क्या शौच करने का कोई सही तरीका है?
दुनिया में कई समाज ऐसे हैं जहां शौच करने के लिए टॉयलेट जाने की बात करना बुरा माना जाता है। हालांकि हमारे स्वास्थ्य के लिए यह जानना ज़रूरी है कि पेट साफ करने का सही तरीका क्या है। आइये इसके बारे में यहाँ और ज्यादा जानते हैं।
पारंपरिक रूप से इंसान अन्य स्तनपायियों की तरह उकड़ूं बैठकर आराम करता था। काम करने और शौच आदि के लिए भी वह यही मुद्रा अपनाता था।
आश्चर्यजनक तेज़ी से चीजें बदलती गईं। लेकिन यह कैसे हुआ कि आज़ टॉयलेट हमारी ज़रूरतें पूरी करने लगा है?
टॉयलेट एक ‘लग्ज़री’
वर्ष 1591 में सर जॉन हैरिंगटन ने टॉयलेट का अविष्कार किया। इसके बाद हमारी बाथरूम आदतें हमेशा के लिए बदल गईं। पहले पहल इसे एक ‘लग्ज़री’ या विलासिता की वस्तु माना गया। केवल कुलीन वर्ग ही इसका इस्तेमाल करता था। हालांकि कुछ विकलांग व्यक्ति भी इसका इस्तेमाल कर पाते थे पर एेसे मामले बहुत दुर्लभ थे।
जैसे-जैसे प्लंबिंग (पाइप फिटिंग का काम) विकसित हुई, टॉयलेट को बड़े पैमाने पर बनाया जाने लगा और इस तरह आम आदमी को भी वह ‘विशेष सुविधा’ हासिल हो गई जिसकी सहूलियत कभी सिर्फ रईस लोगों को थी। फिर लगातार नल से पानी मिलने की सुविधा ने हमारी उकड़ूं बैठने की आदत भी बदल दी। नतीजतन आज शौच करने का तरीका भी बदल गया है।
वैज्ञानिक तर्कः शौच करने के लिए उकड़ूं बैठना बेहतर है
डॉ. हेनरी एल. बोकस ने 1964 में अपनी किताब गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी में दावा किया कि जांघों को पेट के पास लाकर उकड़ूं बैठना आदर्श मल त्याग करने के लिए अनिवार्य स्थिति है। इसी तरह डॉ. एलेक्ज़ेंडर कीरा ने 1966 में अपनी किताब द बाथरूम में तर्क दिया कि लघुशंका के लिए उकड़ूं बैठना इंसानी फितरत है क्योंकि इससे मलत्याग के लिए कम ज़ोर लगाना पड़ता है।
इसके बाद, 2003 में डॉ. डोव सिकिरोव ने एक स्टडी की जिसमें टांगें नीचे करके और उकड़ूं बैठ कर शौच करने के लिए लगाए गए ज़ोर की तुलना की गई थी। निष्कर्ष में उकड़ूं बैठने की स्थिति में शौच करने की अनुभूति अधिक संतोषजनक पाई गई। उकड़ूं बैठने की तुलना में टांगें नीची करके बैठने पर अत्यधिक ज़ोर लगाना पड़ा और समय भी अधिक लगा।
मलत्याग करने की आदर्श स्थिति उकड़ूं बैठना है” -हेनरी एल. बोकस
जब हम शौच करते हैं तो क्या होता है?
दरअसल, ‘मलत्याग’ वह प्रक्रिया है जिसमें पाचन के बाद बचा-खुचा अनुपयोगी वेस्ट मटेरियल शरीर से बाहर निकाला जाता है।
इस प्रक्रिया के दौरान आंतरिक तंत्रिका तंत्र और पैरासिंपेथेटिक तंत्र कई प्रक्रियाएं पूरी करवाते हैं। जैसे कि बड़ी आंत (colon) में मल जमाव पर नियंत्रण या बाहरी स्फिंक्टर या प्यूबोरेक्टैलिस मांसपेशी (puborectalis muscle) को शिथिल करना। प्यूबोरेक्टैलिस मांसपेशी के कारण गुदा (rectum) सही दशा में आ जाता है जिससे पेट में आंतरिक दबाव बनता है और मल बाहर निकल जाता है।
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उकड़ूं बैठना
यहां यह बताना बहुत महत्वपूर्ण है कि उकड़ूं बैठकर बाथरूम का इस्तेमाल करते समय आपकी टांगें आपके शरीर से 35 डिग्री के कोण पर होनी चाहिए। ऐसे बैठने से आपकी मांसपेशियाँ पेट पर दबाव डालती हैं।
यह क्रिया बड़ी आंत (colon)की अंदरूनी गुहाओं (cavities) में दबाव उत्पन्न करती है। इससे एनल चैनल बाधा मुक्त होकर सही स्थिति में आ जाता है और मल बाहर निकल जाता है। इससे पेट जल्दी और आराम से अच्छी तरह साफ होता है।
टांगें नीची करके बैठना
टांगें नीची करके बैठना उकड़ूं बैठने के ठीक विपरीत होता है। इस स्थिति में आपकी टांगें पेट से 90 डिग्री के कोण पर होती हैं और पेट का दबाव जांघों पर पड़ता है। यह स्थिति मलाद्वार (रेक्टम) और गुदा द्वार (एनस) को एक सीध में नहीं ला पाती है।
इसके अलावा टांगों की तरफ से पेट या बड़ी आंत पर कोई दबाव नहीं पड़ता है। इस कारण शौच करने के लिए ज़ोर लगाने की ज़रूरत पड़ती है।
इस स्थिति में बैठने से कई जटिलताएं पैदा हो जाती हैं जैसे कि कब्ज़, अमाशय में गड़बड़ी (इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम), हर्निया और बवासीर। गंभीर मामलों में बड़ी आंत (कोलन) या आंत का कैंसर भी हो सकता है।
बाथरूम इस्तेमाल करते समय उकड़ूं बैठने के फायदे
इस स्थिति के कई फायदे हैंः
- मल तेज़ी और आसानी से बाहर निकलता है।
- कोई भी पदार्थ बड़ी आंत से छोटी आंत में प्रवेश नहीं कर पाता है। इससे छोटी आंत के संक्रमित होने की संभावना घट जाती है।
- संबंधित क्षेत्र में दबाव नहीं बढ़ता है जिससे हर्निया, डायवर्टिकुलोसिस और अन्य समस्याएं पैदा नहीं होती।
- यह बिना चीर-फाड़ बवासीर के उपचार में सहायक है।
- गर्भवती महिलाओं में यह स्थिति गर्भाशय पर दबाव नहीं पड़ने देती है। सच यह है कि यह स्थिति नेचुरल बर्थ की तैयारी में सहायक है।
- मल एकत्र नहीं होने देती है। यह स्थिति एपेंडिसाइटिस और पेट की सूजन जैसे रोग होन का मुख्य कारण है।
यहां यह बताना बहुत ज़रूरी है कि बाथरूम में 90 डिग्री के कोण पर बैठने की स्थिति को कोलोरेक्टल कैंसर (सीआरसी) के साथ जोड़कर भी देखा जाता है। हालांकि सहंद सोहराबी की स्टडी में यह हाइपोथीसिस अब तक निर्णायक साबित नहीं हुई है।]
मैं इस जानकारी का इस्तेमाल कैसे करूं?
बाथरूम फर्नीचर डिजाइन के अधिकतर मामलों में उकड़ूं बैठने की स्थिति को ध्यान में नहीं रखा जाता है। हालांकि हम एक फुटस्टूल का इस्तेमाल करके अपनी ज़रूरत पूरी कर सकते हैं। बस स्टूल की ऊंचाई इतनी होनी चाहिए जितने से हमारी टांगों का शरीर के साथ 35 डिग्री का कोण बन जाए।
कुछ लोग इस स्थिति में आने के लिए टॉयलेट पर चढ़कर बैठ जाते हैं। ऐसा करना ख़तरनाक हो सकता है। टॉयलेट टूट सकता है और वह व्यक्ति गिर सकता है। इसलिए शौच करने के लिए ऐसा करने की सलाह कतई नहीं दी जा सकती।
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