5 लक्षण कार्डियक अरेस्ट के जो केवल महिलाओं में दिखते हैं
हृदय गति का रुकना या कार्डियक अरेस्ट महिला और पुरुष दोनों को शिकार बनाता है। विशेष बात यह है कि कुछ लक्षण केवल महिलाओं में ही दिखाई देते हैं।
इनको नजरअंदाज करने की बजाय इन पर ध्यान दीजिये। मर्ज की नब्ज़ को शुरुआत में ही पकड़ लेने में ये आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। वहीं, अपनी या अपने किसी करीबी की हृदय गति रुकने पर ये लक्षण सही समय पर कदम उठाने में सहायता कर सकते हैं।
हमें यह बात समझनी होगी कि दुनिया भर में असमय मौतों के सबसे बड़े कारणों में कार्डियक अरेस्ट भी है।
हमारा शरीर हमें कुछ ऐसे विशिष्ट संकेत भेजता है जिन्हें हम नज़रअंदाज नहीं कर सकते हैं और जो अंततः हमारी ज़िंदगी बचा सकते हैं।
समय पर कदम उठाना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि डिफाइब्रिलेशन (दिल की धड़कन सामान्य करने के लिए बिजली के झटके देने की प्रक्रिया) की सहूलियत मिल जाने पर लोगों के जीवित रहने की संभावना ज़्यादा रहती है।
अगर मौके पर डिफाइब्रिलेशन (defibrillation) का विकल्प उपलब्ध नहीं है तो कार्डियक अरेस्ट होने पर व्यक्ति को कृत्रिम श्वसन (CPR, cardiopulmonary resuscitation) दिया जाना चाहिए।
मामला कैसा भी हो, समय पर लक्षणों की पहचान करना सबसे महत्वपूर्ण है।
कार्डियक अरेस्ट
वैसे दिल में एक आंतरिक प्रणाली होती है जो उसकी धड़कनों पर नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। फिर भी कई स्थितियों में दिल की धड़कन अनियमित हो सकती है। इसे एरिद्मिया (arrhythmia) या अतालता कहते हैं।
एरिद्मिया के कारण दिल की धड़कन धीमी, तेज़ या यहां तक कि बिलकुल बंद हो जाती है।
ऐसे मामलों में अचानक हृदय गति रुक जाती है। हालांकि इसे हार्ट अटैक या दिल का दौरा पड़ना मानने की भूल नहीं करनी चाहिए।
कई संभावित कारणों की वज़ह से कार्डियक अरेस्ट हो सकता है। इनमें प्रमुख हैंः
- हृदय रोग
- फिजिकल स्ट्रेस
- जेनेटिक स्थितियां
कार्डियक अरेस्ट के संकेत जो केवल महिलाओं में दिखते हैं
1. पीठ, गर्दन, जबड़ा और बांह में दर्द
अगर आपकी पीठ, गर्दन, जबड़ा और बांह में तकलीफ़ है तो अत्यंत सावधानी बरतें क्योंकि इन लक्षणों को बड़ी आसानी से ग़लत समझ लिया जाता है। सच यह है कि ये आने वाली समस्या के बारे में स्पष्ट संकेत भी हो सकते हैं।
चाहे दर्द कुछ वक्त लेकर चढ़ा हो, धीरे-धीरे या तेज़ हो, और खासकर अगर यह अचानक उठा हो – अगर आपको इस तरह का कोई दर्द महसूस हो रहा है तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें।
2. मतली (nausea) के साथ पेट में दर्द
अगर आपको पेट में दर्द के साथ-साथ नॉजीआ भी आ रही है तो सावधान रहें। यह कार्डियक अरेस्ट का एक और स्पष्ट संकेत हो सकता है।
आप इसे फूड पॉज़निंग या फ्लू और उसके साइड इफेक्ट मानने की भूल कर सकती हैं। इसके बावजूद, अगर आपको पेट में बहुत अधिक दबाव महसूस हो रहा है तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें।
3. सांस लेने में समस्या और चक्कर आना
अगर बार-बार सांस की समस्याएं पेश आ रही हैं तो आपको यह जांच अवश्य करनी चाहिए कि कहीं इसके साथ अन्य लक्षण भी तो मौजूद नहीं हैं।
4. कोल्ड स्वेट्स (Cold sweats)
अचानक कोल्ड स्वेटिंग होना एक और ऐसा लक्षण है जिसे महिलाएं कार्डियक अरेस्ट होने पर महसूस कर सकती हैं। इसे हल्के में बिलकुल न लें।
ऐसे में सावधानी बरतें और यह न मान लें कि ऐसा रोज़मर्रा के कामकाज से हुए तनाव या फिर ज़्यादा चिंता करने के कारण हुआ है। अगर पहले आपकी अचानक तबीयत ऐसे नहीं बिगड़ी है तो जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से मुलाक़ात करें।
5. बहुत जल्द और बार-बार थकना
क्या आप कुछ ही मिनटों में थक जाती हैं? क्या ऐसा बार-बार होता है? अगर ऐसा है तो आगे लिखी बात पर ज़रूर ध्यान दें।
अगर आराम करने के बाद भी आप खुद को इतना थका हुआ पाती हैं कि सो कर उठने या चलने जैसे आसान काम भी नहीं कर सकती हैं, तो यह एक ख़तरनाक लक्षण है।
इसे एक बड़े ख़तरे के तौर पर ही पहचानें।
उपचार
अगर आप कार्डियक अरेस्ट की स्थिति से गुजर चुकी हैं तो अनुभव के आधार पर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आपको अपने स्वास्थ्य को लेकर और सावधानी बरतनी चाहिए ताकि ऐसा दोबारा न सहना पड़े।
- आपको स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाली आदतें छोड़नी होंगी जैसे कि तंबाकू या शराब का सेवन और आरामदायक जीवनशैली (जिसके कारण मोटापा बढ़ता है) भी।
- इसके अलावा आपको रक्त चाप, कोलेस्ट्रॉल और मधुमेह पर लगातार नियंत्रण के लिए एक्सरसाइज भी करनी चाहिए।
यह भी न भूलें कि कई तरह की दवाएं हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक हैं।
हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि यहां दी गई सलाह उन महिलाओं के लिए है जो हृदय से संबंधित बीमारियों से पीड़ित हैं। यह महज सलाह ही है, और इसका उद्देश्य आपकी जानकारी को बढ़ाना है। किसी भी तरह की शारीरिक समस्या की स्थिति में केवल अपने निजी डॉक्टर को ही सर्वोत्तम उपचार निर्धारित करने दें।
स्वस्थ जीवनशैली, नियमित एक्सरसाइज और स्ट्रेस फ्री रूटीन ख़ुशहाल जीवन की तीन सबसे बड़ी बुनियादी बातें हैं।
- Pedreira, M. (2016). Infarto agudo de miocardio en la mujer, ¿es diferente que en los hombres? In I. Fernández, J. J. Gómez de Diego, M. López, D. Marzal, N. Murga, & R. Vidal (Eds.), Cardiología hoy 2016. Resumen anual de los avances en investigación y cambios en la práctica clínica (p. 207). Sociedad Española de Cardiología. https://doi.org/10.1111/j.1752-1734.2009.01350.x.
- Cabadés, A., López-Bescós, L., Arós, F., Loma-Osorio, Á., Bosch, X., Pabón, P., & Marrugat, J. (2004). Variabilidad en el manejo y pronóstico a corto y medio plazo del infarto de miocardio en España: el estudio PRIAMHO. Revista Española de Cardiología, 52(10), 767–775. https://doi.org/10.1016/S0300-8932(99)75004-9
- Lauer, T., & Kelm, M. (2011). Tratamiento inicial prehospitalario del infarto agudo de miocardio. Deutsche Medizinische Wochenschrift. https://doi.org/10.1093/eurheartj/ehr236