सियालोरिया के लक्षण और इलाज
सियालोरिया (Sialorrhea) – या टायलिज्म (ptyalism) वह चीज है जिसे हम आम भाषा में “ड्रोलिंग” कहते हैं। बेशक 15 से 36 महीने के बच्चों में यह स्थिति बहुत आम है। हालाँकि अगर यह चार साल की उम्र के बाद भी हो तो इसे असामान्य माना जाता है। आज हम सियालोरिया (sialorrhea) की विशेषताओं और इलाज पर करीब से नज़र डालेंगे।
हालांकि सियालोरिया ऐसी स्थिति है जो रूप-रंग को प्रभावित करती है, पर यह सेहत की गंभीर स्थितियों से भी जुडी हो सकती है। उदाहरण के लिए सेरिब्रल पैल्सी या पार्किंसन रोग। यह प्रेग्नेंसी से या कुछ दवाओं के सेवन से भी हो सकता है।
सियालोरिया क्या है और इसके क्या कारण हैं?
सियालोरिया की विशेषता है मुंह के अंदर लार को रख पाने और पाचन तंत्र की ओर भेज पाने में असमर्थता। इसकी प्रोसेसिंग में लार या विसंगति का अत्यधिक उत्पादन होता है।
सियालोरिया के सबसे बड़े कारण न्यूरोलॉजिकल रोग हैं। जैसा कि हमने बताया है, उनमें सेरिब्रल पैल्सी या पार्किंसन रोग शामिल हैं। हालांकि, यह उन लोगों में भी होता है जो एम्योट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS), रिले-डे सिंड्रोम (Riley-Day syndrome) या मस्तिष्क रोधगलन से पीड़ित हैं।
इसके अतिरिक्त यह स्थिति उन लोगों में भी आम है जो एंटीसाइकोटिक, हिप्नोटिक और ट्रैनक्विलाइजिंग ड्रग्स लेते हैं। इसी तरह, गर्भधारण के दूसरे और चौथे सप्ताह के दौरान लार की मात्रा में अचानक वृद्धि होना भी आम है।
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इस समस्या की विशेषताएं
लार बनाने के लिए सैलिवरी ग्लैंड जिम्मेदार होती हैं। उनमें से तीन हैं: पैरोटिड (parotid), सबमांडिबुलर (submandibular) और सब्बलिंगुअल ग्रंथियां (sublingual glands)। इनमें से पहली पानी से लार बनाती हैं, जबकि दूसरी दोनों एक गाढ़ा तरल पैदा करती हैं। यह लार की वह किस्म है जो अक्सर चोकिंग पैदा करती है।
रोजाना वे लगभग 50 औंस लार बनाती हैं, जिनमें से 70% सबमांडिबुलर और सब्बलिंगुअल ग्रंथियों से आती हैं। सियालोरिया ऐसी बीमारी नहीं है जो किसी दूसरी गंभीर स्थिति में विकसित होती है। हालाँकि यह किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
सियालोरिया के इलाज के लिए कोई स्पेशलाइज डॉक्टर नहीं है। इसलिए यदि आपको इस समस्या का संदेह है, तो अपने जेनेरल फिजिसियन से मिलना चाहिए। वह या वह आपको एक एक्सपर्ट के पास भेजेगा।
क्लासिफिकेशन
अपनी पैदाइश के आधार पर सियालोरिया की दो टाइप हैं:
- अग्र सियालोरिया(Anterior sialorrhea) : यह एक तरह की न्यूरोमस्कुलर कमी से होती है और लार बहुत ज्यादा बनती है। इसमें मुंह या निचले होंठ के कोनों से लार बहती है।
- पश्च सियालोरिया (Posterior sialorrhea): जीभ से फेरिंक्स की ओर लार के बहाव में समस्या होती है।
थॉमस-स्टोनेल और ग्रीनबर्ग रेटिंग के अनुसार, इसकी गंभीरता या बारंबारता के अनुसार सियालोरिया को क्लासिफाई करना भी संभव है। इस दृष्टिकोण से इसे इस तरह वर्गीकृत किया गया है:
- ड्राई माउथ
- हल्का (गीले होंठ)
- मध्यम (होंठ और ठोड़ी गीले)
- गंभीर (कपड़े का गीला होना)
- अत्यधिक (कपड़े, हाथ और बर्तन गीले होना)
बारंबारता के आधार पर वर्गीकरण इस प्रकार है :
- कभी ड्रूलिंग न होना
- कभी-कभार होने वाली ड्रूलिंग
- बार-बार सियालोरिया होना
- लगातार ड्रूलिंग
- सियालोरिया के परिणाम
सियालोरिया एक मेडिकल समस्या है। यह न सिर्फ लोगों की नजर खींचने वाली विकलांगता की वजह बनता है, बल्कि न्यूरोलॉजिकल समस्याओं वाले रोगियों के मैनेजमेंट में आने वाली कठिनाई को कुछ ज्यादा बढ़ा भी देता है। आम तौर पर इस स्थिति के कुछ ख़ास नतीजे दीखते हैं। उदाहरण के लिए इसमें होठों की चमड़ी उभरना, मांसपेशियों की थकान, डर्मेटाइटीस, स्वाद में बदलाव और आवाज की तकलीफ हो सकती हैं।
हालांकि एक शारीरिक दृष्टि से भोजन को निगलने में कठिनाइयों के कारण सबसे बड़ा जोखिम एस्पाइरेशन निमोनिया है। इन मरीजों को ओरल इंफेक्शन का भी खतरा होता है।
इसके मनोसामाजिक परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं। ड्रूलिंग की वजह से सामाजिक अस्वीकृति की स्थिति पैदा होती है, यहां तक कि तीमारदारों में भी। यह रोजमर्रा की सामान्य एक्टिविटी को भी सीमित करता है।
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इलाज
सियालोरिया के इलाज के तीन तरीके हैं: स्पीच थेरेपी, फार्माकोलॉजी और सर्जरी। स्पीच थेरेपी के जरिये पैथोलॉजिकल रिफ्लेक्स को बाधित करने के लिए कई एक्सरसाइज की जाती है। इसका उद्देश्य होंठ को बंद करना और लार को वापस चूसना या निगलने में सुधार करना है। निरंतर प्रशिक्षण से सुधार आ सकता है।
औषधीय इलाज के लिए एंटीकोलिनर्जिक्स (anticholinergics) का सहारा लिया जाता है। हालांकि इन दवाओं को एक्सरसाइज के साथ ही लिया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से कुछ लोग इस प्रकार की दवा के लिए सहनशील नहीं होते।
सियालोरिया का इलाज यह बोटुलिनम विष टाइप ए (botulinum toxin type A -TBA) के इंजेक्शन के माध्यम से करना भी संभव है। यह सीधे लार ग्रंथियों पर काम करके लार के उत्पादन को भी कम करता है। सबसे सकारात्मक बात यह है कि इसके बहुत कम साइड इफेक्ट हैं।
अंत में, यदि इनमें से कोई भी उपाय काम न करे तो एक्सपर्ट संभवतः सर्जिकल हस्तक्षेप करने का निर्णय करेगा। जो भी हो प्रत्येक रोगी अलग होता है और कभी-कभी प्रभाव हासिल करने के लिए कई उपायों के मिलाने की जरूरत भी पड़ती है।
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