7 संकेत जो बताते हैं, आपका लीवर जहरीले तत्वों से भर गया है
लीवर शरीर की सफाई-प्रक्रिया में भाग लेने वाले अंगों में से एक होता है। यह रक्त-प्रवाह में तैरते विषैले पदार्थों को छांटकर हटा देने का काम करता है।
एक अच्छी ज़िन्दगी बिताने के लिए एक स्वस्थ और सक्रिय लीवर का होना बहुत ज़रूरी है। आख़िर, अन्य चीज़ों के अलावा यह मेटाबोलिज्म में अहम भूमिका निभाता है। इसकी भूमिका कई हॉर्मोन के स्राव में भी है।
खराब आदतों का लीवर पर गहरा असर पड़ता है, जिसके फलस्वरूप कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि कई लोग इस बात को नज़रंदाज़ कर समय रहते उस पर कोई ध्यान नहीं देते क्योंकि वे इसे किसी और ही बीमारी के लक्षण समझ लेते हैं।
इसीलिए हम लीवर की परेशानी की ओर इशारा करने वाले 7 संकेतों की तरफ आपका ध्यान खींचना चाहते हैं।
इन्हें अनदेखा न करें!
1. वज़न का अकारण बढ़ना हो सकता है लीवर की समस्या का संकेत
लीवर में विषाक्त तत्वों की अत्यधिक मात्रा से फैट को पचाने की उसकी क्षमता पर असर पड़ता है। इस दखलंदाज़ी के कारण शरीर से फैट को हटाने वाली प्रक्रिया प्रभावित होती है।
इसके फलस्वरूप स्वस्थ वज़न बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, भले ही आप कम कैलरी वाले आहार का सेवन ही क्यों न कर रहे हों।
इस तरह हमारे शरीर में ज़हरीले फैट सेल बढ़ते हैं, जो लीवर की अक्षमता के कारण पूरे शरीर में फैल जाती हैं।
2. हमेशा थका-थका रहना
निरंतर रहने वाली थकान या हमेशा थका-थका रहना भी इस बात की ओर इशारा करता है कि आपके लीवर में विषाक्त तत्व बड़ी मात्रा में हैं।
अपना काम करने की लीवर की अक्षमता से मेटाबोलिक जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं, और इसीलिए हम हमेशा थका-थका महसूस करते हैं।
इससे हमें दर्द, सूजन और ऐसी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जो अपने दैनिक कार्य करने की हमारी क्षमता को प्रभावित करती हैं।
3. पसीना और शारीरिक दुर्गंध
हालांकि हम में से कई लोग इस बात पर कोई ध्यान नहीं देते, लेकिन लीवर के कार्यों का संबंध हमारे शरीर के तापमान और गंध से भी होता है।
विषैले तत्वों के जमाव से होने वाली जटिलताएं अत्यधिक पसीने और शारीरिक दुर्गंध का कारण बन सकती हैं।
ज़हरीले पदार्थों व बैक्टीरिया से लड़ते-लड़ते हमारा शरीर गर्म हो जाता है। उसके तापमान को नियंत्रित करने के हमारे शरीर के प्रयास ही पसीने और दुर्गंध का कारण बनते हैं।
4. सिस्ट वाले मुहांसे लीवर से जुड़े हो सकते हैं
एकदम से होने वाले मुहांसे किसी हार्मोनल समस्या या लीवर सिस्टम के फेलयर का संकेत हो सकते हैं।
अगर आपके मुहांसे बड़े और फूले हुए हैं और अक्सर दाग-धब्बों का कारण बनते हैं तो इसका संबंध लीवर की समस्या से हो सकता है।
त्वचा की इस समस्या से पीड़ित लोगों को आमतौर पर कील-मुहांसों को कम करने में मुश्किल आती है। इसका कारण उनके लीवर में अवरोधित ज़हरीले तत्व होते हैं।
मुहांसों से छुटकारा पाने के लिए आपको अपने लीवर की सफाई का कोई रास्ता ढूंढना चाहिए।
5. एलर्जी
ज़हरीले तत्व लीवर की अपनी सफाई करने की क्षमता पर असर डालते हैं। इससे एक ऑटो-इम्यून प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, जो एलर्जी का कारण बनती है ।
गड़बड़ी को भांपकर खून में मौजूद एंटीबॉडी तुरंत ही एलर्जी पैदा करने वाले तत्वों पर हमला बोल देती है।
अगर शरीर का प्रभावित अंग विफल होकर काम करने में अक्षम होने लगता है तो शरीर में हिस्टामाइन की अत्यधिक मात्रा जमा हो जाती है, जिसके ये नतीजे हो सकते हैं:
- सूजन
- पूरे शरीर में खुजली
- सिरदर्द
- नाक बंद होना
6. गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स
बदहज़मी और पेट की समस्याओं में गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स आम बात है, लेकिन यह समस्या लीवर की गड़बड़ी का संकेत भी हो सकती है।
जब कोई अंग अपना काम ठीक से करने में नाकाम रहता है, तब खून के पीएच स्तरों में बदलाव आने के कारण एसिडिटी बहुत बढ़ जाती है।
पीएच स्तरों को नियंत्रित न कर पाने की वजह से पेट की लाइनिंग में जलन होने लगती है और एसिडिक रसों को रोके रखने वाला अंग (स्फिंकटर) कमज़ोर हो जाता है।
7. सांस की दुर्गंध
ओरल हाइजीन की अच्छी आदतों के बाद भी अगर सांस की दुर्गंध एक समस्या बन जाए तो उसका संबंध लीवर से हो सकता है। विषैले पदार्थों को खून से अलग करने में लीवर के लिए आने वाली कठिनाइयाँ भी सांस की दुर्गंध का कारण हो सकती हैं।
जब लीवर के काम करने की रफ़्तार धीमी पड़ जाती है तो उसके टिश्यू में मल जमा होने लगता है। कई रोगियों में इसका नतीजा एक बदबूदार सांस के रूप में देखा जा सकता है।
लीवर में भारी धातुओं की मात्रा बढ़ जाने से मुंह में एक हल्का-सा धातु जैसा स्वाद भी आ सकता है।
क्या आप अपने शरीर में किसी भी उपरोक्त लक्षण को महसूस करते हैं ? अगर हाँ, तो अपने डॉक्टर से मिलकर यह पता लगाइए कि कहीं उसका कारण कोई लीवर समस्या तो नहीं है। इसके अलावा, अपने खाने-पीने की आदतों में सुधार लाकर ऐसे खान-पान का सेवन कीजिए, जो डीटॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया में सहायक होते हैं।
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