फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर के बारे जानिये ये अहम बातें
फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर मांसपेशियों और हड्डियों से संबंधित एक ऐसी स्थायी अवस्था है जिसमें रोगी अपने शरीर के कुछ हिस्सों में होने वाले अकारण दर्द के प्रति अति संवेदनशील हो जाता है। इसके अनेक लक्षणों में मांसपेशियों में दर्द, अत्यधिक थकान, निद्रा-संबंधी विकार और मूड स्विंग्स आदि शामिल हैं।
फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर से कौन प्रभावित होता है ?
फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर से 2-5% आबादी प्रभावित होती है। इटली, जर्मनी, पुर्तगाल और स्पेन जैसे देशों में इसके सबसे ज़्यादा मामले सामने आते हैं। आमतौर पर इस डिसऑर्डर से सबसे ज़्यादा खतरा महिलाओं को होता है। बल्कि औरतों में इस बीमारी से ग्रस्त होने की सम्भावना पुरुषों से 10 गुना ज़्यादा होती है। ऐसे लोगों को इससे सबसे ज्यादा खतरा होता है:
- रूमटॉइड आर्थ्राइटिस से पीड़ित लोग ।
- ऑटो-इम्यून रोगों के मरीज।
- 20 से 50 वर्ष की आयु के लोग।
प्रमुख कारण
ऐसा लगता है कि फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर का संबंध केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम) से होता है । लेकिन यह अभी भी कोई नहीं जानता कि यह आखिर होता कैसे है। न्यूरो-हार्मोनल परिवर्तन, जेनेटिक फैक्टर व खान-पान या स्ट्रेस जैसी परिवेश-संबंधी चीज़ें इसकी संभावित कारण हो सकती हैं।
इसके प्रमुख कारण सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम में मौजूद ओवर एक्टिव व अति सेंसिटिव दर्द वाले चैनल होते हैं दूसरे शब्दों में, यह एक केन्द्रीय संवेदीकरण है। आमतौर पर इस संवेदीकरण का नतीजा बार-बार होने वाली तकलीफ़देह उत्तेजन होती है। दुर्भाग्यवश, इससे दर्द और भी बढ़ सकता है।
लक्षण
- सिरदर्द
- डिप्रेशन
- एल्लोडिनिया (Allodynia)
- मांसपेशियों की कठोरता
- निद्रा-संबंधी बीमारियाँ
- हाइपर-अल्जिसिया (Hyperalgesia)
- कंपकंपी पैदा करने वाली गतिविधियाँ
- थकावट और बहुत थका-थका रहना
- स्पर्श के प्रति ज़्यादा संवेदनशीलता
- मांसपेशियों व हड्डियों में एक अनेपक्षित और तीव्र पीड़ा
- सुनने (tinnitus) और देखने (phosphene) की क्षमता में परिवर्तन
संबंधित रोग
यह अवस्था आमतौर पर गठिया से संबंधित बीमारियों से पीड़ित मरीज़ों में देखी जाती है। उदहारण के लिए, यह बीमारी रूमटॉइड आर्थ्राइटिस (संधिवात गठिया) या एंकिलूसिंग स्पौंडीलिटिस (ankylosing spondylitis) हो सकती है। इसका संबंध सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमैटोसस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों से भी हो सकता है। इसके अलावा, फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर से सिलिएक रोग (celiac disease) या ग्लूटन इनटॉलरेंस का खतरा भी रहता है।
संबंधित विकार
इस अवस्था से ग्रस्त अधिकतर रोगियों को या तो सोने में मुश्किल आती है, या फिर वे नींद में भी बेचैन रहते हैं, जिससे उनकी बीमारी के लक्षण बद से बदतर होते जाते हैं। इन मरीज़ों को दिन में उनींदेपन व रात में पीड़ादायक ऐंठन की अनुभूति होती है। साथ ही, मूड स्विंग्स, डिप्रेशन और एंग्जायटी भी कभी-कभी फाइब्रोमायेल्जिया के परिणाम हो सकते हैं।
डायग्नोसिस और रोग की कसौटी
फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए डायग्नोसिस की कोई पक्की या ठोस कासौटी मौजूद नहीं है। सामान्यतः इसकी डायग्नोसिस उन्मूलन-प्रक्रिया के माध्यम से ही होती है। दूसरे शब्दों में, डॉक्टर द्वारा बाकी सभी संभावित रोगों के ठुकरा दिए जाने पर ही फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर की डायग्नोसिस हो सकती है।
फाइब्रोमायेल्जिया डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए कोई निश्चित टेस्ट भी नहीं है। इससे निदान मुश्किल होता है। फाइब्रोमायेल्जिया कोई वास्तविक डिसऑर्डर है या कोई सिंड्रोम, इस बात पर भी विशेषज्ञ अभी एकमत नहीं हैं। यह कई लक्षणों का परिणाम भी हो सकता है।
इस अवस्था की डायग्नोसिस के लिए किसी रोगी को 18 में से कम से कम 11 कष्टदायक प्रेशर पॉइंट्स की अनुभूति करनी पड़ती है। इन पेन पॉइंट्स से रोग की पहचान में मदद मिलती है। क्योंकि ये विकार-ग्रस्त रोगियों में सबसे सामान्य रूप से पाए जाते हैं। कम से कम 3 महीने से ज़्यादा रहने वाला पूरे शरीर का दर्द भी इस रोग के डायग्नोसिस की एक और कसौटी है ।
लेकिन ये मापदंड काफी विशिष्ट और संवेदनशील होते हैं। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि डायग्नोसिस में आने वाली कठिनाइयों के कारण पीड़ित लोगों में से बहुतों में रोग का निदान ही नहीं हो पाता।
इलाज
न्यूट्रीशन थेरेपी और वज़न घटाने की रणनीतियां आज फाइब्रोमायेल्जिया के इलाज के सबसे कारगर उपाय हैं। उदहारण के लिए, यह साबित हो चुका है कि लासा-रहित डाइट फाइब्रोमायेल्जिया के लक्षणों के उपचार में असरदार होती है।
जहाँ तक दवा-चिकित्सा की बात है तो ऐसे कई अवसादरोधी, नॉन-स्टेरॉयडल इंफ्लेमेटरीज़ (NSAIDS) और मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाले ड्रग्स होते हैं, जिनसे फाइब्रोमायेल्जिया का उपचार किया जा सकता है। इसके अलावा, उपचार में ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिम्यूलेशन के भी सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं। इससे काफी हद तक दर्द से राहत मिलती है। इससे स्वास्थ्य-लाभ भी हो सकता है।