सिर्फ दूसरों को खुश करने के लिए ही जीना एक निरर्थक किस्म का त्याग है
लोग मानते हैं, दूसरों को खुश करने की सोचना अच्छी बात है। सामान्य रूप से यह एक ऊँचा मूल्य है। पर अपने और दूसरों के प्रति रवैये में एक सही संतुलन कायम करना ही सबसे अच्छा है। ज़रा उस आदमी के बारे में सोचिये जो अपने अलावा सभी के बारे में सोच रहा है, और इस वजह से उसकी तमाम चीजें मजधार में हैं।
जब हम छोटे थे, हमें यह रवैया सिखाया गया था। हमें उन चीजों को करने के लिए कहा गया है जो हम अक्सर नहीं करना चाहते हैं। पर इसकी ज्यादा मात्रा से हम हम कई बार अपने बारे में भूलने लगते हैं।
एक समय आता है जब हम अपने को बिलकुल खाली महसूस करते हैं। हमें खुद को रोकना पड़ता है और पूछना पड़ता है, “मैं कौन हूँ?” “मुझे क्या चाहिए?” दुर्भाग्य से, हम इस प्रश्न का जवाब नहीं जानते हैं। इसके बावजूद, हमने जो सवाल पूछा है, यह खुद को दोबारा खोजने की राह पर पहला कदम हो सकता है।
दूसरों को खुश करने का मतलब कई बार खुद को पीड़ित करना हो सकता है
अगर आप किसी सम्बन्ध में बंधे हैं, आप घर में धुएं की गंध नहीं झेल सकते, लेकिन अपने पार्टनर को यह बिना बताए उसे घर में स्मोकिंग करने की छूट दे सकते हैं, महज उसे खुश करने के लिए
यह एक घुटन भरा फ्रस्टेशन पैदा करता है, जो हालात को बदतर कर देगा, और एक समय आएगा जब और नहीं झेला जाएगा। इसी तरह यह भी हो सकता है कि आपके पैरेंट्स चाहते हों कि आप किसी ख़ास तरह से काम करें जो दरअसल आप जो हैं या बनना चाहते हैं, उससे अलग हो।
इस स्थिति में आपकी एंग्जायटी आपको “प्लीज़ दूसरों के लिए” वाले बटन को पुश करने के लिए कहती है। इससे आप सभी को खुश करने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन किस कीमत पर?
कीमत अपने को “प्रायोरिटी” न देना है, अपने आपको द्वितीय दर्जा देना है, और बराबर दूसरों की मंजूरी की तलाश करते रहना है।
क्या दूसरे लोग आपकी खुशी के स्रोत हैं?
पैराडॉक्स
अपने बारे में अच्छा महसूस करने के लिए आप दूसरों को खुश करना शुरू करते हैं, या कोई दूसरा इंसान जब आप पर गुस्सा उतारता है या आपसे निराशा जताता है तो आप चिंतित हो जाते हैं और अपनी चीजों को उसके अनुसार बदलना चाहते हैं। आप खुद को एक अंधी गली में पाते हैं।
नतीजतन, आप संघर्ष से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं। आप हमेशा यह कोशिश करेंगे कि आपकी राय वही हो जो दूसरे लोग सुनना चाहते हैं। परिणाम यह होता है कि आप बस वहीं जाते हैं जहां दूसरे लोग आपको दखना चाहते हैं, न कि उस स्थान पर जहां आप वास्तव में जाना चाहते हैं।
अंत में, आप किस तरह की जिंदगी जीते हैं? यह आपकी या किसी और की है? यदि आप अपने कंट्रोल में इसे नहीं लेंगे तो आपका जीवन निरर्थक हो सकता है। आप इस महज इसलिए अपनी “नींद नहीं खो सकते” कि एक दोस्त आपसे इसलिए नाराज है क्योंकि आपने “ना” कहा था, भले ही वजह जाप भी हो।
न ही आपको उन उम्मीदों को पूरा करने के बारे में बहुत सोचना चाहिए जो बाकी सभी आपसे लगाए बैठे हैं।
जब आप अपने पैर पर खड़े होकर अपनी राय देते हैं, फैसले लेते हैं, या मनचाही चीजें करते हैं, तो आपको अस्वीकृति या नकारात्मकता को स्वीकार करना सीखना होगा। वे इसे खत्म कर देंगे!
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अपने को खुश रखना शुरू कीजिये
एक बार जब आपका आत्मविश्वास लौट आये तो आपको कुछ पुरानी आदतों को बदलना शुरू करना होगा। जब आप “नहीं” कहना चाहते हों तो वाकई “नहीं” कहना शुरू करें। इस पर अगर किसी को गुस्सा आये तो परेशान न हों। जल्दी या बाद में, वे इसे समझ ही लेंगे (कि यह दुनिया का अंत नहीं है!)।
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खुद को प्रायोरिटी दें। अपने फैसलों को प्राथमिकता दें: आप क्या चाहते हैं, आपकी राय क्या है और आपके ख्वाब क्या हैं। लेकिन इन सबसे ऊपर अपनी भलाई को प्राथमिकता दें। आपको ऐसा कुछ भी नहीं करना है जिससे आपको अच्छा महसूस न हो। आप अपने आप को बेकार में ही बर्बाद कर रहे हैं। आप पीड़ित हैं, और यह आपको एंग्जायटी और डिप्रेशन में डाल सकता है।