बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन के 6 संकेत
चूमना, गले लगाना, सहलाना और सलाह देना वे संकेत हैं जिनका प्रदर्शन मातापिता को, अपने बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन रोकने के लिए करना चाहिए।
मोटे तौर पर, बच्चों पर स्नेह प्रकट करना स्वस्थ मनो-सामाजिक विकास में सहायक होता है।
बच्चों का विकास लगभग पूरी तरह से मातापिता, या वयस्क अभिभावक पर निर्भर करता है। यह सिर्फ आर्थिक या शिक्षा के दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सच है।
मातापिता अपने बच्चों के लिए स्नेह, प्रेम और समझदारी दिखाएँ तो इससे ज्यादा संतोषप्रद और कुछ भी नहीं होता। यह उन्हे एक स्वस्थ वातावरण में बड़े होने और अच्छी आदतें विकसित करने में मदद करेगा। ये आदतें उन बातों का अनुकरण है जिन्हे उन बच्चों ने घर में सीखा है।
फिर भी, बहुत से बच्चों में स्नेह का अभाव होता है। यह या तो उनके परिवार या उनके नजदीकी परिवेश के कारण होता है। जब यह होता है तब बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन के परिणाम दिखाई देने लगते हैं, जो सीधे उनके आचरण पर असर डालता है।
बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन के संकेत क्या है?
बचपन के दौरान, बच्चों को अपने सबसे नजदीकी व्यक्तियों से स्नेह के दिखावे की जरूरत होती है। इससे वे महसूस करते हैं कि उन्हें प्यार किया जाता है और वे सुरक्षित हैं। फिर भी, जब बच्चा बड़ा होने लगता है, तब मातापिता स्नेह के संकेत देने में कमी करने लगते हैं।
कभी-कभी काम के लंबे समय और भागदौड़ की आधुनिक जीवन शैली के कारण, वयस्क व्यक्ति कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं। इनमें बच्चों को प्रेम का हाव-भाव दिखाना शामिल है जो उन्हें याद दिलाता है कि वे कितने अहम हैं।
स्नेह का अभाव बच्चों को निरंतर अकेला और छोड़ा गया महसूस कराता है। यह मातापिता और बच्चों के बीच संवाद को भी कमजोर बनाता है। इसका असर उनके आत्म-सम्मान पर पड़ सकता है। यह बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन का एक मुख्य कारण है।
यह पता करने के लिए कि क्या आपके बच्चे को आपसे ज्यादा स्नेह प्रदर्शन की जरूरत है, आपको नीचे दी गई समस्याओँ की जानकारी होनी चाहिए कि वे :
- एक “परेशान बच्चा” हैं और उन्हें दूसरे व्यक्तियों से बातचीत करने में परेशानी होती है।
- इससे हमेशा रक्षात्मक और सतर्क कहते हैं कि उनके इर्द-गिर्द क्या हो रहा है ।
- चाइल्डहुड स्ट्रेस से भुगतते हैं।
- तनाव के ऊँचे लेवेल्स के कारण इम्यून सिस्टम की कमजोरी के शिकार हैं।
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1.आज्ञा नहीं मानना
बच्चों में भावनात्मक डिप्राइवेशन के कारण, ध्यान आकर्षित करने की जरूरत पैदा होती है। ध्यान का केंद्र बनने के लिए बच्चे मातापिता की आज्ञा नहीं मानने और उनमें अनुचित आचरण करने की प्रवृत्ति होती है, जैसे कि टैंट्रम्स, और सार्वजनिक स्थानों में रोना।
जो बच्चे अपने मातापिता का प्यार और ध्यान चाहते हैं वे अक्सर उटपटांग हरकतें करते हैं। और यदि इससे भी उनकी मनचाही नहीं मिलती तो इनकी अधिकता और बारंबारता बढ़ा देते हैं। शिशुओँ में आज्ञा नहीं मानने के औसत संकेत हैं:
- कमजोर हंसी
- आक्रामकता
- भयानक गुस्सा
- आवेगशीलता
- अचानक मूड बदलना
2.आक्रामकता
जब बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, तो सबसे अच्छा है उनकी बात सुनना और वे जो भी कहते हैं उसे अहमियत देना। इस तरह, वे महसूस करेंगे कि उन्हें भाव दिया जा रहा है। वे जिस चीज के बारे में चिंतित हैं उसे कहने के लिए उनमें पर्याप्त आत्मविश्वास आ जाएगा।
3.असुरक्षा
भावनात्मक खालीपन और स्नेह का अभाव झेलने पर, बच्चे अक्सर असुरक्षित महसूस करते हैं। इससे दूसरों से बातें करते हुए उन्हें डर लगने लगता है।
4. डर
बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन, जिसका इलाज किसी विशेषज्ञ से नहीं कराया जाता, उनमें खालीपन और अविश्वास का भाव पैदा करता है। दुर्भाग्यवश, यदि इस पर उचित तरीके से ध्यान नहीं दिया जाए तो यह बड़े होने पर बच्चों के संबंधों में मौजूद रहेगा।
छोड़ दिए जाने का भय शिशु तब ग्रहण कर लेते हैं, जब उनके मातापिता और संबंधियों से उनकी जरूरत के मुताबिक स्नेह नहीं मिलता। इस अभ्यास को पीछे छोड़ना मुश्किल है।
साधारणतः, बच्चे को पारिवारिक साइकोलॉजिस्ट या थेरापिस्ट के पास ले जाना जरूरी है। यह उन्हे अपने डर पर काबू पाने में, और मातापिता और बच्चों के बीच संबंध मजबूत करने में मदद करेगा।
5.पढ़ाई-लिखाई में खराब प्रदर्शन
बच्चों में, ध्यान दिए जाने और स्नेह के अभाव का परिणाम लर्निंग डिसॉर्डर हो सकता है। या होमवर्क करते समय उनमें प्रेरणा का अभाव हो सकता है। कई मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, जिन बच्चों को इमोशनल डिप्राइवेशन होता है उन्हें भाषा में समस्या होती है और पढ़ाई-लिखाई में उनका प्रदर्शन खराब होता है।
साधारणतः, भाषा विकसित करने में उन्हें दूसरे बच्चों से ज्यादा समय लगता है और उनमें मिलनसारिता नहीं होती। वे अपने भावनाओँ की काट-छाँट करते हैं और साधारणतः अपने आसपास के लोगों के साथ किसी भी तरह के स्नेह से बचते हैं।
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6.इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से संलग्नता
कुछ मातापिता अपने बच्चों की देखरेख करने के लिए ‘डिजिटल आया’ चुन लेते हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और टेलीविजन के साथ अपने बच्चों को अन्यमनस्क होने के लिए छोड़ देने की प्रवृत्ति एक व्यक्तित्वहीन परवरिश के तरीके की सृष्टि करती है।
दुर्भाग्यवश, यह शिशु एक तकनीकी बुलबुले से ढक जाते हैं जो मानवों के असली व्यवहारिक जीवन से बिल्कुल अलग है।
निष्कर्ष
स्नेह का अभाव बच्चों में अपने प्रिय व्यक्तियों को खो देने का एक बहुत बड़ा डर पैदा कर देता है। दुर्भाग्यवश, इसका नतीजा बच्चे में यह होता है कि वह हमेशा अपने आसपास के लोगों से सावधान रहता है।
जो शिशु ऐसे घरों में बड़े होते हैं जिनमें स्नेह का अभाव होता है वे स्थायी चिंता की अवस्था में रहते हैं। इन बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन का असर होना स्वाभाविक है।
यह याद रखना जरूरी है कि बच्चों को निरंतर स्नेह प्रदर्शन और ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है। स्नेह के संकेत उनका व्यक्तित्व बनाने में और उनके दिमागी विकास में फायदा करने के लिए निर्णायक होते हैं।
स्नेह का अभाव असुरक्षित व्यक्तित्व का कारण है। इसके लक्षण हैं – भावनात्मक अपरिपक्वता, स्वार्थीपन और पहचान की समस्याएँ। जब बच्चे प्रेम-विहीन वातावरण में बड़े होते हैं, उन्हें व्यक्तियों को साथ स्थायी आपसी संबंध बनाए रखने में समस्या होती है। अक्सर उनमें मूल्य-बोध का संघर्ष होता है।
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