रूमेटाइड अर्थराइटिस के बारे में 5 अहम बातें
रूमेटाइड अर्थराइटिस एक क्रॉनिक बीमारी है जिसे जोड़ों और उनके आसपास के टिश्यू की सूजन और विकृति (deformity) के रूप में जाना जाता है।
इस प्रकार का अर्थराइटिस 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में बहुत आम है, पर कुछ खास मामलों में यह उससे पहले भी हो सकता है।
यह अक्सर घुटनों और हाथ जैसे अंगों पर असर डालता है। हालांकि, यह शरीर के और हिस्सों को भी प्रभावित कर सकता है, जिसमें कुछ मांसपेशियां और टिश्यू शामिल हैं।
वैसे तो, ऐसा कोई निश्चित कारण नहीं है जो इसके होने के बारे में बताता हो, फिर भी, रूमेटाइड अर्थराइटिस को कई कारणों से जोड़कर देखा गया है। इनमें आनुवंशिक (hereditary) कारक, समय के साथ जोड़ों का घिस जाना और कुछ चोटें शामिल हैं।
इसका सबसे बड़ा लक्षण दर्द है जो इसकी गंभीरता के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। इस दर्द के साथ हमेशा सूजन, भारीपन और चलने-फिरने में दिक्कत महसूस होती है।
कुछ मरीज समय के साथ ठीक महसूस करने लगते हैं, जबकि बाकी लोगों को स्थिति खराब होने पर मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है।
इसीलिये यह जरूरी है कि हर किसी को इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हो, जिसमे इसके रिस्क फैक्टर्स, इसके होने की वजहें और इसके इलाज के तरीके शामिल हैं।
तो, चलिये इस बीमारी के बारे में 5 जरूरी बातों पर एक नज़र डाल लेते हैं।
1. रूमेटाइड अर्थराइटिस का लक्षण: दर्दनाक जॉइंट्स
रूमेटाइड अर्थराइटिस एक ऐसी बीमारी है जो आम तौर पर कई जोड़ों को प्रभावित करती है, खासकर हाथों और घुटनों में।
ऐसा बहुत कम ही होता है कि यह एक ही जॉइंट में हो क्योंकि यह समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ती है और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलती है।
हालांकि, रूमेटाइड अर्थराइटिस के कुछ मरीजों को यह हमेशा शरीर के एक तरफ महसूस होता है, और इससे उनके लिये दर्द पर काबू पाना थोड़ा आसान हो सकता है।
कुछ ऐसे मामले भी हैं जिनमें पेनकिलर और एंटी-इन्फ्लेमेटरी इलाज राहत देने के लिए काफी होते हैं।
इसे भी पढ़ें : दालचीनी का तेल : इसके अद्भुत औषधीय लाभ और बनाने का तरीका
2. यह किसी को भी हो सकता है
आम तौर पर, जोड़ों में लगातार होने वाला दर्द उम्र के साथ जोड़ों के घिसने की वजह से होने वाले रूमेटाइड अर्थराइटिस से जुड़ा होता है।
फिर भी, यह बीमारी केवल बुढ़ापे के लिये नहीं है। यह बच्चों या जवान लोगों को भी हो सकती है।
हालाँकि, यह भी सच है कि ज्यादातर मामले वृद्ध लोगों में ही दिखाई देते हैं, लेकिन उससे पहले भी इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना रहती है, खासकर जब आपका इस बीमारी से जुड़ा कोई पारिवारिक इतिहास रहा हो या कोई चोट रही हो।
3. यह मेडिकल कम्युनिटी को उलझन में डाले रखता है
वैसे तो रूमेटाइड अर्थराइटिस एक आम समस्या है, लेकिन इसका विकास दुनियाभर के मेडिकल और साइंटिफिक कम्युनिटी के लोगों को लगातार दुविधा में डाले रहता है।
ऐसा इसलिये क्योंकि यह कोई भी नहीं जानता कि इसके सटीक कारण क्या हो सकते हैं जबकि जोड़ों के घिसने या टूट-फूट से जुड़े कई तथ्य पहले से मौजूद हैं।
एक्सपर्ट्स के लिए यह बात जो साफ है वह यह कि यह स्थिति तब पैदा होती है जब शरीर का इम्यून सिस्टम अपने खुद के टिश्यू पर हमला करना शुरू कर देता है। यह जोड़ों के आसपास होता है।
लेकिन, अभी भी यह साफ नहीं हो पाया है कि शरीर द्वारा इस रिएक्शन को शुरू करने के लिए जिम्मेदार कौन सा कारण है।
उनके अनुसार इसमें जो रिस्क फैक्टर्स शामिल हैं:
- आनुवंशिक इतिहास (Genetic predisposition)
- हार्मोन की गड़बड़ी
- शराब और तंबाकू का सेवन
- मांसपेशियों, जोड़ों और हड्डियों के टिश्यू पर घाव
- बहुत ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी
- सुस्त लाइफस्टाइल
- मोटापा
इसे भी पढ़ें : बार-बार होने वाले कूल्हों के दर्द के 6 संभावित कारण
4. इसकी पहचान बहुत मुश्किल है
कई बीमारियों की पहचान करना आसान होता है क्योंकि शरीर के फ्लूइड के नमूने पक्के सबूत देते हैं।
पर रूमेटाइड अर्थराइटिस एक खास समस्या है। इसमें जिस तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, उनसे इसका पता लगाना बहुत मुश्किल होता है।
शुरुआती दौर में दर्द दूसरी छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं का भ्रम दे सकता है और लोग इसे अनदेखा कर सकते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि यह थकान की वजह से है।
मेयो क्लिनिक के आंकड़ों के अनुसार, ऐसा कोई भी अकेला टेस्ट नहीं है जिसका इस्तेमाल इस रोग की पहचान करने के लिए किया जा सके।
इसके अलावा, क्योंकि यह धीरे-धीरे दिखना शुरू होता है, इसलिये इसकी सटीक पहचान करने में कई साल लग सकते हैं।
इसके लक्षण, पारिवारिक इतिहास और एक्स-रे एनालिसिस कुछ ऐसे तरीके हैं जो इसकी पहचान करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
5. इलाज के कई अलग तरीके
वैसे तो, इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज नहीं है, फिर भी कुछ तरीके हैं जो आपके लक्षणों की गंभीरता को दूर करने और उन्हें कम करने में आपकी मदद कर सकते हैं।
ये ट्रीटमेंट इस तरह से डिजाइन किये गए हैं जो रोगियों को उनकी सामान्य लाइफस्टाइल में रहने के साथ-साथ उनकी सूजन और दर्द को कम करते हैं।
- सबसे पहले, यह सलाह दी जाती है कि मरीज सलह हेल्प प्रोग्राम और सपोर्ट ग्रुप के जरिये इसके बारे में जानकारी लें, क्योंकि इस उपचार का भावनात्मक स्थिति पर एक गहरा असर पड़ सकता है।
- उसके बाद, दर्द को काबू करने और इसके असर को कम करने के लिए पेनकिलर और एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं दी जाती हैं।
- इसके साथ ही प्रभावित जोड़ों के आसपास के टिश्यू को मजबूत करने और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कुछ फिजिकल थेरेपी सेशन में भाग लेना सबसे फायदेमंद रहता है।
बहुत से नेचुरल प्रोडक्ट भी हैं जो रूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षणों को कम करने में मदद करने के लिए सप्लीमेंट की तरह काम कर सकते हैं।
क्या आपको शक है कि आपको यह बीमारी है? पहली चेतावनी मिलते है, सबसे अच्छा होगा कि इसकी पूरी जांच-पड़ताल कराएं और इसके इलाज पर ध्यान दें।
जब आप इसके लिये सही इलाज पा लेते हैं, तो आपको इसे अपने जीवन की गुणवत्ता पर असर डालने से रोकने के लिए अपनी रोजाना की आदतों में बदलाव करने की भी जरूरत होगी।
- Rutherford, A., Nikiphorou, E., & Galloway, J. (2017). Rheumatoid arthritis. In Comorbidity in Rheumatic Diseases. https://doi.org/10.1007/978-3-319-59963-2_3
- Weissmann, G. (2006). The pathogenesis of rheumatoid arthritis. In Bulletin of the NYU Hospital for Joint Diseases. https://doi.org/10.1056/NEJMra1004965
- Rosen, A., & Diamond, J. S. (2010). Arthritis & rheumatism. Arthritis and Rheumatism. https://doi.org/10.1002/art.27480
- Coleman, L. A., & Roubenoff, R. (2012). Arthritis. In Encyclopedia of Human Nutrition. https://doi.org/10.1016/B978-0-12-375083-9.00018-0
- Deane, K. D., Demoruelle, M. K., Kelmenson, L. B., Kuhn, K. A., Norris, J. M., & Holers, V. M. (2017). Genetic and environmental risk factors for rheumatoid arthritis. Best practice & research. Clinical rheumatology, 31(1), 3–18. https://doi.org/10.1016/j.berh.2017.08.003
- Hahn, Y. S., & Kim, J. G. (2010). Pathogenesis and clinical manifestations of juvenile rheumatoid arthritis. Korean journal of pediatrics, 53(11), 921–930. https://doi.org/10.3345/kjp.2010.53.11.921