वायरस कैसे बदलते हैं?

कोरोनावायरस के दुनिया भर में फैलने के बाद लोग जानना चाहते हैं, वायरस कैसे बदलते हैं। इस बात की व्याख्या जीन में होने वाले बदलाव जिसे जीनोमिक म्यूटेशन कहते हैं, में है। यहाँ इस पर विस्तार से बातें करेंगे।
वायरस कैसे बदलते हैं?

आखिरी अपडेट: 07 अप्रैल, 2020

जब भी कोई एपिडेमिक या महामारी फैलती है तो वायरस के बदलावों पर मौजूद सवाल पॉपुलर मानसिकता के केंद्र में आ जाते हैं। इस समय एक वायरस फैमिली कोरोनावायरस के अपने एक वैरिएंट COVID-19 के विस्तार के साथ ही लोगों में यह सवाल उठे हैं।

इस मामले में सोशल मीडिया पर तमाम मनगढ़ंत अफवाहें देखी जा रही है। सच्चाई यह है कि विज्ञान के पास इस घटना का साफ़ स्पष्टीकरण है। जेनेटिक्स के ज्ञान, और किसी किस्म के प्रकोप के फैलने पर होने वाले वैज्ञानिक अध्ययन ने वायरस में जेनेटिक म्यूटेशन की हमारी जानकारी को काफी विकसित किया है।

हम जानते हैं, वायरस के भीतर जेनेटिक सूचनाएं होती हैं जिसका इस्तेमाल वे अपने अस्तित्व में बने रहने और फलने-फूलने के लिए करते हैं। इंसान के डीएनए की तरह वायरल जीन (वायरल जीनोम) इसकी सभी सूचनाओं को एन्कोड करता है। इस सूचना में यह तथ्य भी शामिल होता है कि यह कैसे संक्रमित करेगा और यहां तक ​​कि यह किसे अपना निशाना (होस्ट) बनाएगा।

वायरस दो तरीकों से म्यूटेट करते या उत्परिवर्तित होते हैं:

  • पुनर्संयोजन (Recombination)। यह तब होता है जब दो या ज्यादा वायरस पाने DNA या RNA का कुछ हिस्सा आदान-प्रदान करते हैं, खुद को दूसरे की बनावट के अनुसार संशोधित करते हैं।
  • पुनर्विन्यास (Reassortment)। इस मामले में बदलाव किसी वायरस के भीतर होता है। यह आम तौर पर उसके जेनेटिक कंटेंट के दोबारा बढ़ने में होने वाली खामी के कारण होता है।

संक्रमित आबादी जितनी ज्यादा होगी, इसके म्यूटेट करने की संभावना उतनी ज्यादा होगी। वैसे वायरस क्यों घातक हो जाते हैं इस सवाल के साथ यह प्रश्न जोड़ना ठीक नहीं होगा कि वे कैसे बदलते हैं। उनमें से ज्यादातर, जैसा कि आप इस लेख में देखेंगे, अपने अस्तित्व में बने रहने के लिए मामूली रूपों में म्यूटेट करते हैं। क्योंकि ज्यादा घातक हो जाने पर वे अपने मेजबान से हाथ धो बैठेंगे जो उनके अस्तित्व को खतरे में डाल देगा।

वायरस क्यों बदलते हैं

ये क्यों बदलते हैं, इसका जवाब ख़ामियाँ हैं। लगभग हमेशा ही यह म्युटेशन इसके RNA -कोडिंग में होने वाली किसी त्रुटि का नतीजा होती है। कुछ वायरस में आरएनए के बजाय डीएनए होता है, जिससे खामी बाद में बढ़ जाती है।

क्योंकि DNA वायरस में अपने जेनेटिक कंटेंट को दोबारा पैदा करने का ज्यादा परिष्कृत तंत्र होता है। इसलिए जब वे संख्या बढ़ाने के लिए जीन की नकल कॉपी तैयार करते हैं तो उसमें कम गलतियाँ करते हैं। RNA वायरस में यह कंट्रोल मेकेनिज्म बहुत कम विकसित होता है।

DNA वायरस संक्रमित करने वाले व्यक्ति की कोशिकाओं में मौजूद पॉलीमरेज़ एंजाइम का इस्तेमाल करते हैं। आपको डीएनए वायरस की कल्पना एक पैरासाइट के रूप में करनी होगी जो पाने मेजबान के तमाम संसाधनों का फायदा उठाता है। डीएनए के पोलीमरेज़ में त्रुटियों को दुरुस्त करने की क्षमता होती है।

RNA वायरस अलग होते हैं, क्योंकि इस मामले में डीएनए पॉलीमरेज़ गलतियों को दुरुस्त नहीं कर सकते। इससे इनमें बार-बार म्यूटेशन होता है। RNA की जेनेटिक सूचना वाला वायरस आश्चर्यजनक तेजी से म्यूटेट करता है।

अब अगर हम इस सवाल का जवाब दें कि वे क्यों बदलते या म्यूटेट करते हैं, तो हमें यह कहना चाहिए कि वे अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं। जिस तरह तमाम स्पीशीज या प्रजातियाँ अपने अनुकूल होने वाले बदलावों का फायदा उठाकर अपना विकास करती हैं, वैसा ही वे भी करते हैं। हालाँकि यह बदलाव हमेशा संक्रमण फैलाने की  बढ़ी हुई क्षमता का पर्याय नहीं होती।

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क्या वायरस में म्यूटेशन हमेशा खराब होते हैं?

क्या वायरस में म्यूटेशन हमेशा खराब होते हैं?

नहीं, किसी वायरस म्यूटेशन का नतीजा हमेशा उन्हें अधिक घातक या मारक क्षमता के रूप में सामने नहीं आता है। यदि आप ऐसा सोचते हैं, तो यह एक विकासवादी गलती होगी। यह अपने ढेर सारे मेजबानों को नहीं मार सकता क्योंकि इससे आखिरकार वह खुद ख़त्म हो जाएगा।

वायरस होस्ट की परिस्थितियों के मुताबिक़ बदलते हैं। आदर वे कम घातक हो जाएँ तो वे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जाते हुए बिना किसी का ध्यान गए फल-फूल सकते हैं। अंततः यही वायरस का तर्कसंगत लक्ष्य है: अपना अस्तित्व बनाए रखना।

वायरस के बदलने पर मेजबान का इम्यून रिस्पांस भी बढ़ जाता है। यह एक अजीब संतुलन की ओर जाता है जहां मेजबान के साथ-साथ वायरस भी कायम रहता है। इंसानों में फ्लू एक ऐसा मामला है, जो हर साल मौसमी प्रकोप का कारण बनता है।

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कोरोनावायरस और इसके म्युटेशन के बारे में क्या पता चला है?

पेकिंग विश्वविद्यालय ने COVID-19 के स्ट्रेन को कोडीफाई करने का वैज्ञानिक अध्ययन किया। अब तक उन्होंने दो प्रकार के कोरोनावायरस की पहचान की है, जिन्हें क्रमशः “L type” और “S type” नाम दिया गया है।

चीन के वुहान में हुए प्रकोप में L टाइप ज्यादा डोमिनेंट था। यही सबसे पहले म्यूटेट हुआ और जानवरों के बीच फैलते हुए मनुष्यों के लिए संक्रामक बन गया। दूसरा स्ट्रेन या S टाइप फरवरी से संक्रमित मनुष्यों में पाया जाने लगा।

L टाइप ने इस साल जनवरी से अपनी उपस्थिति कम कर दी। एक्सपर्ट का मानना ​​है कि यह ह्यूमन एक्शन के कारण हुआ। इसके फैलने से रोकथाम के लिए जो उपाय किए गए, क्वैरेनटाइन करने के साथ-साथ, जिससे यह COVID-19 के अपेक्षाकृत कम घातक S type के वर्जन के रूप में सामने आया।

COVID-19 के म्युटेशन ने इसे जानवरों को ही नहीं, इंसानों को भी संक्रमित करने की क्षमता दी।

वायरस हमेशा बदतर के लिए नहीं बदलते हैं

वायरस कैसे बदलते हैं, यह जानना महामारी के विकास के बारे में सुराग देता है। अधिकांश प्रकोपों में अत्यधिक ट्रांसमिशन की एक स्थिति आती है, और फिर इसमें कमी आने लगती है। इनमें से एक फैक्टर इंसान का हस्तक्षेप है लेकिन दूसरा अहम कारण वायरस म्युटेशन है।

जो भी हो, वायरस में होने वाला यह म्युटेशन हमारे लिए प्रोत्साहन हैं क्योंकि मनुष्य भी अपनी आदतों को बदल सकते हैं और स्वस्थ उपाय अपनाना सकते हैं। रोकथाम के उपाय वायरस के म्युटेशन से लड़ने की कुंजी है।


यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।