मिसोफ़ोनिया की समस्या कितना तकलीफदेह
मिसोफ़ोनिया उन स्थितियों में से एक है जो लगभग सभी के लिए अदृश्य बनी हुई है। जो लोग मिसोफ़ोनिया से पीड़ित होते हैं, वे उन आवाजों के कारण यातना में जीते हैं जिनकी ओर दूसरे लोग ध्यान भी नहीं देते। उदाहरण के लिए च्युइंगगम चबाने की आवाज़, बारिश की टपर-टपर, कागज पर पेंसिल से खरोंचने की आवाज़।
जो बात चीजों को और भी बदतर बना देती है, वह यह है कि कई हेल्थ प्रोफेशनल मिसोफ़ोनिया पीड़ित लोगों की शिकायतों की उपेक्षा करते हैं। वे इन रोगियों को हिस्टीरियाग्रस्त , बाइपोलर या सिज़ोफ्रेनिक के रूप में लेबल करते हैं।
मिसोफ़ोनिया के साथ जीना कोई आसान काम नहीं है। मरीजों को न केवल उन दुखों से निपटना पड़ता है जो वे लगातार असहनीय उत्तेजनाओं का सामना करते हैं। उन्हें समस्या की समझ न होने से भी निपटना पड़ता है। वर्तमान में आवाज के प्रति इस चयनात्मक अतिसंवेदनशीलता के लिए कोई इलाज उपलब्ध नहीं है।
मिसोफ़ोनिया क्या है?
मिसोफ़ोनिया शब्द का शाब्दिक अर्थ है “शोर से घृणा”। यह ऐसी समस्या है जिसमें व्यक्ति रोजमर्रा के शोर के लिए अस्वीकृति व्यक्त करते हैं। इसे साउंड सेंसिटिविटी की समस्या के रूप में परिभाषित किया गया है।
इस समस्या से पीड़ित लोग जब कुछ शोर सुनते हैं, तो वे परेशान होते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं या प्रहार करने की इच्छा रखते हैं। आवाज क्रोध, चिंता और घबराहट की भावनाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
मिसोफ़ोनिया पीड़ित सभी लोग किसी विशिष्ट आवाज के प्रति बराबर रूप से संवेदनशील नहीं होते हैं। सबसे आम ट्रिगर्स भोजन-चबाने, छींकने, निगलने आदि की आवाजें होती हैं, हालांकि कुर्सी के चरमराने या उंगलियाँ तोड़ने का शोर भी इसे ट्रिगर कर सकता है।
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मिसोफ़ोनिया के कारण और लक्षण
इस मामले में तमाम बातों से लगता है कि किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या के कारण लोग इससे पीड़ित होते हैं। उपलब्ध रिसर्च के अनुसार इन व्यक्तियों में इंटीरियर इनसुला (interior insula) में असामान्य एक्टिविटी दिखती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अवधारणा के आधार पर पैदा हुई भावनाओं को प्रोसेस करने में एक समस्या आती है।
इस समस्या को एक क्लिनिकल कंडीशन के बजाय एक लक्षण के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह बचपन में दिखाई देती है, लेकिन बाद में जीवन में मिसोफ़ोनिया के मामले सामने आते हैं। आवाजों को लेकर अत्यधिक चयनात्मक संवेदनशीलता और इससे उत्पन्न होने वाली एंग्जायटी के अलावा इस स्थिति की कोई अन्य अभिव्यक्तियाँ नहीं दिखती हैं।
यह तय करने का कोई विशिष्ट टेस्ट नहीं हैं कि व्यक्ति मिसोफोनिया से पीड़ित है या नहीं। बल्कि डायग्नोसिस आम तौर पर कुछ ध्वनियों के लिए किसी व्यक्ति की प्रतिक्रिया का परिणाम है। कई लोगों में कुछ ध्वनियों के लिए अरुचि हो सकती है, लेकिन मिसोफ़ोनिया पीड़ित लोग इस मामले में असंगत प्रतिक्रियाएं दिखाते हैं।
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मिसोफ़ोनिया के साथ जीना कैसा होता है?
डायग्नोसिस
मिसोफ़ोनिया किसी व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह से बदल देता है। शुरुआती नतीजों में से एक सोशल आइसोलेशन है। रोजमर्रे की आवाजों के प्रति किसी व्यक्ति की असहिष्णुता कितनी ज्यादा है, यह इस पर निर्भर करता है कि असुविधा और एंग्जायटी से बचने के लिए उसे दूसरों से अलग करने की जरूरत पड़ सकती है।
स्थिति बहुत थकाऊँ हो सकती है और व्यक्तियों को घर से दूर जाकर काम करने से रोक सकती है क्योंकि इससे लगातार शोर झेलना पड़ता है। कंप्यूटर कीबोर्ड या किसी अन्य व्यक्ति की सांस लेने जैसी आवाज़ से समस्या व्यक्ति के समाज से एकजुट हो पाने की संभावना को सीमित करती है।
मिसोफ़ोनिया पीड़ित लोग कभी-कभी हेडफ़ोन का उपयोग करने का फैसला करते हैं और हर वक्त म्यूजिक सुनते हैं। इससे वे अपने वातावरण के शोर से दूरी बना सकते हैं। इयरप्लग, नॉइज़-कैंसलिंग हेडफ़ोन या नॉइज़-कैंसलिंग हेलमेट का उपयोग कर सकते हैं।
कुछ प्रासंगिक तथ्य
वर्तमान में, मिसोफोनिया का कोई इलाज नहीं है। बस वही, इस मुद्दे को लेकर कई जांच चल रही हैं।
इस बीच, रोगियों को अनुकूली व्यवहार विकसित करने पर काम करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, ऐसी रणनीतियों की खोज करें जो सामाजिक अलगाव की आवश्यकता को रोकती हैं। मनोचिकित्सा विशेष रूप से है
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