अच्छी खबर : खून की जांच से अब शुरू में ही कैंसर का पता लगाया जा सकेगा
सीएसआईसी (CSIC) द्वारा किए गए कुछ अध्ययन शुरुआती चरणों में ही दिलचस्प डेटा एकत्र कर रहे हैं जो कैंसर का पता लगाने में मददगार हैं।
यह टेस्ट खून के परीक्षण के जरिये शुरू में ही ट्यूमर का पता लगाने की सहूलियत देगा।
यह टेस्ट जल्द ही दुनिया भर के मेडिकल लैब में उपलब्ध होगा। स्पेनिश वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की जा रही नयी पद्धति डीएनए पर फोकस करती है।
महज एक मामूली ब्लड टेस्ट से शुरू में ही कैंसर की जानकारी पा लेने के मामले में यह प्रगति बहुत ही अहम है।
सीएसआईसी (CSIC) की स्टडी
सीएसआईसी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने डीएनए की अल्प मात्रा के विस्तार की सहूलियत देने वाले समाधान को विकसित किया है।
- कोशिकाओं के वर्गीकरण, उन्हें पढ़ने और उनका विश्लेषण करने के लिए लैब को सिर्फ थोड़ी मात्रा में खून के नमूने की ज़रूरत होगी।
- दूसरे फेज़ में, यह देखने के लिए कि क्या व्यक्ति में कैंसर वाला ट्यूमर बन रहा है, एक मूल्यांकन किया जायेगा।
स्पेनिश अस्पतालों में अपनाई जा रही कैंसर का पता लगाने वाली इस नयी पद्धति के दो फायदे हैं:
- यह बहुत आक्रामक नहीं है (महज खून का विश्लेषण ही प्रयाप्त है) ।
- यह शुरुआती चरणों में ही ट्यूमर का पता लगा लेता है।
स्पेन स्थित CSIC के सेवेरो ओचोआ बायोलॉजिकल मॉलिक्यूलर सेंटर के लुई ब्लैंको ने दावा किया है कि यह खोज भी उतनी ही अहम है, जैसी अहमियत अपनी खोज के समय एमआरआई को मिली थी।
कैंसर की शुरुआती जाँच के लिए जारी रिसर्च का भविष्य
हालांकि अब तक काफी महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, फिर भी रिसर्च को जारी रखना अहम होगा।
यह एकमात्र तरीका है जिससे हम शुरुआती चरणों में ट्यूमर का पता लगाने के लिए इन तकनीकों को बड़े पैमाने पर लागू कर पाएंगे। इससे हम दूसरे तरह के वंशानुगत रोगों का भी पता लगा पाएंगे।
इन्हें कैंसर का पता लगाने वाले नैनो सेंसर बायो-मार्कर के रूप में जाना जाता है। ये मेटास्टेसिस के चरण में पहुँच चुके ट्यूमर की आक्रामक बायोप्सी का व्यावहारिक अल्टरनेटिव बन रहे हैं।
कोलन कैंसर (colon cancer) के लक्षण
आम तौर पर कोलन कैंसर की जड़ें कोलन (बृहदान्त्र) या मलद्वार की कोशिकाओं (rectal cells) के अस्वाभाविक कार्य-कलाप में हैं, जो घातक ट्यूमर में तब्दील होने तक अनियंत्रित रूप से विभाजित होते हैं।
इस प्रकार का कैंसर कोलन और मलाशय की भीतरी सतह के टिशू में एक छोटे से पॉलीप (polyp) के गठन के साथ शुरू होता है।
पॉलीप अपने को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत करते है: उभरे हुए या सपाट। उभरे हुए पॉलीप्स का आकार तने या बिना तने के आकार वाले मशरूम जैसा हो सकता है।
जांच ने दिखाया है कि 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में बहुत बार पॉलीप्स होते हैं और इनमें ज्यादातर में कैंसर की विशेषताएं नहीं होती हैं।
इस प्रकार के कैंसर के लिए जोखिम वाले कारक क्या हैं ?
- पारिवारिक इतिहास और ज्यादा उम्र अहम कारण हैं।
- दूसरे प्रभावशाली कारण भी हैं, जैसे शराब का अधिक सेवन, मोटापा, एक्सरसाइज में कमी, धूम्रपान और असंतुलित आहार।
- साथ ही, ऐसे लोगों के कुछ समूह हैं जिनमें यह जोखिम सबसे ज्यादा हैं। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें अल्सरेटिव कोलाइटिस है या जिन्हें क्रोन’स रोग (Crohn’s disease) है।
कोलन कैंसर का पता लगाना
चिकित्सा में निरंतर प्रगति ने पेट के कैंसर का जल्दी पता लगाना संभव बना दिया है। यही कारण है कि मरीज को लक्षणों का पता लगने से पहले ही डॉक्टर टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।
वे पेट के कैंसर का पता लगाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं।
डॉक्टर 50 साल की उम्र में कोलन कैंसर का जल्द पता लगाने और हर 2 साल में टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।
कुछ लोगों में इस बीमारी का पारिवारिक इतिहास होता है। इसलिए डॉक्टर सलाह देते हैं कि इन रोगियों का परीक्षण 50 साल की उम्र से पहले ही कर लेना चाहिए और दूसरों की तुलना में ज्यादा जल्दी जांच कराते रहना चाहिए।
सबसे आम परीक्षणों में से एक है, मल में छिपे हुए रक्त की तलाश करना।
इस परीक्षण के लिए आपको लैब में ले जाने वाले नमूने के लिए फार्मेसी से छोटे ट्यूब सहित एक बैग मिल सकता है।
इसमें ढक्कन से जुड़ी एक छोटी स्टिक होती है जिसका उपयोग आप ट्यूब में मल जमा करने और उसे बंद करने के लिए कर सकते हैं।
जांच के नतीज़े
- यदि मल में रक्त नहीं है, तो संभवतः ट्यूमर नहीं है। फिर भी, जैसा कि हमने बताया है, आपको हर 2 साल में टेस्ट करवाते रहना होगा।
- हालांकि, ज्यादातर मामलों में मल में रक्त होने का मतलब यह नहीं है कि यह कोलन कैंसर ही है।