे लिए बहुत अहम होता है। इस प्रक्रिया के दौरान हमें अपनी चिंता, अपनी शांति को भंग करने वाले ख्यालों व हमें भ्रमित करने वाली चीज़ों की पहचान करनी आनी चाहिए।
आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कभी-कभी हमारी वास्तविक समस्यायें उनसे जुड़ी हुई भावनाओं की ओट ले लेती हैं। ये भावनायें हमारे मन में एक खलबली को जन्म देती हैं।
“मुझे गुस्सा आ रहा है”, “मुझे डर लग रहा है” या फ़िर “मुझे सभी लोगों पर गुस्सा आ रहा है” जैसी भावनायें इन समस्याओं पर पर्दा डाल सकती हैं: मुझे अपना शरीर अच्छा नहीं लगता, उस ख़राब रिलेशनशिप से मुझे ठेस पहुंची थी, या फ़िर मेरा दर्दनाक बचपन आज भी मुझे कचोटता है।
मुख्य समस्या की पहचान करना बहुत ज़रूरी होता है। ऐसा करने के लिए आपको एक डायरी बनानी चाहिए, जिसमें आप रोज़मर्रा के अपने ख्यालों और चिंताओं को लिख सकते हैं। बाद में, उसे पढ़कर अपने मन में बार-बार उभरने वाली चिंताओं के सिलसिले को आप समझ सकते हैं।
3. किसी से बात करें
बात करने, अपनी भावनाओं को बाहर का रास्ता दिखाने और ख़ास करके किसी के द्वारा समझे जाने के उस एहसास का अनुभव करने के लिए हम सभी को किसी न किसी की ज़रूरत होती है।
जब भी चिंता नाम का राक्षस हमारी घेराबंदी करने लगे तो हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपना वक़्त हम किसके साथ बिताने जा रहे हैं।
किसी ऐसे व्यक्ति से बात करें, जो आपको जज नहीं करता। ध्यान रहे कि वह व्यक्ति आपको यह आम सुझाव देने की गलती तो नहीं कर रहा: “दरअसल तुम्हारी परेशानी तो यह है कि तुम हर चीज़ को बढ़ा-चढ़ाकर देखते हो…”
अपने बारे में किसी की राय लेने या अपनी नाकारात्मक भावनाओं की नींव को और भी मज़बूत करने से आपको बचना चाहिए।
दरअसल आपको तो शांति और संतुलन की तलाश होती है। आपको तलाश होती है किसी ऐसे व्यक्ति की, जो आपकी चिंताओं और भयों को तर्क की कसौटी पर तोलकर आपके मन में उथलपुथल मचाते ख्यालों को शांत कर सके।
4. रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में माइंडफुलनेस
मुख्य रूप से माइंडफुलनेस, ध्यान पर आधारित एक दर्शन होता है।
लेकिन इसके अंतर्गत कई ऐसे दृष्टिकोण भी आ जाते हैं, जो अपने वक़्त और इच्छाशक्ति के सही इस्तेमाल के माध्यम से हमारी चिंता को एक सही दिशा दिखाने में हमारी मदद करते हैं।
माइंडफुलनेस हमें अपने वर्तमान में जीते हुए अपनी वर्तमान ज़रूरतों के प्रति सजग होना सिखाती है।
वह हमें अपने आसपास की वास्तविकता से, अपने वर्तमान से जोड़ती है। यहाँ हमें भावी घटनाओं के चिंतन से बचने की अहमियत समझ में आने लगती है। हमारी चिंताओं की जड़ में वह चिंतन ही तो होता है।
माइंडफुलनेस के मुताबिक़ हमें उत्तेजित हुए बगैर खुद को शांत कर बेहतर खाने और जीने की कला को सीख लेना चाहिए।
वह हमें रिलैक्स करना, अपने तन और मन में तालमेल बिठाना और अपने मन की उधेड़-बुन में फंसे बगैर अपने आसपास मौजूद मौकों को भुनाना सिखाती है।
इस मौके का फायदा उठाकर माइंडफुलनेस के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करें व उसे अपने जीवन में ढालने के तरीकों पर विचार करें।
5. अपनी चिंता को शांत करने के लिए मुझे खुद से क्या कहना चाहिए?
अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इस्तेमाल की जाने लायक कुछ कहावतों की मदद से अपने ध्यान को केन्द्रित कर अपने अंदरूनी संतुलन को खोज निकालना अपनी चिंता को सही दिशा दिखाने की एक उम्दा रणनीति होती है।
उसके कुछ आसान-से उदाहरण हैं:
- सब कुछ ठीक है। कोई अनहोनी नहीं होगी। मेरा मन शांत है और मेरा दिल धीरे-धीरे, रिलैक्स्ड होकर बिना किसी जल्दबाज़ी के धड़क रहा है।
- ऑल इज़ वेल। मेरा मन मेरे काबू में है। मैं अपनी भावनाओं का रचयिता और अपने दिल का कप्तान हूँ: कोई भी चीज़ मेरे हौसले को डगमगा नहीं सकती।
- मुझे अच्छा महसूस हो रहा है। कोई भी इंसान या कोई भी चीज़ मेरे मन के चैन को चुरा नहीं सकती। इस दुनिया में मैं काफ़ी अहमियत रखता हूँ। अब मुझे बस गहरी सांस लेकर खुद को रिलैक्स करना है।
अपने इन सुझावों पर बेझिझक अमल करें। इनसे आपको काफ़ी मदद मिलेगी!
- Desrosiers, A., Vine, V., Klemanski, D. H., & Nolen-Hoeksema, S. (2013). Mindfulness and emotion regulation in depression and anxiety: Common and distinct mechanisms of action. Depression and Anxiety, 30(7), 654–661. https://doi.org/10.1002/da.22124
- VV.AA. (2016).Self-help strategies for sub-threshold anxiety: A Delphi consensus study to find messages suitable for population-wide promotion. https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0165032716303391#!