LATE डिमेंशिया एक नए तरह की डिमेंशिया

लेट डिमेंशिया अल्जाइमर रोग की तरह है। यह कैसे विकसित होता है? किसे प्रभावित करता है? इस आर्टिकल में हम इस पर के बारे में बताते हैं!
LATE डिमेंशिया एक नए तरह की डिमेंशिया

आखिरी अपडेट: 19 अप्रैल, 2020

अल्जाइमर रोग से पीड़ित 15 से 20% लोग वास्तव में LATE डिमेंशिया से पीड़ित होते हैं। यह एक तरह की डिमेंशिया है जिसकी डायग्नोसिस अब तक गलत ढंग से अल्जाइमर रोग (Alzheimer’s disease) के रूप की जाती रही है क्योंकि इनके क्लिनिकल लक्षण समान हैं। एक्सपर्ट को उम्मीद है, आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा।

यह समस्या मुख्य रूप से बुजुर्गों को अपनी चपेट में लेती है। अल्जाइमर की तरह ही लेट डिमेंशिया (LATE Dementia) याददाश्त खोने और रोजमर्रा की गतिविधियों को करने में असमर्थ होने का कारण बनता है। इस आर्टिकल में हम उनके बीच के फर्क और सबसे अहम विशेषताओं की जानकारी देंगे।

LATE डिमेंशिया क्या है (What’s LATE dementia)?

LATE डिमेंशिया एक नए तरह की डिमेंशिया

लेट डिमेंशिया के लक्षण अल्जाइमर रोग की तरह होते हैं। हालांकि इस मामले में जिसमें बदलाव होता है, वह है मस्तिष्क का प्रोटीन TDP-43

लेट डिमेंशिया एक प्रोटीनोपैथी है, जिसका अर्थ है कि यह कुछ प्रोटीन में बदलाव के कारण होता है। यह याददाश्त खोने का कारण बनता है जो अल्जाइमर रोग के जैसा है।

LATE यहाँ लिंबिक-प्रीडोमिनेंट एज रिलेटेड टीडीपी -43 एनसेफालोपैथी (limbic-predominant age-related TDP-43 encephalopathy) को दर्शाता है। इसके और अल्जाइमर के बीच फर्क यह है कि बदला हुआ बेन प्रोटीन TDP-43 है। अल्जाइमर के मामले में प्रोटीन TAU और बीटा-एमिलॉइड (beta-amyloid) ठीक से काम नहीं करते हैं।

प्रोटीन TDP-43 मस्तिष्क में जीन की अभिव्यक्ति के लिए जिम्मेदार है। “बुरी तरह से मुड़े-तुड़े” इस प्रोटीन का इकट्ठा हो जाना ही इस बीमारी का कारण है। “बुरी तरह से मुड़े-तुड़े” प्रोटीन वे हैं जिनका आकार सामान्य से अलग होता है।

परिवर्तित प्रोटीन की अधिकता से न्यूरोटॉक्सिसिटी और न्यूरोडीजेनेरेशन होता है। 85 से ज्यादा उम्र के 25% लोगइस प्रोटीन में पर्याप्त बदलाव से पीड़ित होते हैं जिससे कि ये लक्षण उभरते हैं।

इसे भी पढ़ें : वैस्क्युलर डिमेंशिया क्या है?

यह बीमारी किसे प्रभावित करती है?

जिक्र करने लायक एक और फर्क यह है कि अल्जाइमर से पीड़ित होने की संभावना उम्र के साथ अनिश्चित रूप से नहीं बढ़ती है। हालाँकि, LATE डिमेंशिया का जोखिम 80 वर्ष की उम्र के बाद होता है।

संक्षिप्त रूप LATE इसलिए चुना गया क्योंकि यह पैथोलॉजी की इस विशेषता को भी बताता था। महिलाओं में इस बीमारी के उभरने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि, आजकल उनकी उम्र पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है।

आने वाले सालों में  80 से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी, इसलिए इस बीमारी का प्रकोप भी बढ़ेगा। इस तरह LATE डिमेंशिया आने वाले वर्षों में एक सार्वजनिक हेल्थ हैजार्ड बन सकता है।

LATE डिमेंशिया की डायग्नोसिस कैसे की जाती है?

हाल के दिनों में डायग्नोस्टिक टेकनीक में तरक्की के कारण टीडीपी -43 प्रोटीन को ज्यादा सटीक रूप से पहचाना गया है। अब अल्जाइमर रोग की डायग्नोसिस के लिए सबसे सटीक टेकनीक सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूइड में मौजूद बायोमार्कर की स्टडी पर आधारित है।

ऐसे मार्कर प्रोटीन TAU और बीटा-एमिलॉइड हैं, जिनका हमने ऊपर जिक्र किया है। दूसरी डायग्नोस्टिक टेकनीक इमेजिंग तकनीक, जैसे PET स्कैन का इस्तेमाल करके मस्तिष्क में इन प्रोटीनों के जमा होने का पता लगाती है।

हालाँकि, ज्यादातर समय अल्जाइमर की डायग्नोसिस लक्षणों और डायग्नोस्टिक पिक्चर पर आधारित होती है। रोग की पुष्टि के लिए डॉक्टर शायद ही कभी इन बायो केमिकल टेस्ट की सिफारिश करते हैं। इसलिए कुछ लोग जो अल्जाइमर से पीड़ित हैं, वे वास्तव में LATE डिमेंशिया से पीड़ित होते हैं।

LATE डिमेंशिया में लक्ष्य अल्जाइमर रोग की तकनीकों को लागू करना होता है लेकिन इसमें TDP-43 प्रोटीन की तलाश की जाती है। अपने बदले हुए रूप में इस प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा की मौजूदगी डायग्नोसिस की पुष्टि करती है।

इसे भी पढ़ें : डिमेंशिया के 8 लक्षण जो सबको पता होने चाहिए

इस बीमारी के लक्षण

LATE डिमेंशिया के लक्षण दूसरे तरह की डिमेंशिया के मुकाबले ज्यादा धीरे-धीरे विकसित होते हैं। अपने आख़िरी स्टेज में यह एडवांस अल्जाइमर रोग की तरह है।

LATE डिमेंशिया के लक्षण दूसरे तरह की डिमेंशिया के मुकाबले ज्यादा धीरे-धीरे विकसित होते हैं। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि रोग तीन चरणों में बढ़ता है।

ये स्टेज प्रभावित मस्तिष्क क्षेत्र पर आधारित होते हैं। ये स्टेज हैं:

  • स्टेज 1. टॉन्सिलर इन्वोल्वमेंट (Tonsillar involvement)। इस स्टेज में रोगी मनोदशा में बारीक बदलाव दिखता है। मूड स्विंग्स आक्रामक अटैक ​​के साथ हो सकता है।
  • स्टेज 2. हिप्पोकैम्पस का समावेश। यह क्षेत्र प्रभावित होने पर याददाश्त खोने के लक्षण उभरने लगते हैं। हालाँकि यह पहला स्टेज नहीं है, लेकिन यह मुख्य कारण होता है जिससे मरीज डॉक्टर के पास जाना शुरू करते हैं।
  • स्टेज 3. मीडियल फ्रोंतल गैरस (medial frontal gyrus) की भागीदारी। यह आचरण-व्यवहार में बदलाव के रूप में उभरता है। मरीजों के लियी सामान्य जीवन जीना मुश्किल होता है। यह एडवांस स्टेज में अल्जाइमर रोग जैसा दिखता है।

 

निष्कर्ष

इन दिनों इस नई बीमारी की खोज से अब तक जाने-पहचाने डिमेंशिया की डायग्नोसिस और इलाज में कोई बदलाव नहीं आया है। हालाँकि इसने नए रिसर्च एरिया खोले हैं।

इन रोगों के एटियलजि को सटीक रूप से जानने से इनमें से प्रत्येक के लिए नए इलाज को ढूंढा जा सकता है।

अभी इन रोगों का कोई असरदार इलाज नहीं है। यह आने वाले दिनों में बेहद अहम हो जाएगा। क्योंकि जैसा कि हमने बताया है, एक्सपर्ट मानते हैं कि आने वाले दिनों में यह बीमारी बढ़ेगी।




यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।