अपने बेबी को उठकर बैठना कैसे सिखाएं?
माता-पिता अक्सर अपने बच्चों के पहले कारनामों का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। उनकी पहली मुस्कान, पहली बार घिसटकर उनके चलने और उनके पहले-पहले कदमों का वे इंतज़ार करते नहीं थकते। हालांकि यह सब धीरे-धीरे आपका बेबी सीख जाता है, तो भी माँ-बाप के लिए थोड़ी-बहुत बेचैनी होना एक आम बात होती है। आख़िर ऐसा कौन सा इंसान होगा, जो अपने शिशु को जल्द ही उठकर बैठता देखना नहीं चाहेगा? उठकर बैठने की इस प्रक्रिया में अगर अपने बेबी की मदद करने में आपकी दिलचस्पी है तो यह लेख ख़ास आपके लिए है।
सबसे पहले तो ज़्यादातर माता-पिता अक्सर इस सवाल के बारे में सोचते हैं: क्या मेरा बेबी खुद ही उठकर बैठने के लिए तैयार है?
अपने बेबी की पीठ को किसी प्रकार की कोई चोट पहुंचाए बगैर ही उसे देखने भर से ही आपको कुछ संकेत मिल जाएंगे। आपको बच्चे को मजबूर हरगिज़ नहीं करना चाहिए। वक़्त आने पर वह खुद ही उठकर बैठना सीख जाएगा।
आपको अपने बच्चे को आरामदायक कपड़ों में घर पर ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताने का मौका देना चाहिए। अपने शरीर को देखने-परखने व हिलाने-डुलाने के लिए भी आपको उसे स्पेस देना चाहिए। विकास के कुछ माइलस्टोन तक पहुँचते-पहुँचते वह उठकर बैठना भी सीख जाएगा।
कैसे जानें कि आपका बेबी उठकर बैठने के लिए तैयार हो चुका है या नहीं?
अपने बेबी के विकास के किसी भी चरण पर उस पर किसी तरह का कोई दवाब डालना भारी भूल होती है। हर बच्चा अपने आपमें अनोखा होता है। उसे कब क्या करना है, इसके लिए आपको कोई कैलेंडर नहीं रखना चाहिए। कुछ बच्चे तेज़ी से सीखते हैं तो कुछ को उन्हीं चीज़ों को सीखने में थोड़ा वक़्त लगता है।
उसी तरह, कुछ बच्चों के दांत तीन महीने की उम्र में ही आ जाते हैं और कुछ के आठ महीने की उम्र में आते हैं। इस बात के लिए कोई पूर्व-नियोजित समय-सीमा नहीं होती। इसलिए आपको अपने बच्चे के तैयार हो जाने तक का इंतज़ार करना चाहिए। जहाँ कुछ बच्चे छः महीने की उम्र में ही उठकर बैठना शुरू कर देते हैं, वहीं कुछ को इस काम में एक साल तक का समय भी लग जाता है।
हाँ, आप इन लक्षणों पर गौर ज़रूर कर सकते हैं:
- अगर आपका बेबी अपने पेट के बल लेटकर अपनी पीठ के बल लेट सकता है व फिर से अपने पेट के बल लेट सकता है तो इसका मतलब है कि उसकी मांसपेशियां मज़बूत होने लगी हैं।
- एक और ध्यान देने लायक लक्षण होता है कि कुर्सी पर बिठाए जाने पर क्या वह अपने दम पर उठकर बैठ सकता है या नहीं। आमतौर पर ऐसा छः महीने की उम्र के आसपास होने लगता है, पर इसका कोई निश्चित वक़्त नहीं होता। इस काम में 8 से 9 महीने का वक़्त भी लग सकता है।
इसे भी पढ़ें : डायपर रैश को रोकने के लिए चार टिप्स
उठकर बैठना: एक ख़ास लम्हा
उठकर बैठना सीख लेने का मतलब होता है, अपने साइकोमोटर विकास में आपका बेबी लंबे-लंबे कदम भरने लगा है। इस पॉस्चर की मदद से बच्चों की पीठ की मांसपेशियों में मज़बूती आ जाती है। साथ ही, चलने-फिरने में आने वाली असहजता और परेशानियों से भी वे बचे रहते हैं। एक बार वे उठकर बैठने लग जाएँ तो रेंगने-घिसटने और चलने-फिरने के लिए भी उनका शरीर तैयार हो जाता है।
इसलिए उसके शरीर के तैयार न हो जाने तक उठकर बैठने के लिए आपको उसे मजबूर नहीं करना चाहिए। अपने बच्चे की मांसपेशियों को अपनी स्वाभाविक गति से विकसित होने दें। जब बेबी उठकर बैठने लगेगा, तो अपने खिलौनों व अपना ध्यान आकर्षित करने वाली अन्य चीज़ों से खेलने के लिए वह पहले से ज़्यादा आज़ाद महसूस करेगा।
वह अपने परिवेश की छानबीन करने लायक जो हो जाएगा!
बेबी को उठकर बैठना सिखाने वाली एक्सरसाइज
क्या आपने कभी सोचा है कि क्या अपने बेबी को उठकर बैठना सिखाया जा सकता है? हालांकि आपके शिशु के विकास की अपनी एक रफ़्तार होती है, कुछ कसरतों की मदद से आप उसकी मांसपेशियों को दुरुस्त ज़रूर बना सकते हैं। ऐसा करने से आपका बेबी इस कला को जल्दी तो नहीं सीख पाएगा, पर विकास के इस चरण तक पहुंचना उसके लिए आसान ज़रूर हो जाएगा।
वैसे भी, इन कसरतों के बहाने आप अपने बेबी के साथ थोड़ा और वक़्त बिता सकेंगे। धीरे-धीरे एक खुशहाल और सेहतमंद ढंग से विकास की सीढ़ियाँ चढ़ने में आप उसकी मदद जो कर सकते हैं।
अपने बच्चे को उठकर बैठना सिखाने वाली इन कसरतों को शुरू करने से पहले आपको यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अपने साइकोमोटर विकास में वह कुछ मील के पत्थरों तक पहुँच चुका है। उदाहरण के तौर पर, लेटे-लेटे अपना सिर उठाने के साथ-साथ आपके द्वारा उसके हाथ पकड़ लेने पर उठकर बैठने का नाटक करने की क्षमता उसमें होनी चाहिए।
इसे भी पढ़ें : बच्चों में ऐफेक्टिव डिप्राइवेशन के 6 संकेत
अपने बेबी के साथ करें जिमनास्टिक्स
उसके विकास में गति लाने वाली इन कसरतों को करने के लिए फर्श पर एक कंबल बिछा दें। इस कसरत से उसकी एब्स, पीठ, गर्दन और बाज़ुओं में मज़बूती आ जाएगी। अपने बेबी के पसंदीदा खिलौनों को उसके आसपास रखना भी न भूलें।
- अपने बच्चे को पीठ के बल कंबल पर लिटा दें। उसके सामने बैठकर उसके हाथ थाम लें। फिर, धीरे-धीरे उसे उठाते हुए उसे वापस लिटा दें। इस प्रक्रिया को तीन से चार बार दोहराएं।
- अपने बच्चे को अपनी गोद में अपने सहारे बिठा लें। तालियाँ बजाने या पैटी केक जैसा कोई खेल खेलें। फ़ौरन ही अपनी पीठ को आपसे दूर कर वह अपने सहारे बैठने की कोशिश करने लगेगा। ऐसे में, उसकी बाज़ुयें थामकर आप उसकी मदद कर सकते हैं।
- अपने बेबी को पीठ के बल लिटा दें। उसे लुभाने के लिए उसके ऊपर किसी आकर्षक खिलौने को रख दें। धीरे-धीरे स्ट्रेच कर वह उसे पकड़ने की कोशिश करेगा।
अपने बेबी पर दबाव न डालें
अगर आपको लगता है कि आपकी हरकतों में आपका बच्चा अपनी दिलचस्पी खोता जा रहा है तो उस कसरत को वहीँ रोक दें। किसी भी मील के पत्थर की भांति, यहाँ भी सफलता की कूंजी होती है अपने बच्चे को उठकर बैठने के लिए प्रेरित करना, न कि उसे मजबूर करना। उसे थकाएं नहीं। उसके साथ बिताए जाने वाले पलों का लुत्फ़ उठाते-उठाते अपनी कोशिशें जारी रखें। जल्द ही, बैठी हुई मुद्रा में अपनी पहली फोटो के लिए आपका बेबी तैयार हो जाएगा!
- Instituto Universitario de Educación Física. (2010). Manual de estimulación adecuada. Bebés recién nacidos hasta los 2 años. Universidad de Antioquía. Colombia. http://viref.udea.edu.co/contenido/pdf/229-manual.pdf
- Celayeta Lazcano, A., & Cuesta Abil, A. (2015). La fisioterapia como método de apoyo y de prevención durante el desarrollo del bebé sano de 0 a 2 años. http://eugdspace.eug.es/xmlui/bitstream/handle/123456789/527/Fisioterapia%20en%20el%20bebé%20sano%20de%200%20a%202%20años.pdf?sequence=1&isAllowed=y