क्रोन्स रोग के इलाज के सिलसिले में आपको क्या मालूम होना चाहिए
क्रोन्स रोग (Crohn’s Disease) के ट्रीटमेंट का लक्ष्य इसके नए लक्षणों से बचना और पहले से मौजूद लक्षणों को नियंत्रित करना होता है। क्रोन्स रोग को पैदा करने वाले कारण के बारे में अभी भी कोई जानकारी न होने की वजह से उसका कोई भी प्रमाणित इलाज उपलब्ध नहीं है। हाँ, उसके लक्षणों से आराम दिलाकर उन्हें कम ज़रूर किया जा सकता है।
क्रोन्स रोग के अलग-अलग तरह के उपचार होते हैं:
- चिकित्सा
- आहार-संबंधी परहेज़ वाले उपचार
- सर्जरी
- अन्य उपचार
औषधीय उपचार
अगर विभिन्न विकल्पों की बात करें तो क्रोन्स रोग का प्रमुख इलाज दवाइयां ही हैं।
इस बीमारी का इलाज करने के सबसे आम फार्माकोलॉजिकल ग्रुप (औषधीय ग्रुप) ये होते हैं:
- एंटीबायोटिक
- 5-एएसए (5-ASA)
- ग्लुकोकौर्टीकोइड्स (Glucocorticoids)
- इम्यूनोसप्प्रेसंट्स (Immunosuppressants)
- बायोलॉजिकल थेरेपी
एंटीबायोटिक
छोटी आंत (स्मॉल इंटैस्टाइन) में बैक्टीरिया की अत्यधिक वृद्धि के इलाज के लिए डॉक्टर ये दवाइयां देते हैं। क्रोन्स रोग से उत्पन्न होने वाली जटिलताएं, जैसे परहेज़, नासूर (fistula) या सर्जरी, और एनल या पैरीएनल इन्फेक्शन बैक्टीरिया की इस असामान्य वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार होते हैं।
इन बीमारियों के इलाज में प्रयोग होने वाली सबसे आम एंटीबाडी ये हैं:
- मेट्रोनिडाज़ोल (Metronidazole)
- सिप्रोफ्लोक्सेसिन (Ciprofloxacin)
- एम्पीसिलीन (Ampicillin)
- सल्फोनामाइड्स (Sulfonamides)
इनके सबसे आम साइड-इफ़ेक्ट ये होते हैं:
- नॉजीआ
- मुंह में धातु का स्वाद आना
- शराब का प्रतिकूल असर
5-एमिनोसैलीसाईलेट्स
5-एएसए या 5-एमिनोसैलीसाईलेट्स (5-aminosalicylates) उस नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAID) का हिस्सा होता है, जो क्रोन्स रोग के मामलों में कोलन की सूजन को घटाने का काम करते हैं ।
हालांकि सर्जरी इस बीमारी का पूरा इलाज नहीं करती, लेकिन छेद, फोड़े, रक्तस्राव (हेमरेज), आँतों में रुकावट, नासूर या मेडिकल ट्रीटमेंट के असफल होने की स्थिति में यह ज़रूरी हो जाती है।
सल्फासैलेज़ाइन व मेसालेज़ाइन सबसे आम 5-एएसए होते हैं । दोनों ही मुंह के रास्ते ली जाने वाली दवाइयां हैं, जो सपोजिटरी या एनिमा के रूप में भी उपलब्ध होती हैं । ये उन मरीज़ों के लिए एक अछे विकल्प हैं, जिनकी हालत में स्टेरॉयडों से कोई सुधार नहीं आता।
इनके सबसे आम साइड-इफ़ेक्ट ये होते हैं:
- नॉजीआ
- दस्त
- सिरदर्द
ग्लुकोकौर्टीकोइड्स
ग्लुकोकौर्टीकोइड्स (Glucocorticoids) एक ऐसा हार्मोनल ट्रीटमेंट है, जिससे सूजन को कम करने में मदद मिलती है । डॉक्टर इस बीमारी के गंभीर चरणों में ही ग्लुकोकौर्टीकोइड्स देते हैं। एक बार बीमारी पर काबू पा लेने के बाद वे इस दवाई के संभावित साइड-इफ़ेक्ट के कारण इसे बंद कर देते हैं ।
अक्सर इन ग्लुकोकौर्टीकोइड्स का प्रयोग किया जाता है:
- बुडेसोनाइड (Budesonide): अपने लक्षित कार्य की वजह से इस दवा का प्रयोग टर्मिनल इलियम में होने वाली समस्याओं के उपचार के लिए किया जाता है ।
- प्रेड्नीसोन (Prednisone): यह दवा अधिक गंभीर मामलों में दी जाती है।
इन दवाइयों के ये साइड-इफ़ेक्ट हो सकते हैं:
- तरल-अवरोधन (Liquid retention)
- ओस्टियोपोरोसिस
- गैसट्राइटिस
- कील-मुहांसे
- मोतियाबिंद (Cataract)
स्टेरॉयड का प्रतिघाती असर होता है, जिसके कारण एकदम से उपचार को रोक देने के बजाय दवा की खुराक को धीरे-धीरे कम करना ज़रूरी हो जाता है।
इम्यूनोसप्प्रेसिव दवाएं
इम्यूनोसप्प्रेसिव दवाएं सूजन-प्रतिक्रिया से बचने के लिए इम्यून सिस्टम को कमज़ोर कर देती हैं। इससे क्रॉनिक सूजन को कम करने में सहायता मिलती है। इन दवाओं का प्रयोग नए लक्षणों को उभरने से रोकने के लिए किया जाता है। कौर्टीकोइड्स के बेअसर हो जाने पर भी इन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है ।
इस ड्रग ग्रुप में सबसे ज़्यादा प्रयुक्त दवाएं ये हैं:
- अज़ाथिओप्राइन (Azathioprine)
- 6-मेर्काप्टोप्योराइन (6-Mercaptopurine): हालांकि इस दवा का मुख्य उपयोग ल्यूकेमिया के उपचार में होता है, यह क्रोन्स रोग के मरीज़ों में किसी इम्यूनोसप्प्रेसंट की तरह भी काम करती है। बदकिस्मती से, इसके आम साइड-इफेक्ट्स ये हैं:
-
- नॉजीआ
- थकान
- बाँझपन (Infertility)
- मेथोट्रेक्सेट (Methotrexate): किसी रोगी को यह दवा दिए जाने पर गर्भधारण की उसकी कोशिश करने के 3 महीने पहले से उसका उपचार पूरी तरह से बंद हो जाना चाहिए। इसके प्रयोग से पुरुषों और महिलाओं, दोनों में ही भ्रूण में टेराटोजेनिक डिफेक्ट का खतरा बना रहता है ।
दुर्भाग्यवश, इस प्रकार की दवाओं के प्रयोग से ज़्यादा इन्फेक्शनों का खतरा बन जाता है, क्योंकि इनसे इम्यून सिस्टम पर दबाव पड़ता है।
बायोलॉजिकल थेरेपी
इस मामले में, मोनोक्लोनल एंटी-टी.एन.एफ.-α एंटीबाडी सूजन पैदा करने वाले प्रोटीन टीएनएफ. (ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर) को हटा देती हैं ।
अगर ये एंटीबाडी इतनी प्रभावशाली न हों या फिर अगर ट्रीटमेंट या सर्जरी नाकाम रहे तो इनका प्रयोग इम्यूनोसप्प्रेसिव दवाएं के साथ किया जाता है ।
क्रोन्स रोग के उपचार में प्रयोग होने वाले सबसे आम बायोलॉजिकल ड्रग्स ये हैं:
- इन्फ्लिक्सीमैब (Infliximab): इसे अर्क या काढ़े के रूप में दिया जाता है। इससे एलर्जी हो सकती है।
- एडालीमुमैब (Adalimumab): इसे दो हफ़्तों में एक बार इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है ।
- सेर्टोलीज़ुमैब (Certolizumab)
क्रोन्स रोग के आहार-संबंधी उपचार
क्रोन्स रोगियों में आहार का भी बहुत महत्त्व होता है, क्योंकि उन्हें अक्सर भूख कम लगती है या शरीर में भोजन के एब्जोर्ब होने में गड़बड़ी होती है ।
इन मरीजों को संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए, बिलकुल उसी प्रकार जैसे वे लोग करते हैं, जिन्हें क्रोन्स रोग नहीं होता। इसका विशेष कारण इस बीमारी से जुड़ी अन्य जटिलताएं हैं।
एक संतुलित आहार के पोषक तत्वों में 50-55% कार्बोहाइड्रेट, 30-35% लिपिड या फैट्स, 12-15% प्रोटीन व फाइबर की हल्की-सी मात्रा होती है। इसके अतिरिक्त, रोगी की आवश्यकतानुसार उसमें विटामिन और मिनरल भी होते हैं। मरीजों को दिन में कई बार खाना खाने के साथ-साथ ढेर सारा पानी भी पीना चाहिए ।
क्रोन्स-पीड़ित रोगियों को मसालेदार व फाइबर-युक्त खानपान से बचना चाहिए। साथ ही, उन्हें कार्बोनेटेड, कैफीनेटिड या अल्कोहलिक ड्रिंक से भी परहेज़ करना चाहिए।
संतुलित आहार का सेवन करने के बावजूद क्रोन्स रोग के मरीज़ गंभीर कुपोषण की चपेट में आ सकते हैं। ऐसी स्थितियों में उन्हें विशेष खानपान या पैरेंटेरल न्यूट्रीशन के लिए अस्पताल जाना पड़ सकता है।
अपने भोजन को अपनी दवा और अपनी दवा को अपने भोजन की तरह लीजिए।
– हिप्पोक्रेटिस –
खाने-पीने की ऐसी कई वस्तुएं होती हैं, जिनके अक्सर साइड-इफ़ेक्ट हो जाते हैं। इसीलिए उनसे पूरी तरह से परहेज़ करना ही बेहतर है। उनमें से कुछ ये हैं:
- कैसीन: डेयरी प्रोडक्ट में पाया जाने वाला एक प्रोटीन
- ग्लूटेन
- गेहूं
- मक्का
- यीस्ट
- कुछ फल और सब्ज़ियाँ
क्रोन्स रोग के लक्षणों को काबू में रखने में सबसे ज्यादा सफल आहार ग्लूटेन-फ्री व एफओडीएमएपी वर्जित (FODMAP-restriction diets) आहार (शॉर्ट चेन कार्बोहाइड्रेट की अल्प मात्रा वाले वे खानपान जिन्हें छोटी आंत ठीक से सोख नहीं पाती)।
बीमार के दौरान लक्षणों से राहत देने या मरीज़ की अवस्था में सुधार लाने के लिए विटामिन सप्लीमेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है। विटामिन डी सप्लीमेंट का क्रोन्स रोग से गहरा नाता है।
आर्टिरियल कैल्सीफिकेशन व मायोकार्डियल इंफार्क्शन (myocardial infarction) के खतरे की वजह से कैल्शियम सप्लीमेंट का प्रयोग विवादास्पद है।
क्रोन्स रोग के सर्जिकल ट्रीटमेंट
जटिलताओं के उत्पन्न हो जाने पर की जाने वाली क्रोन्स रोग की उपचारात्मक सर्जरी का बड़ा लक्ष्य सेहत में सुधार लाकर कम सुधार लाने वाले फार्माकोलॉजिकल ट्रीटमेंट को बंद कर देना होता है ।
सर्जरी इस बीमारी का पुख्ता इलाज तो नहीं होती, लेकिन छेद, फोड़े, रक्तस्राव (हेमरेज), आँतों में रुकावट, नासूर या मेडिकल ट्रीटमेंट के असफल होने की स्थिति में यह ज़रूरी हो जाती है।
ऑपरेशन के दौरान पाचन नली में सूजन वाली जगह को हटाकर शेष भागों को एक-दूसरे से दुबारा जोड़ दिया जाता है।
क्रोन्स रोग के उपचार के अन्य विकल्प
बीमारी के लक्षणों का इलाज करने वाले अन्य इलाजों के बजाय इन विकल्पों का संबंध उन अच्छी आदतों से है, जिनका पालन मरीजों को करना चाहिए । इस सूची में ये आदतें शामिल हैं:
- धूम्रपान बंद कर देना
- आराम करना: आराम कर मानसिक तनाव को कम करने से इस बीमारी से उतनी ही राहत मिलती है, जितना फार्माकोलॉजिकल उपचार से मिलता है ।
हालांकि क्रोन्स रोग गंभीर समस्याओं वाली एक क्रॉनिक बीमारी है, तो भी रोगियों को अपने दैनिक कार्यों को यथासंभव सामान्य रूप से करते रहना चाहिए ।