पोलियोमेलाइलिटिस की किस्में
कई तरह के पोलियोमेलाइलिटिस (संक्षेप में पोलियो) संक्रामक रोग हैं जो मुख्य रूप से मरीज के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने पोलियोवायरस को एक वायरल एजेंट माना है जो RNA और एक प्रोटीन कैप्सिड या खोल से बना है, और इस बीमारी का कारण बनता है।
कई स्टडी के अनुसार एक्सपर्ट ने तीन सेरोटाइप (विभिन्न किस्मों) को स्थापित किया है। विशेषज्ञों ने 1999 में भारत में आख़िरी सीरोटाइप PV-2 का पता लगाया था। इस तरह विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका उन्मूलन हो चुका है। लेकिन सीरोटाइप PV-1 और PV-3 आबादी में अभी भी मौजूद हैं और दोनों अत्यधिक संक्रामक हैं और लकवाग्रस्त पोलियोमेलाइटिस का कारण बनते हैं।
पोलियो और इसका वितरण
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसे आंकड़े बताए हैं जो लोगों को वैश्विक स्पोतर पर लियो वायरस के वितरण का अंदाजा दे सकते हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- 1988 में जब इस बीमारी से लड़ने का अभियान शुरू हुआ, तो उस समय विश्व स्तर पर 350,000 से ज्यादा मामलों का पता चला।
- रोकथाम और वैक्सीनेशन के प्रयासों से 2018 में दुनिया भर में सिर्फ 18 मामले दर्ज किए गए (99% गिरावट)।
- यह रोग मुख्य रूप से 5 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है।
आप देख सकते हैं, पोलियो मूल रूप से अब अतीत की बीमारी बन गया है। फिर भी इस ओर से ध्यान रखा जाना चाहिए। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि वायरस को इसकी जड़ से बिलकुल समाप्त नहीं किया गया तो 10 सालों में 200,000 से अधिक नए मामले हो सकते हैं।
पोलियो का टीका सफल रहा है, क्योंकि यह मूल रूप से वायरस को मिटा देता है।
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पोलियोमेलाइलिटिस की किस्में
क्लिनिकल स्टडी इस बात पर रोशनी डालती है कि पोलियो की चार मुख्य किस्में हैं। वे निम्नलिखित हैं:
- एसिम्प्टोमैटिक या सबक्लिनिकल पोलियो (Asymptomatic or subclinical polio): वैश्विक मामलों का लगभग 90%।
- मामूली नॉन-सीएनएस बीमारी (Minor non-CNS illness): 9% मामले। यह बुखार, अस्वस्थता, मतली, उल्टी, दस्त और कब्ज का कारण बनता है।
- गैर-लकवाग्रस्त एसेप्टिक मेनिंजाइटिस (Non-paralytic aseptic meningitis): 1 से 2% मामले।
- पैरालिटिक पोलियोमेलाइलिटिस (Paralytic poliomyelitis): 1% से भी कम मामले।
चूँकि प्रथम दो किस्में सौम्य होती हैं, हम अपना ध्यान नॉन पैरालिटिक एसेप्टिक मेनिन्जाइटिस और पैरालिटिक पोलियोमेलाइलिटिस पर केंद्रित करेंगे। नीचे हम आपको दोनों पैथोलोजी के बारे में जानने के लिए जरूरी सब कुछ समझा देंगे।
नॉन पैरालिटिक एसेप्टिक मेनिन्जाइटिस
वैज्ञानिक स्टडी के अनुसार नॉन पैरालिटिक एसेप्टिक मेनिन्जाइटिस एक संक्रामक प्रक्रिया है जो सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम (सीएनएस) के मेनिंज को प्रभावित करता है और उन्हें फूला देता है। यह निम्नलिखित लक्षण पैदा करता है:
- बुखार
- सिरदर्द और अकड़ी हुई गर्दन
- सामान्य बीमारी
- मांसपेशियों में दर्द
- भूख ख़त्म होना और उल्टी
दूसरे बिब्लियोग्राफिकल सूत्रों के अनुसार, वायरल एसेप्टिक मेनिन्जाइटिस (जैसे कि वह जिसका कारण पोलियोवायरस है) में एक अच्छा रोग का निदान होता है। इसे न सिर्फ पोलियोवायरस पैदा करता है बल्कि एंटरोवायरस, हर्पीसवायरस या एचआईवी भी इसका कारण बन सकते हैं।
इस तथ्य के बावजूद कि यह स्थिति घातक नहीं है, इसके लिए अस्पताल में भर्ती होने और एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत हो सकती है। हमने एंटीबायोटिक्स कहा, क्योंकि भले ही यह वायरस के कारण होता है, लेकिन डॉक्टर सबसे अधिक प्रभावित मरीजों में तुरंत इलाज शुरू करते हैं, क्योंकि यह एक बहुत ही खतरनाक बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस के खिलाफ एक निवारक उपाय है।
पैरालिटिक पोलियोमेलाइलिटिस
यह पोलियोमेलाइलिटिस की सबसे गंभीर अभिव्यक्ति है। जिन स्रोतों का हमने ऊपर जिक्र किया है, उनका अनुमान है कि हर 200 रोगियों में से एक घातक पैरालिसिस से पीड़ित होगा, जिसमें से 10% तक की मृत्यु मस्क्युलर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट की समस्याओं से हो जाएगी।
इस गंभीर किस्म का पता लगाना आसान है, क्योंकि लक्षण बहुत आक्रामक होते हैं। बिब्लियोग्राफिकल सोर्स बताते हैं कि, संक्रमण के पांच दिन बाद एक्यूट मायेल्जिया (मांसपेशियों में दर्द) और मांसपेशियों की ऐंठन को सीमित करने जैसी प्रक्रियाएं होती हैं, जो कि हाथ-पैरों की क्रोनिक कमजोरी की ओर जाती है। आमतौर पर संक्रमण के एक हफ्ते के भीतर पक्षाघात अपने चरम पर पहुंच जाता है।
एक्यूट स्टेज में मृत्यु दर 5 से 20% है। सबसे बुरा यह है कि एक बार होने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है। फिर भी, इन महत्वपूर्ण चरणों के बाद पैरालिसिस में वर्ष दर वर्ष सुधार होता है। यह उस पुनर्वसन प्रक्रिया (reinnervation process) के कारण होता है जिससे अप्रभावित न्यूरॉन्स गुजरते हैं।
प्रभावित क्षेत्र के आधार पर, तीन प्रकार के लकवाग्रस्त पोलियोमेलाइटिस हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- Spinal
- Bulbospinal
- Bulbar
इससे बचने वाले 50% रोगियों को आजीवन कमजोरी होती है, और 20% से 85% रोगियों में बचपन के पोलियोमेलाइटिस की हिस्ट्री बाद में पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम में देखी जाती है। यह प्रोग्रेसिव मसल एट्रोफी का कारण बनता है जो कार्यात्मक क्षमता को सीमित कर देगा।
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पोलियो के प्रकारों के बारे में क्या याद रखना चाहिए
जैसा कि हमने इस लेख में बताया, पोलियोमेलाइलिटिस ऐसी बीमारी है जो दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में अब नियंत्रण में है। इसके अलावा, 90% मामले बिना लक्षणों वाले अहिं जिससे आज इसके इसकी कोई डायग्नोस्टिक तस्वीर बनानी मुश्किल है।
दूसरी ओर, तीन खुराक के बाद 99% की प्रभावकारिता वाले बहुत प्रभावी मौखिक और इंट्रावीनस पोलियो वैक्सीन उपलब्ध हैं। इसलिए यदि इसे मिटाने के वैश्विक प्रयास जारी रहे तो पोलियो जल्द ही अतीत की बात हो जाएगा।
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