अलग-अलग किस्म के ब्रैस्ट कैंसर, उनके लक्षण और इलाज
स्तन में मौजूद कोशिकाओं के बदलने और बेकाबू रूप से बढ़ने पर पैदा होने वाले स्थायी रोग को ब्रैस्ट कैंसर कहा जाता है।
इन कोशिकाओं से सेल्स का एक गुच्छा बन जाता है, जिसे ट्यूमर कहा जाता है। ट्यूमर के विकास के आधार पर उसे सौम्य या घातक ट्यूमर कहा जा सकता है।
अगर ये कोशिकाएं बढ़ते-बढ़ते शरीर के अन्य भागों में फ़ैलने लगें तो इसका मतलब है कि वह एक घातक ट्यूमर है।
अलग-अलग प्रकार के ब्रैस्ट कैंसर
ब्रैस्ट कैंसर आक्रामक या गैर-आक्रामक रूप से विकसित हो सकता है। आक्रामक कैंसर अपने सटे हुए टिश्यू में फ़ैल जाता है, जबकि गैर-आक्रामक कैंसर केवल दूध की नलिकाओं (milk ducts)और ब्रैस्ट लोब्यूल में ही बढ़ता है।
यह पता लगाकर कि स्तन की वह कौन-सी जगह है जहाँ ट्यूमर का विकास हो रहा है, हम ब्रैस्ट कैंसर को इन अलग-अलग श्रेणियों में बाँट सकते हैं:
डक्टल कार्सिनोमा (Ductal Carcinoma)
डक्टल कार्सिनोमा सबसे आम प्रकार का ब्रैस्ट कैंसर है।
इसका विकास दूध की नलिकाओं को ढकने वाली कोशिकाओं में शुरू होता है। अगर यह सिर्फ नलिका में ही विकसित होता है तो इसे डक्टल कार्सिनोमा इन सीटू (DCIS) कहा जाता है। दूसरी ओर, अगर कैंसर नलिका के बाहर फ़ैल जाए तो वह इनवेसिव डक्टल कार्सिनोमा के नाम से जाना जाता है।
लोब्यूलर कार्सिनोमा
लोब्यूलर कार्सिनोमा ब्रैस्ट लोब्यूल में विकसित होने वाला कैंसर है।
अन्य प्रकार के ब्रैस्ट कैंसर
हालांकि डक्टल व लोब्यूलर कार्सिनोमा की तुलना में इनके कम ही मामले सामने आते हैं, फिर भी ब्रैस्ट कैंसर इन किस्मों का भी हो सकता है: मेड्युलेरी (medullary), म्युकीनस (mucinous), ट्यूब्युलर मेटाप्लास्टिक (tubular metaplastic) या पैपीलेरी ब्रैस्ट कैंसर (papillary breast cancer)।
ब्रैस्ट कैंसर के कारण
ब्रैस्ट कैंसर के कई मामले जन्म के बाद होने वाली जीन म्युटेशन के कारण होते हैं। आनुवंशिक कारण कम दुर्लभ तो होते हैं, लेकिन आनुवंशिक बदलावों के परिवार की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचने पर उसके होने की संभावना बनी रहती है।
फैमिली हिस्ट्री के अलावा इस बात पर ज़ोर देना भी आवश्यक है कि 50 की उम्र होते ही ब्रैस्ट कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। अगर आपके परिवार में किसी को ओवेरियन कैंसर हो चुका है या उनका मेनोपौस देर से आया है तो उसकी संभावना और भी ज़्यादा हो जाती है।
खतरे के अन्य कारण ये होते हैं:
- मोटापा
- शराब की लत
- आयनाइज़ करने वाली रेडिएशन के प्रति एक्सपोज़र
- हॉर्मोन रिप्लेसमेंट का उपचार करवाना
- मासिक धर्म का जल्दी शुरू हो जाना
ब्रैस्ट कैंसर के लक्षण
ब्रैस्ट कैंसर के ज़्यादातर मामलों में शुरुआती स्टेज में कोई भी लक्षण साफ़-साफ़ दिखाई नहीं देता।
इसीलिए किसी विशेषज्ञ को दिखाने के साथ-साथ आपको नियमित रूप से घर पर ही अपने स्तनों की जांच (सेल्फ-चेक) करते रहनी चाहिए । जैसे-जैसे कैंसर बढ़ता जाएगा, उसके ये लक्षण स्पष्ट होते जाएंगे:
- बगल वाली जगह (armpit) में एक सख्त और पीड़ाहीन गाँठ (lump)।
- निप्पल्स के आकार, रूप या बनावट में बदलाव।
- किसी स्पर्शनीय गाँठ या ग्रंथि (lump or nodule) का बनना, जिसमें आमतौर पर कोई दर्द नहीं होता।
- निप्पल से किसी बदबूदार खून-जैसे, पीले या हरे-से रंग के तरल का निकलना।
पुरुषों के ब्रैस्ट कैंसर के मामलों में कैंसर से छाती में गांठें पड़ने के साथ-साथ दर्द और संवेदनशीलता भी पैदा हो सकती है।
एडवांस्ड कैंसर स्टेज में कुछ लक्षण ये भी हो सकते हैं:
- त्वचा पर फोड़े,
- हड्डियों में दर्द,
- छाती में दर्द,
- कमज़ोरी और थकान,
- वज़न का तेज़ी से गिरना,
- बाज़ू के नीचे (आर्मपिट) वाली जगह में लिम्फ नोड्स में सूजन।
डायग्नोसिस
ब्रैस्ट कैंसर की डायग्नोसिस की शुरुआत शारीरिक जांच से होती है। उसके बाद दोनों स्तनों, बाज़ू के नीचे वाली जगह, गर्दन और छाती की जांच की जाती है।
किसी संभावित गड़बड़ी का पता लगाने के लिए महिलाओं को हर महीने घर पर ही अपने स्तनों की जांच करनी चाहिए।
अगर आपको किसी बीमारी का अंदेशा होता है या कोई गंभीर जोखिम वाली बात लगती है तो कैंसर की पुष्टि करने के लिए कोई मेडिकल एक्सपर्ट कुछ टेस्ट करा सकते हैं।
इनमें से मुख्य टेस्ट हैं:
- मैमोग्राफी (Mammography): एक्स-रे की मदद से स्तन में संभावित संदिग्ध जगहों का पता लगाना।
- मैग्नेटिक रेसौनैंस इमेजिंग (एमआरआई): इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड के माध्यम से प्राप्त इमेज के ज़रिये ट्यूमर का सटीक पता लगाना या मेम्मोग्राम में आए असामान्य बदलावों का अध्ययन करना।
- ब्रैस्ट अल्ट्रासाउंड: मेम्मोग्राम की मदद से किया गया यह टेस्ट यह बताता है कि ट्यूमर ठोस है या तरल।
- ब्रैस्ट बायोप्सी: सूई, इमेज-गाइडेड बायोप्सी, स्टीरियोटैक्टिक या ओपन बायोप्सी जैसी चीज़ों की मदद से किया गया एक टेस्ट।
- कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी: इस टेस्ट से यह पता चलता है कि कैंसर स्तनीय टिश्यू से बाहर फैला है या नहीं।
- सेंटिनल लिम्फ नोड की बायोप्सी: इस टेस्ट से यह पता चलता है कि कैंसर वाली कोशिकाएं लिम्फ नोड में फैली हैं या नहीं ।
इलाज
कैंसर का इलाज करते वक़्त डॉक्टर को कई बातों का ध्यान रखना चाहिए: कैंसर किस प्रकार का है, वह किस स्टेज में है, कुछ हॉर्मोनों के प्रति शरीर कितना संवेदनशील है और कहीं कैंसर की वजह से एच.इ.आर.2/नियु (HER2/neu) नाम का प्रोटीन तो अत्यधिक मात्र में तो नहीं बन रहा है।
इसके कुछ प्रमुख इलाज ये हैं:
- कीमोथेरेपी: इसमें दवा के माध्यम से कैंसर वाली कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है।
- रेडियोथेरेपी: इसका मकसद कैंसर वाले टिश्यू को नष्ट करना होता है।
- कैंसर वाले टिश्यू को हटाने की सर्जरी: अगर स्तन की गाँठ को हटा दिया जाए तो उसे लुम्पेक्टोमी ( lumpectomy) कहा जाता है। सारी की सारी ब्रैस्ट और उसकी आसपास की जगहों को हटाने वाली विधि को मासटेक्टोमी (mastectomy) कहा जाता है।
- टार्गेटेड थेरेपी: हार्मोनल ट्रीटमेंट इस प्रकार के इलाज का एक उदहारण है। इससे घातक कोशिकाओं की वृद्धि को बढ़ावा देने वाले हॉर्मोन को ब्लॉक कर दिया जाता है। इस विधि में कैंसर वाली कोशिकाओं में आए जेनेटिक बदलावों पर हमला बोलने के लिए दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है।
अपने कैंसर के अनुकूल इलाज प्राप्त करने के बाद कई महिलाओं को कुछ समय के लिए दवा लेते रहनी होती है। स्थिति कुछ भी हो लेकिन कैंसर की वापसी (रिलैप्स) या किसी अलग ही प्रकार के ब्रैस्ट कैंसर के विकास का निरीक्षण करने के लिए सभी मरीज़ों को डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना चाहिए।
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