नार्कोलेप्सी की टाइप और डिग्री

नार्कोलेप्सी ऐसी समस्या है जो स्लीप साइकल में बदलाव का कारण बनती है। नार्कोलेप्सी की टाइप और उसकी डिग्री जानने के लिए आगे पढ़ें!
नार्कोलेप्सी की टाइप और डिग्री

आखिरी अपडेट: 09 नवंबर, 2020

नार्कोलेप्सी (Narcolepsy) जिसे जेलिनो सिंड्रोम (Gelineau syndrome) सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है, एक दुर्लभ समस्या है जिसका प्रतिफलन कई तरह से और कई रूपों में होता है। इसमें लोग अप्रत्याशित रूप से सो जाते हैं और दुनिया भर में आबादी का लगभग 0.1% हिस्सा इससे प्रभावित होता है।

नार्कोलेप्सी शब्द 19 वीं शताब्दी के अंत में जीन-बैप्टिस्ट एडुअर्ड जेलिन्यो द्वारा गढ़ा गया था। इस शोधकर्ता ने ही 1880 में पहली बार इसका बौरा दिया था। उसने यह नाम दो ग्रीक शब्दों, narke और lepsis के आधार पर दिया था, जिसका अर्थ इकट्ठे “नंबनेस अटैक” है।

नार्कोलेप्सी क्या है?

नार्कोलेप्सी एक क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल समस्या है जो स्लीप साइकल में गड़बड़ी का कारण बनती है। इसका मुख्य लक्षण दिन में तेज उनींदापन रहना है और अचानक उनींदापन के हमले को रोकने में असमर्थता है।

नार्कोलेप्सी की किसी भी प्रकार या डिग्री वाले लोगों को कई घंटों तक जागने में बहुत परेशानी होती है, भले ही वे जिन परिस्थितियों में हों। इस कारण यह जीवन की गुणवत्ता को अहम् रूप से प्रभावित करता है।

कुछ मामलों में यह समस्या मांसपेशियों की टोनिंग में अचानक कमी के साथ उभरती है, जिसे मेडिकल भाषा में कैटाप्लेक्सी (cataplexy) के रूप में परिभाषित किया गया है। यह तेज इमोशन के कारण हो सकता है और अंततः इसकी उपस्थिति नार्कोलेप्सी के प्रकार और डिग्री को परिभाषित करेगी।

इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और इस तरह का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है। हालांकि, कुछ दवाएं अचानक नींद के हमलों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसी तरह लाइफस्टाइल में बदलाव मददगार साबित हो सकता है, साथ ही सामाजिक और साइकोलॉजिकल सपोर्ट भी।

नार्कोलेप्सी क्या है?

नार्कोलेप्सी एक दुर्लभ समस्या है जो गंभीर स्लीप अटैक का कारण बनता है।

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रोग के लक्षण

नार्कोलेप्सी की मुख्य विशेषताएं हैं:

  • दिन में बहुत नींद आना। सतर्कता और एकाग्रता में कमी। यह आमतौर पर इसके उभरने का पहला लक्षण है, और उसके बाद अचानक सोने की इच्छा होती है।
  • कैटाप्लेक्सी (Cataplexy) : जैसा कि हमने ऊपर बताया है, यह सभी मामलों में दिखाई नहीं देता है, न ही समान तीव्रता के साथ।
  • स्लीप पैरालिसिस। हिलने-डुलने या बोलने में अस्थायी अक्षमता। विशेष रूप से, यह तब होता है जब कोई व्यक्ति सो जाता है या जागता है। वे आमतौर पर छोटे एपिसोड होते हैं।
  • आरईएम नींद (REM sleep) में बदलाव। REM स्लीप सबसे गहरी होती है। इस दौरान आम तौर पर आंख तेजी से गतिशील होती है। नार्कोलेप्सी वाला व्यक्ति किसी भी समय इस स्टेज में जा सकता है।
  • दु: स्वप्न (Hallucinations)। अगर व्यक्ति के सोने के बाद हो तो  इसे हिप्नेगॉजिक हेलोसिनेशन (hypnagogic hallucinations) कहते हैं और उठने पर इसे हिप्नेपोम्पिक हेलोसिनेशन (hypnopompic hallucinations) कहते हैं। वे बहुत ज्वलंत और भयानक हो सकते हैं।

नार्कोलेप्सी वाले लोग दूसरी नींद संबंधी गड़बड़ियों से भी पीड़ित हो सकते हैं, जैसे कि ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (obstructive sleep apnea), स्लीप विखंडन (sleep fragmentation) और रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (restless leg syndrome -RLS)। हालांकि यह विरोधाभासी है, पर वे अनिद्रा का भी शिकार हो सकते हैं।

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नार्कोलेप्सी की टाइप और डिग्री

DSM-5 (डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ़ मेंटल डिसऑर्डर के पांचवें संस्करण) के मानदंडों के अनुसार, नार्कोलेप्सी के पांच प्रकार और डिग्री हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • कैटैप्लेसी के बिना और हाइपोक्रेटिन की कमी (hypocretin deficiency) के साथ। इस प्रकार के नार्कोलेप्सी में हार्मोन ऑरेक्सिन (orexin) या हाइपोक्रेटिन (hypocretin) की कमी होती है। यह एक प्रोटीन है जो न्यूरोनल फंशन को प्रभावित करता है। इस प्रोटीन का मुख्य कार्य सोने-जागने के चक्र को नियंत्रित करना है। इस टाइप के कारण कैटाप्लेक्सी एपिसोड नहीं होते हैं।
  • कैटेप्लैक्सी के साथ और हाइपोक्रेटिन की कमी के बिना। इस मामले में हाइपोक्रेटिन की कमी नहीं होती है, लेकिन कैटाप्लेक्सी रहती है। यह शरीर के दोनों तरफ अचानक मांसपेशियों की कमजोरी के रूप में दिखती है। इस लक्षण को सबसे कम समझा गया है और कुल मामलों के 5% ऐसे होते हैं।
  • ऑटोसोमल डोमिनेंट सेरिबेलर एटेक्सिया (Autosomal dominant cerebellar ataxia -ADCA), बहरापन, और नार्कोलेप्सी। नार्कोलेप्सी की यह डिग्री डीएनए म्यूटेशन के कारण होती है। एटेक्सिया (Ataxia) दरअसल मोटर कोआर्डिनेशन का अभाव है जो स्वैच्छिक रूप से चलने-फिरने पर असर पड़ता है और यहां तक ​​कि निगलने, बोलने और आँखों के कामकाज में बाधा पैदा करता है। यह देर से शुरू होता है और अक्सर आगे बढ़ने पर डिमेंशिया की ओर जाता है।
  • ऑटोसोमल डोमिनेंट सेरिबेलर एटेक्सिया-बहरापन- नार्कोलेप्सी, मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज। यह माइलिन के बनने पर असर डालने वाले सेल ग्रुप ऑलिगोडेंड्रोसाइट्स (oligodendrocytes) में म्यूटेशन के कारण होता है। इसमें से परवर्ती ऐसा पदार्थ है जो न्यूरल ट्रांसमिशन की गति को बढ़ाता है और इसकी कमी गतिशीलता पर असर डालती है।
  • दूसरी मेडिकल कंडीशन में सेकेंडरी। नार्कोलेप्सी की यह टाइप किसी दूसरी बीमारी के नतीजे के रूप में उभरता है। उदाहरण के लिए सारकॉइडोसिस (sarcoidosis) या व्हिपल रोग। दोनों ही हाइपोक्रेटिन उत्पन्न करने वाली सेल्स  को नष्ट करते हैं।

नार्कोलेप्सी जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करता है, जैसे काम या शिक्षा।

नार्कोलेप्सी के सभी डिग्री के मामले में इलाज की जरूरत होती है

हालांकि नार्कोलेप्सी को ठीक करने का उपाय नहीं है, पर वर्तमान में ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं। वे अधिकांश लक्षणों से राहत देते हैं और पीड़ित को लगभग सामान्य जीवन जीने देते हैं।

इसके अलावा जो लोग इस स्थिति का शिकार होते हैं, वे लाइफस्टाइल में बदलाव कर सकते हैं, जैसे कि अचानक उनींदापन से राहत पाने के लिए झपकी लेना। नार्कोलेप्सी वाले व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सपोर्ट की आवश्यकता होती है।



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