एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन : जब जिंदगी अपना अर्थ खो देती है

ऊंचे इंटेलेक्चुअल क्षमता वाले लोग एक खास तरह के डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। ऐसा लगता है, जिंदगी का कोई अर्थ नहीं है, चारों ओर बस अन्याय ही अन्याय है और हम बिना किसी आजादी के महज अकेले व्यक्ति हैं।
एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन : जब जिंदगी अपना अर्थ खो देती है

आखिरी अपडेट: 07 जनवरी, 2021

एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन या अस्तित्वगत अवसाद एक कम ज्ञात, लेकिन बार-बार उभरने वाली मनोवैज्ञानिक स्थिति है। इसकी कई विशेषताएं हैं। व्यक्ति को लगता है, वह अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता है, जीवन निरर्थक है। कभी-कभी उसे लगता हैं यह दुनिया बिलकुल अनुचित, अन्याय से भरी हुई है और यहाँ असमानताओं का कोई अंत नहीं है।

यह शब्द आपको अजीब लग सकता है, यहां तक ​​कि क्लिनिकल ​​दृष्टिकोण से बहुत बेतुका भी। यह सच है कि यह DSM-V (Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders) में नहीं है, और, यह भी कि आप शायद किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानते जो इससे पीड़ित हो। हालाँकि, हमें यह ध्यान देना चाहिए कि यह एक आम साइकोलॉजिकल स्थिति है और कुछ लोग इससे पीड़ित होते हैं।

एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन का इतिहास

2012 में डॉ. रॉबर्ट सेउबर्ट ने एक अहम तथ्य सामने लाने के लिए जर्नल ऑफ़ द यूरोपियन साइकियाट्रिक एसोसिएशन में एक रिसर्च आर्टिकल प्रकाशित किया। हमारे समाज का एक हिस्सा आम डिप्रेशन ट्रीटमेंट पर रेस्पोंस नहीं करता है, और यह पर्सनलिटी टाइप और यहां तक ​​कि ऊंचे इंटेलेक्चुअल क्षमताओं से जुड़ा हो सकता है।

कुछ लोग दूसरे मानसिक यूनिवर्स में विचरण करते रहते हैं, जहां वे खुद से गहरे सवाल पूछते हैं और एक तरह की असामान्य तकलीफ महसूस करते हैं। दुनिया के भविष्य को लेकर फिक्रमंद रहना या जीवन के वास्तविक अर्थ को न पाने का दुःख एक ख़ास तरह का डिप्रेशन ला सकता है।


ऊंचे इंटेलेक्चुअल क्षमता वाले लोगों में अस्तित्वगत डिप्रेशन उभर सकता है।

अस्तित्वगत डिप्रेशन : परिभाषा, लक्षण और कारण

यह संभव है कि इस तरह का अवसाद हमें सोरेन कीर्केगार्ड या फ्रेडरिक नीत्शे जैसे लेखकों की ओर ले जाए। उन्होंने आजादी और व्यक्तिगत जिम्मेदारी, मानवीय अकेलेपन के सिद्धांतों और अस्तित्वगत पीड़ा के क्लासिक अवधारणा की बात की है।

यह अंतिम शब्द भविष्य से जुड़े भय, हमारे फैसलों के महत्व और अपनी उम्मीदों के अनुरूप न हो पाने के डर से जुड़ा है। इन सबका एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन के साथ क्या सम्बन्ध है?

दरअसल वाकई है। इस मनोवैज्ञानिक स्थिति का सबसे ज्यादा अध्ययन करने वालों में से एक हैं स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में साइकोथेरेपिस्ट, और एमेरिटस प्रोफेसर इरविन डेविड यालोम। उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में से एक है एग्ज़िस्टेंशियल साइकोथेरेपी नाम की किताब।

इसमें उन्होंने उन मुख्य विशेषताओं के बारे में बात किया है जो इस अवसाद से पीड़ित रोगी में उभरते हैं। जैसा कि आप देखेंगे, यह उन विचारों की तरह है जो दर्शन में अस्तित्ववाद के ज्यादातर प्रतिनिधियों ने अपने दर्शन मब बताया है।

और जानने के लिए पढ़ें: मेजर डिप्रेशन : 6 लक्षण जिन्हें जानना ज़रूरी है

एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं?

सभी प्रकार के अवसाद बहुआयामी और जटिल होते हैं। हर आदमी अलग तरीके से अवसाद महसूस करता है और आम तौर पर यह एंग्जायटी जैसे दूसरे लक्षणों से जुड़ा होता है। इस तरह की रीयलिटी में बहुत विशिष्ट विशेषताएं होती हैं। जैसे कि,

  • निरर्थकता बोाध। व्यक्ति को अपना अस्तित्व अर्थपूर्ण नहीं लगता। ऐसा लगता है, जैसे वे एक शून्य में हैं जिसमें कुछ भी बोधगम्य, प्रामाणिक या मन को समृद्ध करने वाला नहीं है।
  • यह अहसास कि लोग उन्हें समझ नहीं रहे हैं। जब वे अकेलेपन के साथ दुनिया में खुद को किसी अजनबी की तरह महसूस करते हैं।
  • निजी सार्थकता तक नहीं पहुंचना। समाज सीमित है, क्योंकि रचनात्मक, पेशेवर, मानवीय और नागरिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कोई तंत्र नहीं हैं।
  • सामाजिक अन्याय से पीड़ा। अन्याय और स्वतंत्रता की कमी के कारण।
  • मौत के बारे में अक्सर प्रलाप। मानव के क्षणभंगुरता के बारे में विचार।
  • इस तरह के मनोवैज्ञानिक विकार में आत्महत्या का विचार भी आम है
  • शारीरिक अभिव्यक्तियाँ। जैसे थकावट, अनिद्रा, हाइपर्सोमनिया और खाने के विकार।

हाई इंटेलेक्चुअल क्षमता वाले लोगों में एक आम तरह का डिप्रेशन

अस्तित्वगत डिप्रेशन को एक सिद्धांत में एकीकृत किया गया है जिसे मनोचिकित्सक काज़िमीरज़ डाब्रोवस्की (1902-1980) ने विकसित किया। इस दृष्टिकोण को पॉजिटिव डिसइंटीग्रेशन कहा जाता है। यह इन व्याख्याओं पर आधारित है:

  • लोग व्यक्तिगत विकास के पांच चरणों से गुजर सकते हैं।
  • हालाँकि लगभग 70% आबादी पहले तीन चरणों से आगे नहीं बढ़ पाती। यह एक ऐसा विकास है जो लोगों को समाज द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का आदी बनाता है, जब तक थोडा-थोड़ा करके वे वे इसमें अपना स्थान बना लेते और उसमें ढल जाते हैं।
  • इसके विपरीत 30% लोग व्यक्तिगत विकास के चरम पर पहुंच जाते हैं। लेकिन यह उन्हें अधिक ज्ञान या सामग्रिक कल्याण की ओर ले जाने की बजाय अस्तित्व संबंधी संकट की ओर ले जाता है। समाज उनसे जो उम्मीद करता है वे अपने को उसका हिस्सा नहीं महसूस कर पाते।
  • इसे डॉ. डाब्रोवस्की ने “पॉजिटिव डिसइंटीग्रेशन” कहा। दूसरे शब्दों में जो कोई भी उस स्तर तक पहुंचता है वह खुद को सुधारने, विघटित होने और फिर से खुद को बनाने के लिए बाध्य है।
  • हालाँकि उनके लिए खुद पर संदेह करना, पीड़ा महसूस करना और कुछ समय के लिए उन्हें घेरी हुई चीजों का कोई अर्नेथ न ढूंढ पाना आम है।
  • अति बुद्धि वाले लोगों में इस तरह की पीड़ा आम है, क्योंकि ये पुरुष और महिलाएं अक्सर अस्तित्व संबंधी अवसाद से पीड़ित होते हैं।

अस्तित्वगत अवसाद वाले लोगों में घूम-फिर कर आने वाले विचारों में सबसे ज्यादा है, जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

थेरेप्युटिक स्ट्रेट्जी

क्या हम एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन का इलाज कर सकते हैं? किसी भी अन्य प्रकार के मानसिक समस्या की तरह यह स्थिति भी इलाज योग्य है।

आम तौर पर थेरेप्युटिक स्ट्रेट्जी को अलग करना और प्रत्येक रोगी की जरूरतों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। दरअसल मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के अलावा कुछ रोगियों को औषधीय इलाज (एंटीडिप्रेसेंट) से भी लाभ हो सकता है। लेकिन उच्च बौद्धिक क्षमता वाला व्यक्ति कैसे डिप्रेशन से पीड़ित हो सकता है?

  • कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी बहुत अच्छी रणनीति है। यह उन्हें उन विचारों को ज्यादा सकारात्मक दृष्टिकोणों की ओर ले जाने में मदद करता है जिससे वे जीवन में एक नया अर्थ पा सकें। इसके अलावा यह उन्हें उन लक्ष्यों को स्थापित करने में मदद करता है जिन्हें वे पा सकते हैं, जिसका अर्थ है कि वे भविष्य के बारे में फिर से उत्साहित होंगे।
  • सबसे नकारात्मक या जटिल भावनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए इमोशनल मैनेजमेंट पर काम किया जाना चाहिए। लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि रोगी पीड़ा और नेगेटिविटी के बोझ के बिना विकसित करना जारी रखे।
  • स्वीकृति और प्रतिबद्धता थेरेपी (ACT)। इस प्रकार का दृष्टिकोण मरीजों को यह समझने की अनुमति देता है कि दुनिया हमेशा वह नहीं चाहती जो वे चाहते हैं। इस तरह हम सभी को अनिश्चितता, विरोधाभास और अन्याय को स्वीकार करना चाहिए। इसके बजाय, हमें मूल्यों और लक्ष्यों को स्थापित करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए।

हमें एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन को संबोधित करना चाहिए

संक्षेप में, भले ही हम डायग्नोस्टिक मैनुअल में एग्ज़िस्टेंशियल डिप्रेशन को नहीं पाते हैं, लेकिन इससे पीड़ित लोगों की भलाई को ध्यान में लाने के लिए असरदार इलाज और रणनीतियाँ हैं। हालाँकि इसके कारण किसी मरीज को डॉक्टर के पास जाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन दुनिया भर में उनके बारे में उनकी भावनाएँ उन्हें मदद लेने के लिए प्रेरित करती हैं।



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