पार्किंसन रोग से लड़ने के लिए ऑरिक्युलोथेरेपी
जो दवाएं हम पार्किंसन रोग (Parkinson’s disease) के इलाज में इस्तेमाल करते हैं, वे क्यूरेटिव यानी मर्ज को ठीक करने वाली नहीं होती हैं। इसके अलावा रोगी के जीवन में अलग-अलग मोड़ पर उनकी खुराक बढ़ाई जानी चाहिए। दुर्भाग्य से यह आमतौर पर रोगियों के जीवन की बेहतर गुणवत्ता में नहीं बदलता है। पार्किंसन रोग का कोई इलाज नहीं है। हालाँकि, कुछ नए ट्रीटमेंट सामने आए हैं। इनमें से एक है ऑरिकोथेरेपी।
ऑरिक्युलोथेरेपी की खोज (The Discovery of Auriculotherapy)
साल 2001 में जर्मनी में खोजी गयी यह थेरेपी पार्किंसन और अन्य न्यूरो डिजेनेरेटिव रोगों के इलाज के लिए उपयुक्त है। इनमें मल्टीपल स्केलेरॉसिस (sclerosis), रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम (restless legs syndrome), वैस्कुलर डिमेंशिया (vascular dementia), पिक रोग (Pick’s disease) और अल्जाइमर (Alzheimer’s) शामिल हैं।
इस थेरेपी में क्या होता है?
इसमें कान के कार्टिलेज में टाइटेनियम माइक्रो इम्प्लांट लगाया जाता है। दूसरे शब्दों में, रोगी की सेहत के आकलन के बाद डॉक्टर कान के कार्टिलेज में छोटी और महीन टाइटेनियम सुइयों को प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया अपनाता है।
कुल मिलाकर, यह पूरी तरह से दर्द रहित प्रक्रिया है जिसका कोई साइड-इफ़ेक्ट नहीं है। उल्लेखनीय रूप से, यह पहले से ही दुनिया भर में 5000 से ज्यादा लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर चुका है।
ऑरिक्युलोथेरेपी ट्रीटमेंट
सबसे पहले यह समझने के लिए कि यह उपलब्धि कितनी अहम है, आपको यह याद रखना होगा कि पार्किंसन रोग स्वयं कैसे प्रकट होता है। यह रोग तब होता है जब अन्य कारकों के बीच, मस्तिष्क के पुष्ट निग्रह (substantia nigra ) के क्षय होने के परिणामस्वरूप न्यूरॉन पर्याप्त डोपामाइन उत्पन्न नहीं करते हैं।
इस प्रकार यह एक तरह की मोटर से जुड़ी क्षति का परिणाम है जो धीरे-धीरे गतिविधियों में प्रकट होता है। संक्षेप में, इसका मतलब है कि पार्किंसन रोग से प्रभावित लोग धीमे हो जाते हैं और लचीलापन, समन्वय और संतुलन खो देते हैं।
इसलिए इस विशेष इलाज का प्रारंभिक बिंदु ऑरिकुलर कार्टिलेज है। इसके तंत्रिकाओं के कई छोर होते हैं। डॉक्टर शरीर के पंगु हो चुके निजी तंत्र को एक्टिवेट करने के लिए एक तरह के प्रेशर सिस्टम के जरिये त्वचा के नीचे सुइयों को डालते हैं। इसके अलावा, यह डोपामाइन और/ या अन्य न्यूरोट्रांसमीटर के उत्पादन को रेगुलेट करने में मदद करता है।
इस तकनीक को ऑरिकुलर थेरेपी (auricular therapy), कान का एक्यूपंक्चर या ऑरिकुलोएक्यूपंक्चर के रूप में भी जाना जाता है।
आश्चर्यजनक रूप से, ऑरिकुलर इम्प्लांटोलॉजी एक स्थायी, प्राकृतिक स्टिमुलस है जो रोग के लक्षणों को कम कर सकता है और रोग के विकास को धीमा कर सकता है।
कुल मिलाकर, इम्प्लांट से पहले डॉक्टर कई कारकों को ध्यान में रखते हैं। इनमें रोगी के लक्षण, उसकी मनोवैज्ञानिक अवस्था, बीमारी की गंभीरता और अब तक ली गई दवाएं शामिल होती हैं।
इस इलाज का विकास
पेशेवरों ने कई वर्षों के दौरान व्यवस्थित रूप से ऑरिक्युलोथेरेपी विकसित की है। आज यह प्रत्येक रोगी के लक्षणों के आधार पर माइक्रोइम्प्लांटेशन पॉइंट के बारे में कई स्पेक्ट्रम प्रदान करता है। अब ज्यादा व्यक्तिगत इलाज मुहैया कराना संभव है।
पारंपरिक एक्यूपंक्चर से अलग यह इलाज आपको एक ही सेशन में कई और सुइयों को सम्मिलित करने की सहूलियत देता है। इसके अलावा, पेशेवर टाइटेनियम सुइयों को स्थायी रूप से इम्प्लांट करते हैं। इस प्रकार रोगियों को उन्हें बदलना नहीं होगा। हालांकि, फॉलोअप ज़रूर करना पड़ता है।
जो भी हो उन सुइयों की संख्या निर्धारित करने के लिए रोगी का विश्लेषण करना आवश्यक है।
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रोगी का बयान
पार्किंसन रोग के मरीज जो पहले से ही ऑरिक्युलोथेरेपी ले चुके हैं, उनके मुताबिक़ उन्होंने कई तरह के लाभों के अलावा निम्नलिखित फायदे महसूस किये हैं:
- एंग्जायटी से राहत
- गतिविधियों में आसानी
- मांसपेशियों की कठोरता में कमी
- दर्द और दूसरी शारीरिक तकलीफों से राहत
- बेहतर संतुलन (पैरावेर्टेब्रल मांसपेशियों की मजबूती के कारण)
- दवा की खुराक में कमी और फायदों में बढ़ोतरी
कुल मिलाकर, सेंटर फॉर रीजेनरेटिव मेडिसिन दुनिया भर में पंद्रह वर्षों से पूरी तरह से व्यक्तिगत रूप से पार्किंसन रोग का इलाज कर रहा है। यह सेंटर हमेशा अत्याधुनिक गुणवत्ता की ओर रिसर्च करता रहा है।
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