बच्चों में विद्रोह की भावना को कैसे रोकें
बच्चे की उम्र के अनुसार आम तौर पर बच्चों में विद्रोह के कई रूप होते हैं। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, कई बदलाव नज़र आते हैं और इनमें अधिकतर को वे अपनी पहचान के साथ जोड़कर देखते हैं।
बच्चों में विद्रोह की दो पारंपरिक अवस्थाएं होती हैं। पहली 2 और 6 वर्ष की उम्र के बीच और दूसरी किशोरावस्था। इन अवस्थाओं में बच्चा या किशोर अपने मन की ही करना चाहता है।
बच्चों में विद्रोह के लिए कुछ अन्य हालात भी जिम्मेदार है। उदाहण के लिए जब बच्चों को अपने माहौल में बदलाव का सामना करना पड़ता है। उनके लिए माता-पिता से बातचीत करना मुश्किल हो जाता है तो ये परेशानी भी विद्रोह का रूप धारण कर सकती है।
हालांकि यह ‘विद्रोही’ व्यवहार सामान्य माना जाता है और हमें ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। बहुत हद तक विद्रोह के ये चरण ज़रूरी होते हैं क्योंकि इस दौरान बच्चा अपना व्यक्तित्व, अपनी पहचान और अलग अस्तित्व बनाता है।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए यह ज़रूरी है कि आप अपने बच्चे का विद्रोही होना समझें और स्वीकार करें। साथ ही, यह भी जानें कि ज़रूरत पड़ने पर आपको क्या करना चाहिए।
माता-पिता होने के नाते आपके सामने यह चुनौती है कि कैसे उनका विद्रोही व्यवहार संभाला जाए ताकि वे बगैर ग़लत व्यवहार सीखे अपनी अलग पहचान बना सकें।
बच्चों में विद्रोह वाले स्वभाव को नियंत्रित करने की रणनीतियां
वैसे आपने सुना होगा कि इन अवस्थाओं के दौरान आपको बच्चों को प्यार के साथ अनुशासन सिखाना चाहिए। भले ही वे छोटे हैं पर ये समझते हैं कि कुछ करने के लिए कहने पर उन्होंने क्या किया। आपको पूरा धैर्य दिखाना होगा, गुस्से को काबू में रखते हुए उनके नखरे सहने होंगे।
इसके साथ ही, कुछ विशेष रणनीतियों का इस्तेमाल करके आपका अपना व्यवहार भी काबू में रहना बहुज ज़रूरी है।
1. स्पष्ट नियम बनाएं, उन्हें तोड़ने पर दंड दें
अगर आपके बच्चे को घर के नियम पता हैं और वह यह भी जानता है कि इन्हें न मानने के क्या दुष्परिणाम होंगे तो उनके लिए सुरक्षित महसूस करना आसान हो जाएगा। हालांकि इसका ये अर्थ नहीं है कि वे आपको कभी चुनौती नहीं देंगे। इसलिए, अनुशासन तोड़ने पर बताया गया दंड देना ज़रूरी है।
2. ग़लत व्यवहार को बढ़ावा न दें
बच्चों में विद्रोह तब और बढ़ जाता है जब एक अभिभावक के तौर पर उनके ग़लत व्यवहार को आप हंसी में टाल देते हैं। हालांकि उस समय आपको बहुत हंसी आती है पर आप अपने बच्चे को दोहरा संदेश दे रहे होते हैं। नतीजतन, धीरे-धीरे बच्चा आपका सम्मान करना छोड़ देता है।
3. सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा दें
माता-पिता एक सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि वे सकारात्मक व्यवहार की तुलना में नकारात्मक व्यवहार को ज़्यादा तूल देते हैं। माता या पिता अनजाने में उस समय नकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देते हैं जब वे बच्चे पर लगातार कमेंट करते हैं और उसकी अच्छी बातों को नज़रअंदाज कर देते हैं।
अपने बच्चे के अच्छे कामों की प्रशंसा करें। यह उतना ही ज़रूरी है जितना कि ख़राब व्यवहार पर उसको उचित दंड देना।
4. बेपनाह प्यार करें
अगर बच्चा अपना व्यवहार सुधारने में बार-बार नाकाम रहता है तो भी उसके लिए आपके प्यार में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। उसे समझाएं कि आपकी नाराज़गी कारण सिर्फ़ उसका ग़लत व्यवहार है। खुद को उसके स्थान पर रखकर सोचें, उसे समझें और उसकी बात सुनें। उस पर चिल्लाने से बचें और शांत रहने की कोशिश करें।
वहीं, अगर बच्चे किशोरावस्था में पहुंच जाएं तो उनके मूड को लेकर बार-बार सवाल न करें। उन्हें अपने हिसाब से चीज़ें करने दें।
5. अपने बच्चे के विद्रोही स्वभाव को बढ़ावा देने की बात स्वीकारें
कई बार बच्चों में विद्रोह का कारण पारिवारिक परिस्थितियां हो सकती हैं और माता या पिता के तौर पर आप यह नहीं जानते हैं कि उन्हें कैसे संभालना है। सबसे आम कारण माता और पिता का अलग होना या उनके बीच भावनात्मक लगाव खत्म होना है।
अगर किसी बात को लेकर माता-पिता के बीच तनाव पैदा होता है तो बच्चे इसे जान जाते हैं और अपना ध्यान इस ओर से हटाने की कोशिश करते हैं। साथ ही, एक बच्चे को दूसरे से ज्यादा प्यार करना भी विद्रोही स्वभाव को बढ़ावा देता है।
6. विकल्प सुझाएं
विकल्प सुझाने पर बच्चों को कठिन हालात में सकारात्मक बने रहने में मदद मिलती है। साथ ही, इससे बढ़े होने पर उनमें निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
बच्चों को विकल्प सुझाने में कई चीज़ें शामिल हैं। इनमें से एक है उनसे बातचीत करके समस्या का हल निकालना। उदाहरण के लिए अगर वे समय से पहले अपना होमवर्क पूरा कर लेते हैं तो उन्हें निश्चित समय के लिए टीवी देखने की अनुमति देना।
7. सकारात्मक भाषा का इस्तेमाल करें
नकारात्मक भाषा की तुलना में सकारात्मक भाषा का इस्तेमाल अधिक प्रभावी होता है। सकारात्मक भाषा निडर रवैये को बढ़ावा नहीं देती जैसा कि बार-बार टोकने पर होता है। बच्चे को क्या नहीं करना चाहिए, यह कहने के बजाय हमेशा उलटा कहें।
जब आप उनसे कुछ कहें तो उन्हें बताएं कि वे क्या कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, “तुम घर के अंदर साइकिल से नहीं खेल सकते हो” कहने के बजाय कहें- “तुम बरामदे में साइकिल के साथ खेल सकते हो”।
एक और उदाहण, “तुम अपने कमरे में गिटार नहीं बजा सकते हो” कहने के बजाय आप कह सकते हैं- “तुम बेसमेंट में जाकर गिटार बजा सकते हो”।
चिंतन-मंथन
बच्चों को कैसे शिक्षित किया जाए, इसके लिए दुनिया में कोई मैनुअल नहीं है। इसीलिए, माता-पिता के पास उन्हें संभालने के लिए कुछ गिने-चुने तरीके ही होते हैं।
बच्चों के मामले में केवल अपना अधिकार जताने से काम नहीं चलेगा। हमें यह भी समझना होगा कि हमारे बच्चों पर क्या बीत रही है।
हर बच्चा विशेष होता है। बढ़े होते समय परिस्थितियों को लेकर उसकी प्रतिक्रिया काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि वह घर में क्या देखता और सीखता है।
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