कैसा होता है, अपने बाइपोलर डिसऑर्डर का शिकार होने का एहसास?
कुछ लोग बाइपोलर डिसऑर्डर (bipolar disorder) को बहुत हल्के-फुल्के तौर पर ले लेते हैं। वे नहीं समझ पाते कि दरअसल यह एक वास्तविक और बेहद जटिल अवस्था होती है। इस मनोदशा की पहचान कर उसका इलाज करना बहुत ज़रूरी होता है। इसी पर इससे ग्रस्त व्यक्ति और उसके परिजनों की खुशहाल ज़िन्दगी का पूरा दारोमदार होता है।
सबसे पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि बाइपोलर डिसऑर्डर कोई विकल्प या जीने का तरीका न होकर एक मनोवैज्ञानिक समस्या है। बाइपोलर डिसऑर्डर मल्टीपल पर्सनालिटी (बहुव्यक्तित्व) डिसऑर्डर से अलग है। ये दोनों बिल्कुल अलग अवस्थाएं होती हैं।
बाइपोलर लोगों को खुद को पहचानने में कोई दिक्कत नहीं आती। लेकिन उनका मूड स्विंग इस कदर तेजी से होता है कि रोगी का बर्ताव एक चरम से दूसरी चरम अवस्था में आता-जाता रहता है, और इसकी व्याख्या करनी मुशकिल होती है।
बाइपोलर डिसऑर्डर की डायग्नोसिस
इस अवस्था की डायग्नोसिस बहुत जटिल होती है, खासकर इसलिए कि रोगी अक्सर मदद लेने से मना कर देता है। उसके चंचल व्यवहार की वजह से उसका इलाज कर पाना और भी मुश्किल हो जाता है। नतीजतन, इस बीमारी को अक्सर पागलपन या डिप्रेशन समझ लिया जाता है।
बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त किसी व्यक्ति का निदान करने के लिए किसी विशेषज्ञ को काफ़ी लंबे समय तक उसकी स्थिति का आकलन करना होगा। हालांकि इस रोग का कोई ठोस इलाज तो नहीं है, रोगी की दैनिक गतिविधियों में छोटे-मोटे बदलाव लाकर इसका ट्रीटमेंट किया जा सकता है। कुछ आम सुझाव इस प्रकार हैं:
- नियमित एक्सरसाइज करना
- मनोवैज्ञानिक सहायता लेना
- योग या अन्य आरामदायक गतिविधियों में भाग लेना
लेकिन इन सब चीज़ों से भी ज़्यादा अगर उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत होती है तो वह है अपनों के साथ की। उनके इलाज में उनका परिवेश एक अहम भूमिका निभाता है।
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बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्ति कैसे पेश आता है?
1. डांवाडोल मूड ( Drastic mood swings)
बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्ति का मूड डांवाडोल रहता है। कोई बाइपोलर व्यक्ति बेकाबू उत्साह से गहरी उथल-पुथल वाली निराशा तक का लंबा सफ़र पलक झपकते ही तय कर सकता है। इस बदलाव का कारण ऐसी छोटी-छोटी बातें भी हो सकती हैं जो मानसिक रूप से संतुलित किसी व्यक्ति के लिए मामूली हो।
किसी बाइपोलर व्यक्ति का मूड काफ़ी देर तक एक जैसा ही रह सकता है, फिर भले ही वह असंतुलित, अवसादग्रस्त या उन्मादी ही क्यों न हो। लेकिन ऐसा ज़रूरी नहीं कि मूड स्विंग का कारण कोई विशेष परिस्थिति या पैटर्न ही हो।
कभी-कभी उन्हें कुछ देर के लिए बहुत अच्छा महसूस होता है। वे इतना ऊर्जावान महसूस करते हैं कि उन्हें नींद भी नहीं आती। बल्कि वे तो कई दिनों तक सोए बगैर खोये-खोये और चिड़चिड़े-से भी रह सकते हैं। उन्माद के इस चरण में वे हर चीज़ हद से ज़्यादा कर देते हैं: अत्यधिक कामेच्छा, बेहद ऊर्जा, और यहाँ तक कि आक्रामक बर्ताव भी।
2. उदासी ( Sadness)
एक बाइपोलर व्यक्ति बहुत उदास महसूस करता है। इससे उसमें बेचैनी, दुख, हताशा और निराशा की तीव्र भावनाएं भरती हैं। सभी चीज़ों में उसकी रुचि भी ख़त्म हो जाती है, उन चीज़ों में भी, जो उसे अपने उन्माद के दौरान करनी अच्छी लगती थी।
इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के लिए अपने गहरे अवसाद का कारण न समझ पाना बहुत ही निराशाजनक होता है। उसके मन में आत्महत्या के ख्याल भी आ सकते हैं।
3. मनोरोग के लक्षण (Psychotic traits)
इन बदलावों का एक कारण साईकोसिस होता है, जो अक्सर बाइपोलर डिसऑर्डर के साथ देखने में आता है। साईकोसिस एक ऐसी मानिसक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति का परिस्थितियों, हाव-भावों, शब्दों और अन्य चीज़ों को देखने का नज़रिया बिलकुल बदल जाता है।
- कोई साईकोटिक इंसान अपने आसपास की चीज़ों का गलत मतलब निकाल सकता है।
- गंभीर स्थिति में उसे मतिभ्रम भी हो सकता है।
4. हाइपोमेनिया (Hypomania)
बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्ति में हाइपोमेनिया के लक्षण भी देखे जा सकते हैं। हाइपोमेनिया में हमारा मूड निरंतर बहुत अच्छा या बहुत खराब बना रहता है। अपने सामान्य मूड के विपरीत उसका बर्ताव अति संवेदनशील भी हो सकता है। ऐसा कम से कम चार या पांच दिन तक रहता है। हाइपोमेनिया में आत्मसम्मान का बेहद बढ़ जाना या अपनी श्रेष्ठता की भ्रान्ति हो जाना भी आम होता है। वह सामान्य से ज़्यादा बात भी करने लग सकता है।
आमतौर पर इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी होता है कि बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्ति के मूड बहुत तीव्र और कठोर होंगे।
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