जानिये क्या और क्यों होती है क्रेविंग?
क्रेविंग एक अपेक्षाकृत हाल की सोच है जो किसी पदार्थ (ड्रग, तंबाकू, भोजन या शराब) का सेवन करने की तेज और लगभग अजेय इच्छा को बताती है। हम इस आर्टिकल में विभिन्न प्रकार की क्रेविंग को देखेंगे।
1940 के दशक में पहली बार इस अवधारणा का इस्तेमाल किया गया था। उस समय विशेषज्ञों ने इसे ओपिएट्स (opiates) या मादक पदार्थों जैसे हेरोइन या मॉर्फिन का सेवन करने की उस तेज ललक के रूप में परिभाषित किया था जो तब होती है जब व्यक्ति उन्हें छोड़ने की कोशिश करता है।
हालांकि आजकल इस स्थिति को परिभाषित करना अभी भी मुश्किल लगता है। यह साफ़ है कि क्रेविंग या ललक किसी भी नशे का एक मूलभूत पहलू है, जो कि लत के दोबारा लौट आने से संबंधित है।
इस लेख में हम आपको इस समस्या के बारे में जानने लायक कुछ बातें बताएँगे।
क्रेविंग क्या है?
जैसा कि हमने पहले ही बताया, क्रेविंग किसी चीज को खाने की ललक है। यह इच्छा एक तरह की अजेय लालसा होती है जो एक अर्थ में व्यक्ति को “जकड़” लेती है। हालाँकि यह विथड्रॉल सिंड्रोम की तरह नहीं है।
जब नशे का आदी इंसान लत को छोड़ देता है तो उस समय होने वाले विथड्रॉल सिंड्रोम में शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों की एक पूरी चेन दिखाई देती है। शराबियों या हेरोइन जैसी ड्रग्स के आदी लोगों में इसे देखा जाता है।
हालांकि उनमें फर्क करना है तो आपको यह समझना चाहिए कि किसी इंसान के विथड्रॉल सिंड्रोम से ऊबर आने पर भी क्रेविंग दिखाई दे सकती है। क्योंकि किसी चीजों को खाने की इच्छा महीनों या वर्षों तक बनी रह सकती है।
एक्सपर्ट कई तरह की चीजों से क्रेविंग को जोड़ते हैं। यह धूम्रपान करने या शराब पीने की इच्छा से लेकर कोकेन या स्ट्रांग ओपिओइड जैसे कि हेरोइन का फिर से सेवन करने की इच्छा हो सकती है।
आपको इस बात को जानना चाहिए कि सामाजिक रूप से स्वीकृत कोई चीज़, मसलन तम्बाकू सेवन, आपकी ज़िन्दगी भर की लत बन सकती है। दूसरे शब्दों में यह दूसरे नशों की तरह ही गंभीर और नुकसानदेह है।
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क्रेविंग किसी भी चीज को खाने की ललक है, जो ड्रग्स, शराब या तंबाकू हो सकते हैं।
क्या क्रेविंग कई तरह की होती है?
कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि क्रेविंग दो अलग-अलग तरह की होती है। पहली शारीरिक है, जो करीब-करीब विथड्रॉल सिंड्रोम की तरह होती है। इस सिंड्रोम की तरह यह शारीरिक लक्षण पैदा करती है जैसे कि टैकीकार्डिया (tachycardia), ठंडा पसीना और यहां तक कि दौरे भी।
दूसरे शब्दों में यह पहली टाइप ड्रग्स लेने की इच्छा है, जो कि नशा छोड़ने के दौरान पैदा होने वाले लक्षणों लक्षणों से प्रेरित होती है। यह आम तौर पर किसी इंसान के लिए सबसे कठिन दौर होता है।
दूसरे तरह की क्रेविंग मनोवैज्ञानिक क्रेविंग है। यह बाद में उभरती है, जब व्यक्ति विथड्रॉल सिंड्रोम पर काबू पा लेता है। यह तब होता है जब रोगी ने कुछ ही दिनों तक मादक द्रव्य का सेवन किया हो, शायद महीनों या वर्षों तक।
क्रेविंग का इलाज कैसे करें
आपको यह समझना होगा कि लत और विथड्रॉल सिंड्रोम या क्रेविंग दोनों ही ऐसी स्थितियां हैं जिनका इलाज किया जा सकता है। इसके लिए हमेशा एक एक्सपर्ट से मिलना सबसे अच्छा है, एक मनोवैज्ञानिक जो आपको इससे बचने में मदद कर सकता है, यहां तक कि किसी सपोर्ट ग्रुप से भी।
क्रेविंग उन पहलुओं में से एक है जिसका लत के वापस आने पर असर पड़ता है। उसी तरह यह वह फैक्टर है जो आमतौर पर लत को बनाए रखने का कारण बनता है। इसलिए इसके बारे में जानना और इससे निपटना अहम है।
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ललक से निपटने के लिए उन स्थितियों की पहचान करना ज़रूरी है जो चीजों के खाने के पैटर्न से जुड़ी हैं। पहला कदम उन चीजों से पूरी तरह बचना है।
उन स्थितियों से बचने की कोशिश करें है जो उस द्रव्य के खाने से जुड़ी हैं। उदाहरण के लिए अगर आप शराबी हैं, तो अपनी रातों को कम करना या बारों पर जाना सबसे अच्छा है।
इसके अलावा, मादक द्रव्यों को खाने के अपने आटोमेटिक व्यवहार को कंट्रोल करने के टूल्स होना भी महत्वपूर्ण है। रोगी की मनोवैज्ञानिक या भावनात्मक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि जब वे कमजोर या उदास होते हैं, तो आसानी से लत का लौट आना आसान होता है।
इस अर्थ में ज्यादातर थेरेपी यह सिखाने पर फोकस करती हैं कि तनाव या आत्मविश्वास का मैनेजमेंट कैसे करें। उसी तरह इसे नियंत्रित करने का एक और असरदार तरीका उनका फोकस एक्सरसाइज या ऐसी दूसरी एक्टिविटी पर खींच ले जाना है।
निष्कर्ष
क्रेविंग एक ऐसी असंगत और अत्यावश्यक इच्छा है जिसके लिए इंसान किसी भी ड्रग्स या पदार्थ का सेवन करता है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह सिर्फ हेरोइन जैसी ड्रग्स के साथ नहीं होता है; तंबाकू या अल्कोहल भी इसे पैदा कर सकते हैं।
- Chesa Vela, D., Elías Abadías, M., Fernández Vidal, E., Izquierdo Munuera, E., & Sitjas Carvacho, M. (2004). El craving, un componente esencial en la abstinencia. Revista de La Asociación Española de Neuropsiquiatría, (89). https://doi.org/10.4321/s0211-57352004000100007
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