जब ज़रूरत हो, उस समय रोने की अहमियत
कुछ लोग कहते हैं, रोना कमज़ोरी की एक निशानी है। लेकिन सच तो यह है कि रोकर अपनी चिंता को बाहर का रास्ता दिखाने में अपने आंसुओं को रोके रखने से कहीं ज़्यादा हिम्मत लगती है।
न रोकर बाहर निकलने की कोशिश करते उन आंसुओं को रोक लेने से हम बहादुर और ताकतवर महसूस करने लगते हैं। हमें अक्सर यही लगता है कि समस्याओं से मुंह मोड़ लेने से वे गायब ही हो जाएंगी। लेकिन हमारी सबसे बड़ी समस्या ही यही होती है।
बचपन में हम हर छोटी-मोटी बात पर रो देते हैं। अगर हम गिर जाते हैं, तो रोने लगते हैं। अगर कोई हमें चोट पहुंचाता है तो भी रोने में हमें कोई हिचकिचाहट नहीं होती।
लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, रोने-धोने के हमारे वे लमहे कम होते जाते हैं।
रोना कई लोगों के लिए शर्मिंदगी का एक विषय होता है। ऐसा सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि हमारे रोने से हमारे आसपास के लोगों को परेशानी होती है, बल्कि इसलिए भी कि इससे हमारा गलत इम्प्रैशन पड़ता है।
कई लोगों का मानना है, हमारे आंसू हमारी कमज़ोरी होते हैं। उन्हें लगता है, रोने वाला व्यक्ति अपनी भावनाओं को नियंत्रित न रख पाकर अपने दुःख पर लगाम नहीं लगा सकता। यह एक बेहद खतरनाक सोच होती है।
न रोने से हालात बद से बदतर हो जाते हैं
इस शारीरिक प्रक्रिया को किसी तरह रोक लेने पर भी आप अपनी रोती-बिलखती आत्मा को कैसे शांत कराएँगे? आपकी वही आत्मा, जो अपने दर्द के बोझ को हल्का करने के लिए चीख-चीख कर आपसे गुहार लगा रही है।
जिस तरह शरीर पर चोट लगने पर हमारे शरीर से खून बहता है, उसी तरह हमारे दिल पर चोट लगे तो आँखों से आंसू बहते हैं। उन आंसुओं से मुंह फेर लेने से हमारे दर्द के बाहर जाने के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं।
ज़रा कल्पना करके देखिए, आपके प्रेमी ने आपको ठेस पहुंचाई है व आपकी चुप्पी के कारण वह लगातार ठेस पहुंचाता ही जा रहा है।
एक के बाद एक निराशा के बावजूद आप हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। उसी दौरान, जिस संघर्ष से आप मुंह फेरे बैठी हैं, उसी की लपटों में आपकी आत्मा जलकर राख हो रही है।
वह सारा दर्द, उसे एक दुष्चक्र में बदल चुके ख्याल और आपको दुःख के सागर में डुबोती भावनाएं उसे बद से बदतर बना देंगी।
शुरू-शुर में तो शारीरिक दर्द के माध्यम से आपका शरीर आपको एक चेतावनी देगा; एक तेज़ सिरदर्द, पेट दर्द, आपके शरीर में कहीं उठता किसी तरह का कोई भी दर्द…।
फिर धीरे-धीरे आपकी बत्ती गुल होने लगती है, जैसे आप कोई बल्ब हों। आपका दुःख आपके अंदर ही जमा होकर बाहर निकलने के अपने सारे रास्तों को बंद कर देता है।
हालांकि इस स्थिति से उबरने का भी एक रास्ता होता है, वह बेहद मुश्किल होता है। इसलिए स्थिति को आपको पहले ही अपने हाथों में ले लेना चाहिए।
अपने आंसुओं को पी लेना कोई अच्छी बात नहीं होती। उन्हें बहने देकर अपने दिल पर रखे बोझ को हल्का होता महसूस करें।
इसे भी पढ़ें : उन अंधेरे दिनों में कैसे जीवित रहें जब कुछ भी वैसे नहीं होता है जैसा आप चाहते हैं
अपनी भावनाओं को पहचानकर उन्हें बाहर ले आएं
हमारे लिए हमारी नकारात्मक भावनायें भी उतनी ही अहमियत रखती हैं, जितनी कि हमारी सकारात्मक भावनायें। अपने दुःख को हमें अपने दिल से नहीं लगा लेना चाहिए। हमारा दुःख ही हमें सिक्के के दूसरे पहलू की वास्तविक अहमियत का एहसास दिलाता है: वह है ख़ुशी।
न रोना तो एक गलती होती ही है, उससे भी बड़ी गलती होती है अपनी भावनाओं को न पहचान पाना।
अपनी नकारात्मक भावनाओं से छुटकारा पाने की हमें इतनी जल्दी होती है कि हम उन्हें नकारने की कोशिश करने लगते हैं। क्या यह सच नहीं है कि अपनी खुशियों को तो हम अपने मन में संजोकर रखते हैं व उनके प्रति कुछ ज़्यादा ही जागरूक हो जाते हैं? अपनी नकारात्मक भावनाओं को भी निकाल बाहर करने के लिए उनके साथ भी हम ऐसा ही क्यों नहीं कर सकते?
हमारी भावनाओं के सबसे काले बादल हमें यह चेतावनी देते हैं, हम कहीं कुछ गलती कर रहे हैं व हमारे आसपास मौजूद लोग सही लोग नहीं हैं या फ़िर हमें इस प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। लेकिन यहाँ आपको यह भी समझ लेना चाहिए कि हमारे अंदर दबी हुई नकारात्मक भावनाओं से हमें शारीरिक नुकसान भी पहुँच सकता है।
लेकिन अगर हम अपनी आँखों पर पर्दा डालकर अपनी सभी भावनाओं को अपने अंदर रखे बक्से में जमा करना चाहते हैं तो हम इमोशनल कैथार्सिस की चपेट में भी आ सकते हैं।
यह एक तरह का आत्मविनाश नहीं तो और क्या है?
ज़िन्दगी इतनी भी जटिल नहीं होती। हमारे जीवन को नरक में तब्दील कर देने वाली अवास्तविक मान्यताओं की बदौलत हम खुद उसे जटिल बना लेते हैं।
अपनी भावनाओं को देख-समझकर उन्हें अभिव्यक्त करना ज़रूरी होता है, फिर भले ही उनसे हमें अच्छा लगे या बुरा। ऐसा आप बात करके, रोके, चीख-चिल्ला कर, भाग कर या अपनी पसंद का कोई और काम करके कर सकते हैं। आख़िर यहाँ सवाल तो उन भावनाओं को निकाल बाहर करने का जो है।
सबसे अच्छा पेन रिलीवर
न रोने से हम हर तरह के दर्द के सबसे बड़े पेन रिलीवर को जानने के मौके से हाथ धो बैठते हैं। गोलियों या किसी तरह की कोई भी दवाई की तो आपको ज़रूरत ही नहीं।
आपके आंसू आपके अंदर जमा तनाव को बाहर निकाल देते हैं। ऐसा होने पर हम काफ़ी बेहतर महसूस करते हैं।
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आपके हालात कितने बुरे हैं। उनकी चिंता किए बगैर रोएं। अपनी निराशा, नाराज़गी, गुस्से, चिंता और बुरे ख्यालों को निकाल बाहर करें… उन्हें जाने दें!
खुलकर रो लेने से आपको लगेगा, आप कोई मैराथन दौड़कर आए हैं।
आप थके तो होंगे, पर शांत भी होंगे। आपका चेहरा लाल व आँखें सूजी हुई होंगी, लेकिन आपकी आत्मा शांत होगी।
वही शांति एक नयी शुरुआत करने, आगे बढ़कर सही फैसले लेने में आपकी मदद करेगी।
न रोने से आप अपनी मुस्कान छीन लेने वाले कारण की भरपाई ही नहीं कर पाते।
- Filip De Fruyt. 1997. Gender and individual differences in adult crying. Personality and Individual Differences. https://doi.org/10.1016/S0191-8869(96)00264-4.
(http://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0191886996002644) - Langens, Thomas & Schüler, Julia. (2005). Written Emotional Expression and Emotional Well-Being: The Moderating Role of Fear of Rejection. Personality & social psychology bulletin. 31. 818-30. 10.1177/0146167204271556.