लाइम रोग के लक्षण जिन्हें जान लेना ज़रूरी है
लाइम रोग एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो काले पैरों वाले टिक्स से होता है, जिन्हें कई बार हिरण टिक्स (deer ticks) के रूप में भी जाना जाता है। ये कीड़े बोरेलिया बर्गडॉर्फी जीवाणु (Borrelia burgdorferi bacterium) से संक्रमित होते हैं, जो उनकी दंश से मनुष्य में फैलते हैं। फिर लाइम रोग के लक्षण जल्द ही दिखाई देते हैं।
लाइम रोग बैक्टीरिया मुख्य रूप से चूहों, गिलहरियों और दूसरे छोटे स्तनधारियों से फैलता है। ये टिक्स इन छोटे जीवों से ही बैक्टीरिया को ग्रहण करते हैं और अपने दंश से इंसान में पहुंचाते हैं। इस बीमारी के संक्रमण के लिए टिक्स को 24 से 36 घंटों के लिए इंसानी देह में रहना चाहिए।
अगर लाइम रोग का शीघ्र इलाज न किया जाए तो यह कई हेल्थ प्रॉब्लम का कारण बनता है। दूसरी ओर अगर इसका पता लगाया जाए और जल्दी इलाज किया जाए, तो इसका पूरा इलाज संभव है। आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर लोग जिन्हें टिक्स काटते हैं, उन्हें लाइम रोग नहीं होता।
शुरुआती अवस्था
लाइम रोग तीन चरणों में होता है। टिक की शरीर में बने रहने की अवधि यह तय करती है कि बैक्टीरिया शरीर में कितना फैलने में कामयाब रहा है। ये तीन स्टेज हैं:
- स्टेज 1 या प्रारंभिक या लोकलाइज लाइम रोग। इस स्टेज में बैक्टीरिया अभी तक पूरे शरीर में नहीं फैला है।
- स्टेज 2 या प्रारंभिक प्रसार। यह तब होता है जब काटने के बाद 36 से 48 घंटों के बीच बैक्टीरिया फैलने लगते हैं।
- चरण 3 या देर से प्रसार। यह वह स्टेज है जिसमें बैक्टीरिया पूरे शरीर में फैल चुका है।
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प्रारंभिक लाइम रोग के लक्षण
लाइम रोग (Lyme disease) के पहले लक्षण इन्केफेक्शन होने के कुछ दिनों के भीतर दिखाई देते हैं। हालांकि कुछ रोगियों में लाइम रोग के लक्षण दिखने में कुछ हफ़्ते लग सकते हैं। प्रारंभिक चरण में लक्षण फ्लू की तरह होते हैं:
- सिर दर्द
- जॉइंट पेन
- मांसपेशियों में दर्द
- गर्दन में अकड़न
- ठंड लगने के साथ बुखार
- सामान्य अस्वस्थता और थकान
- सूजी हुई लिम्फैटिक ग्लैंड
काटने की जगह पर लाल चकत्ते दिखाई देना भी आम है – यह दाने चपटे या थोड़े उभरे हुए हो सकते हैं। घाव के बीचोंबीच आपको एक स्पष्ट एरिया दिखाई देगा। इस रैश को एरिथेमा माइग्रेन्नस (erythema migrans) कहा जाता है, और बाद में शरीर के विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई देना शुरू हो सकता है। अगर इलाज न किया जाये तो यह 4 हफ़्ते या उससे अधिक समय तक रह सकता है।
प्रारंभिक और देर से प्रसार के दौरान लक्षण
प्रारंभिक लाइम रोग के लक्षण जल्द से जल्द दिखाई देकर गायब हो सकते हैं। लेकिन अगर लाइम रोग को छोड़ दिया जाता है, तो यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनगा। स्टेज 2 या प्रारंभिक प्रसार की अवस्था में पहुँचने पर लाइम रोग के दूसरे लक्षणों का अनुभव करना आम बात है, जैसे:
- कमजोरी का सनसनाहट
- गले का दर्द
- सांस लेने मे तकलीफ
- चेहरे की मांसपेशियों में पैरालाइसिस
- पीठ में कठोरता और दर्द
- दिल की अनियमित धड़कन (palpitation)
लाइम रोग के तीसरे स्टेज में पहुँचने पर और भी गंभीर लक्षण या जटिलताएं पैदा करता हैं, जैसे :
- गठिया (Arthritis) : यह सूजन वाले जोड़ों में दर्द के साथ उभरता है, मुख्य रूप से घुटनों में।
- न्यूरोलॉजिकल समस्याएं: इनमें मेनिन्जाइटिस, बेल्स पाल्सी (Bell’s palsy) या चेहरे की मांसपेशियों की पैरालाइसिस) और दर्द या स्तब्ध हो जाना शामिल हो सकता है। संज्ञानात्मक कठिनाइयों और नींद की समस्याएं भी इस चरण का हिस्सा हो सकती हैं।
- हृदय की समस्याएं (Heart problems): यह आमतौर पर एक अनियमित दिल की धड़कन के रूप में होता है, जो आमतौर पर कुछ दिनों के बाद गायब हो जाता है।
कुछ मामलों में दूसरे गंभीर लक्षण भी दिखाई देते हैं। इनमें शामिल हो सकते हैं; आंखों की सूजन, हेपेटाइटिस (hepatitis) और गंभीर थकान। इस तरह की स्थितियां अक्सर महीनों या यहां तक कि सालों में पैदा होती हैं जब रोगी संक्रमण का शिकार होता है।
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डायग्नोसिस और प्रोग्नोसिस (Diagnosis and Prognosis)
एक मजबूत डायग्नोसिस अक्सर ब्लड टेस्ट के जरिये होती है जिसे एलिसा टेस्ट (ELISA test) कहा जाता है, जो विशेष रूप से लाइम रोग की जाँच करता है। हालांकि इस टेस्ट के नतीजे कभी-कभी रोग के प्रारंभिक चरण में नेगेटिव भी हो सकते हैं, यहां तक कि संक्रमण मौजूद होने पर भी। यदि मरीज रोग के प्रारंभिक चरण के दौरान एंटीबायोटिक ले रहा है, तो इसका मतलब यह भी होगा कि यह एलिसा टेस्ट में दिखाई नहीं देगा।
कई मामलों में डॉक्टर महज लक्षणों के आधार पर डायग्नोसिस करेंगे। इसके साथ मरीज की केस हिस्ट्री और उन क्षेत्रों में होने जहां वह टिक के संपर्क में था, की जानकारी से डॉक्टर रक्त परीक्षण का सहारा लिए बिना लाइम रोग का निदान करने में सक्षम होगा। बाद के स्टेज में दूसरे टेस्ट का आदेश भी दिया जा सकता है, जैसे इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, एमआरआई, इकोकार्डियोग्राफी या स्पाइनल टैप।
यदि कोई मरीज बीमारी के प्रारंभिक स्टेज में इलाज का कोर्स शुरू करने में सक्षम है, तो रोग की डायग्नोसिस अक्सर शानदार होती है। जब रोग ज्यादा एडवांस स्टेज में हो तो रोगी में लक्षणों का उभरना जारी रह सकता है, और कभी-कभी बहुत गंभीर हो सकता है। कुछ मामलों में, कुछ लक्षण, जैसे गठिया या हार्ट रिद्म में बदलाव क्रोनिक हो जाता है।
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