सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि क्या है और क्या इसका इलाज संभव है?
सीखी गयी असहायताबोध या लर्नेड हेल्पलेसनेस की मनोग्रंथि निष्क्रियता और सरेंडर वाली ख़ास प्रतिक्रिया है जो आमतौर पर अप्रिय स्थितियों में लोग करते हैं। यह वह स्थिति है जिसमें जिन्दगी के अनुभव लोगों को यह सिखाते हैं कि वे हालात को बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकते और न ही कुछ करने से हालात बदलेंगे। इस तरह जो लोग इससे पीड़ित होते हैं, वे हालात के लिए जिम्मेदार स्टिमुलस को ख़त्म करने का कोई इरादा नहीं कर पाते।
आमतौर पर यह स्थिति ऐसे दर्दनाक अनुभव से गुजरने के बाद होती है जिसमें पीड़ित व्यक्ति कुछ भी कर नहीं पाया था। इस तरह व्यक्ति समझता है कि दुखद स्थितियों को रोकने के लिए कुछ भी कारगर नहीं होगा।
सीखी गयी असहायताबोध की परिभाषा
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (एपीए) के अनुसार सीखी गयी असहायताबोध ऐसी घटना है जिसमें व्यक्ति बार-बार तनाव पैदा करने वाले फैक्टर के संपर्क में आता है। ये स्ट्रेसर बेकाबू हो जाते हैं और घटनाओं पर काबू पाने के लिए उपलब्ध विकल्पों का उपयोग नहीं करने देते।
इस वजह से वे लोग सीखते हैं कि परिवेश के फैक्टर में जो कुछ होता है, उस पर उनका नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है। मीडियम टर्म में उन्हें मिला यह सबक किसी भी किस्म का बदलाव करने के उनके मोटिवेशन को खत्म कर देता है।
दूसरे शब्दों में यह एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो पीड़ित करने वाले हालात के खिलाफ रियेक्ट करने में असमर्थता की ओर ले जाती है। यह अतीत में अप्रिय घटनाओं में असफल प्रतिक्रिया के नतीजे के तौर पर होता है। इसलिए लोग दुख को सहन करना सीखते हैं और मानते हैं कि अप्रिय घटनाओं से बचने के लिए वे कुछ नहीं कर सकते।
बचपन का दर्दनाक अनुभव वयस्क उम्तार में सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि पैदा कर सकता है।
सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि के कारण
सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि के सभी कारण एक पूर्वाग्रह से जुड़े होते हैं, जो लोगों को यह विश्वास दिला देता है कि जीवन की घटनाओं पर उनका कोई कंट्रोल नहीं है। यह कुछ स्थितियों के संभावित नतीजे का विश्लेषण न कर पाने के मनोभाव को और बढ़ा देता है। ऐसे लोगों का मानना होता है कि उनका भाग्य पहले से ही रच दिया गया है, और वे लाख चाहें उसे बदल नहीं सकते।
इस स्थिति के सबसे आम कारण निम्नलिखित हैं।
बचपन की ट्रेजडी
इस मनोवैज्ञानिक अवस्था को निर्धारित करने वाले फैक्टर में से एक है उनके जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान होने वाले अनुभव। यदि इस स्टेज में व्यक्ति को कोई अप्रिय अनुभव हुआ और उसे किसी भी तरह की सहायता, राहत या पाज़िटिव रिएक्शन नहीं मिली तो वे आगे ऐसी परिस्थितियों में वे सबमिसिव रूख अपनाने की संभावना रखते हैं।
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सब्मिसिस्व और पैसिव भूमिकाओं का सबक
बचपन में बच्चों को मिलने वाली शिक्षा एक और फैक्टर है जो इस स्थिति का कारण बन सकता है। कुछ स्थितियां हैं जो निर्भरता और पैसिव बने रहने वाली सामाजिक भूमिकाओं को बढ़ावा देती हैं और वे भविष्य में असुरक्षा वाले मनोभाव के बनने की संभावना को बढ़ा देती हैं।
दूसरी ओर बचपन में मिले सबक निष्क्रियता को बढाने में अहम भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए यदि बच्चे अगर ऐसे लोगों के बीच बड़े होते हैं, जो उन्हें लगातार बताते हैं कि वे असमर्थ या अक्षम हैं या वे कुछ नहीं जानते तो बड़े होने पर उनमें ऐसा मनोभाव जड़ जमा सकता है कि वे शक्तिहीन और असहाय हैं।
बहुत अनुशासित घर
कुछ घरों में बहुत ज्यादा कंट्रोल किया जाता है। जो बच्चे ऐसे वातावरण में रहते हैं जहाँ उनके पैरेंट उनके आस-पास होने वाली हर चीज़ को काबू में रखते हैं और उन्हें उनके कार्यों के नतीजों से सीखने के तजुर्बों से वंचित करते हैं, तो वे बच्चे इस स्थिति के लिए ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
अपराधबोध की भावना
दूसरी ओर आंतरिक फैक्टर भी हैं, जैसे कि जिम्मेदारी या अपराधबोध, जो सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि के विकास को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति एक अप्रिय घटना के लिए अपराधबोध महसूस करता है और यह मानना शुरू कर देता है कि वे भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी भी स्थिति को बदलने या रोकने में असमर्थ हैं।
इस तरह वे सरेंडर वाले व्यवहार के औचित्य को जटिफ़ाई करते हैं, जो उनके आत्मविश्वास और गरिमा को नेगेटिव रूप से प्रभावित करता है। यह उस विशिष्ट शिक्षा से भी जुदा हो सकता है, जो उनमें अपराधबोध विकसित कर सकता है।
सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि का नतीजा
सीखी गयी असहायताबोध की मनोग्रंथि का निम्न बातों पर नेगेटिव असर पड़ता है:
- प्रेरणा: नियंत्रण की कमी की धारणा किसी भी मोटिवेशन को कम कर सकती है। इसलिए नई स्थितियों में रियेक्ट करने का उनका प्रयास कम हो जाता है।
- अनुभूति: पॉजिटिव परिणाम पैदा कर पाने वाले एक्शन के नए पैटर्न सीखने में कठिनाई होती है। इसके अलावा ये लोग समस्याओं को काफी नार्मल मान ले सकते हैं और उन्हें हल करने से कतराते हैं।
- भावनात्मक: ऐसे में अवसाद, एंग्जायटी और निराशा जैसी नेगेटिव भावनात्मक स्थितियों का पैदा होना आम बात है। आत्मविश्वास की कमी भी होती है। यह अवस्था तब तक रहती है जब तक व्यक्ति परिस्थितियों को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होता।
- शारीरिक: ईटिंग डिसऑर्डर और इम्यून सिस्टम में बदलाव इसके शारीरिक परिणाम होते हैं।
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असहायबोध की मनोग्रंथि का इलाज
इस घटना का इलाज करने का सबसे अच्छा तरीका थेरेपी है। इस दृष्टिकोण का लक्ष्य व्यक्ति को यह सिखाना है कि किसी भी स्थिति में कैसे रियेक्ट किया जाए। वेज़्के वल्वरडे और पोलेनो लोरेंटे के अनुसार इसमें ये बातें भी शामिल हैं:
- इन स्थितियों को बनाने वाले नेगेटिव लक्षणों को बदलना: साधारण कार्यों के प्रदर्शन के माध्यम से वे व्यक्ति जो किसी क्रिया को करने के बाद सकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं। वह यह भी सीख सकता है कि असफलताएँ उनकी अपनी गलती नहीं हैं।
- पॉजिटिव भावनाओं का अनुभव : आत्मविश्सवास को मजबूत करने के लिए। इस तरह वे अपने वातावरण में हस्तक्षेप करने में अधिक सक्षम महसूस करेंगे।
साथ ही इस ट्रीटमेंट में अतीत की दर्दनाक घटनाओं को संबोधित किया जा सकता है। उद्देश्य व्यक्ति को इन अनुभवों को एक अलग अर्थ देकर दूर करना है। इस तरह व्यक्ति भविष्य की स्थितियों में ज्यादा एक्टिव और पॉजिटिव रिएक्शन विकसित करेगा।
चिकित्सक द्वारा परिभाषित तकनीकों के माध्यम से सीखी गयी असहायताबोध के लिए एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना संभव है।
एक अर्जित समस्या
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, इस स्थिति को सीखा जाता है, अपनाया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह ऐसा कुछ नहीं है जिसके साथ व्यक्ति पैदा हुआ है और न ही यह बचपन से होता है। यह स्थिति कई बार नकारात्मक प्रभाव डालती है जो व्यक्ति को नुकसान पहुंचाती है, कभी-कभी गंभीर तरीके से। इसलिए इसका इलाज किया जाना चाहिए।
सबसे अच्छा इलाज साइकोलॉजिकल थेरेपी है, जो व्यक्ति को यह पता लगाने में मदद करता है कि उनके जीवन पर उनका बहुत अधिक नियंत्रण है। एक बार जब वे जागरूक हो जाते हैं, तो वे सभी स्तरों पर पॉजिटिव बदलाव महसूस करेंगे: भावनात्मक, शारीरिक और संज्ञानात्मक।
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