बच्चों को प्लीज़, थैंक यू और गुड मॉर्निंग कहना सिखाने की अहमियत

"थैंक यू" कहने का महत्व, दूसरे व्यक्ति के साथ आदरपूर्वक व्यवहार करना है। यह याद रखना है कि जब आप कुछ मांगते हैं, तो "प्लीज़" कहना बच्चों को सिखाने योग्य अच्छी बातें हैं।
बच्चों को प्लीज़, थैंक यू और गुड मॉर्निंग कहना सिखाने की अहमियत

आखिरी अपडेट: 08 अक्टूबर, 2018

यह संभव है, आप खुद युवा पीढ़ी के हैं और आपके अभिभावकों ने आपको दूसरों का सम्मान करना सिखाया है। यह भी बताया है कि उनके साथ अच्छा बर्ताव करना जरूरी है ताकि बदले में आपके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाये। बच्चों को ये आदतें सिखाना जरूरी है।

इससे दैनिक आधार पर वे अच्छे उदाहरण स्थापित करेंगे और अधिक सम्मानित सामाजिक व्यवहार को प्रोत्साहित करेंगे जो हम सब के लिए कल को बेहतर बनायेगा।

आप मानें या न मानें, सबसे छोटी चेष्टाएँ दुनिया को भावनाओं से भर सकती हैं। आज हम आपको इसके बारे में सोचने के लिए आमंत्रित करते हैं।

“थैंक यू” कहना क्यों बच्चों को सिखाने लायक है

“थैंक यू”, “गुड मॉर्निंग” और “प्लीज़” कहकर जब आप कुछ मांगते हैं, तो यह महज शिष्टता नहीं, उससे अधिक कुछ होता है।

यह बच्चों को अपने से हटकर सोचने, अपने शुरुआती बचपन के आत्मकेन्द्रित दृष्टिकोण से दूर दूसरे लोगों और उनकी जरूरतों को पहचानना सिखाने का एक तरीका है। यह ऐसा कुछ है जिसे कम से कम छह साल की उम्र तक हो जाना चाहिए।

आइये थोड़ा करीब से देखें।

बच्चों का नैतिक विकास

जब बच्चों के नैतिक विकास की बात आती है तो बेशक लॉरेंस कोहल्बर्ग सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं।

उनका कहना था, हां, सब बच्चों के बीच अनगिनत भेद होते हैं, यहां तक कि भाई बहनों में भी अंतर होता है, लेकिन वे आम तौर पर जागरूकता, सम्मान और दूसरों की मान्यता के संबंध में विकास के एक ही पैटर्न का पालन करते हैं।

  • शुरुआती बचपन के दौरान, दो से पांच वर्ष की आयु वाले बच्चे सिर्फ अपने पुरस्कार और दंड से शासित होते हैं। वे समझते हैं, उन्हें स्नेह पाने और डांटने या दंड से बचने के लिए उन पर लागू किये गए नियमों का पालन करना चाहिए।
  • बचपन के दूसरे चरण में जाने पर सुनहरा युग शुरू होता है। छह और नौ साल की उम्र के बीच, वह व्यक्तिगत आत्मकेंद्रित दृष्टिकोण धीरे-धीरे कम हो जाता है।
  • जब बच्चे आठ से दस साल के होते हैं तो वे सामान्य हित के सिद्धांत को समझ पाते हैं और जानते हैं, दूसरों का सम्मान करने से खुद भी सम्मान मिलता है।
  • यह आम बात है, इस उम्र में वे अपने दोस्तों और भाई बहनों की सुरक्षा के लिए काम करेंगे। क्योंकि वे केवल अपने व्यक्तिगत अस्तित्व के बारे में ही नहीं बल्कि उससे कुछ ज्यादा के बारे में जागरूक होंगे।
  • धीरे-धीरे वे कुछ चीजों को अपमानजनक या अनुचित मानते हुए किशोरावस्था में एक गंभीर “आत्म-धार्मिकता” के साथ पहुंचेंगे।

शिष्टाचार की वजह से दुनिया से संपर्क करना आसान हो जाता है

चार साल के बच्चे को जब कोई उपहार देता है, तो आप आम तौर पर माता-पिता को कुछ इस तरह कहते सुनते हैं, “आप क्या कहते हैं?” इस पर बच्चा लगभग अनिच्छा या धीरे से जवाब देगा, “थैंक यू।”

  • इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे कितनी बार दोहराते हैं: एक ऐसा समय आयेगा जब यह न केवल स्वतःस्फूर्त हो जायेगा बल्कि उन्हें पता चलेगा कि इसका क्या अर्थ है।
  • जब वे क्लास में किसी चीज के लिए “प्लीज़” कहते हैं, तो मुमकिन है, वे देखें कि उनका साथी मुस्कराकर वह चीज देता है। बदले में, जब वे “थैंक यू” कहते हैं तो दूसरा बच्चा खुशी व्यक्त करता है।
  • यह सब जोरदार सम्बंधों को बढ़ावा देता है जो पॉजिटिव भावनाओं पर आधारित होते हैं।
  • मजबूरी में किसी को थैंक यू कहने की क्रिया को सहज और इच्छुक व्यवहार में बदलने की एक अद्भुत प्रक्रिया है जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगी।
  • पॉजिटिव कोशिशें प्यार का अहसास कराती हैं। जब आप दूसरों के साथ आदरपूर्वक व्यवहार करते हैं तो यह चीजों को आसान बनाता है।

सम्मानजनक परवरिश की ताकत

इसमें कोई संदेह नहीं है, आपने पहले से ही “रेस्पेक्ट्फुल पेरेंटिंग” शब्द के बारे में सुना है। यह एक सिद्धांत है जिसकी विलियम सीअर्स और जॉन बाउल्बी जैसे लेखकों ने चर्चा की है।

  • यह दिलचस्प आईडिया एक बच्चे के अपने माहौल के प्रति प्राकृतिक अनुकूलन को बढ़ावा देने, सहानुभूति और भावनात्मक बंधनों को प्रोत्साहित करने की जरूरत पर जोर देता है जो उन्हें अपनी आसपास की दुनिया, अन्य लोगों और स्वयं को बेहतर ढंग से समझने की अनुमति देगा।
  • रेस्पेक्ट्फुल पेरेंटिंग का मतलब है, आप शारीरिक निकटता, आलिंगन, पॉजिटिव शब्दों और निरंतर संपर्क के साथ माता-पिता और बच्चे के बीच एक स्वस्थ लगाव को प्रोत्साहित करते हैं।
  • पॉजिटिव शब्द इस तरह के विकास की कुंजी हैं।
  • इसलिए आपको सकारात्मक सुदृढीकरण के आधार पर अपने बच्चे की शिक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश करनी चाहिए। यह “थैंक यू”, “प्लीज़” कहने, धीरज रखने की जरूरत पर जोर देते हुए और इस तरह के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए अपने बच्चे के उचित समय का सम्मान करते हुए करना चाहिए।
  • रेस्पेक्ट्फुल पेरेंटिंग का तर्क है, नेगेटिव भावनाओं की तुलना में पॉजिटिव भावनाओं में ज्यादा ताकत होती है। मस्तिष्क लगातार एक ऐसी उत्तेजना की खोज में रहता है जो आपको जीवित रहने और बेहतर अनुकूलन सीखने में मदद करे।

“गुड मॉर्निंग,” कहना “प्लीज़” कहकर कुछ मांगना और दूसरों को थैंक यू कहना पॉजिटिव स्ट्रेंथ देता है, आपके बच्चे जब यह जान लेते हैं तो वे कभी भी यह करना बंद नहीं करेंगे।



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  • Shoshani, A., & Slone, M. (2017). Positive Education for Young Children: Effects of a Positive Psychology Intervention for Preschool Children on Subjective Well Being and Learning Behaviors. Frontiers in Psychology8, 1866. https://doi.org/10.3389/fpsyg.2017.01866

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