वेजिटेटिव स्टेट : जानिये इसके बारे में सबकुछ
कई शारीरिक बदलाव व्यक्ति की चेतना के स्तर पर असर डाल सकते हैं। ऐसी समस्याओं में वेजिटेटिव स्टेट का प्रमुख स्थान है। पहले वेजिटेटिव स्टेट शब्द का उपयोग ऐसे रोगियों के लिए किया जाता था जो बेहोश हों और जिनके महत्वपूर्ण अंगों के कामकाज प्रतिस्थापित किये गये हों।
1970 के दशक में पहली बार दो प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट ब्रायन जेनेट और फ्रायड प्लम ने वैज्ञानिक रूप से स्थिति का वर्णन किया। उसके बाद विशेषज्ञों ने ढेर सारे पेपर प्रकाशित कराये हैं जिनमें इस स्थिति का कई कोणों से विश्लेषण किया है। दरअसल कुछ विवाद अभी विचार-विमर्श के अधीन हैं।
इस लेख में हम वेजिटेटिव स्टेट के बारे में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं की व्याख्या करेंगे जिन्हें आपको जानना चाहिए।
वेजिटेटिव अवस्था क्या है?
इसे बेहतर ढंग से समझाने के लिए हम मस्तिष्क को दो भागों में विभाजित करने जा रहे हैं, वे जिन हिस्सों को नियंत्रित करते हैं:
- सेरिब्रल हेमिस्फेयर विचार और व्यवहार को नियंत्रित करता है, जिससे हमें अपने और अपने परिवेश के बारे में पता चलता है। उनमें हम फ्रंटल, टेम्पोरल, ओसिपिटल और पैरिएटल जैसे लोब हैं जिनके अपने अलग-अलग काम हैं जो उन न्यूरॉन द्वारा किये जाते हैं जो उन हिस्सों के कोर्टेक्स में होते हैं।
- थैलमस, हाइपोथैलेमस और ब्रेनस्टेम से बना डाईएनसेफलॉन शरीर के अहम कार्यों को नियंत्रित करता है। इनमें स्लीप-वेक साइकल, शरीर का तापमान, श्वास, ब्लडप्रेशर और हृदय गति सहित दूसरे काम शामिल हैं। मस्तिष्क का यह हिस्सा हमारा प्रिमिटिव या आदिम ब्रेन है।
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वेजिटेटिव स्टेट लंबे समय तक चलने वाली समस्या है जो तब आती है जब मस्तिष्क के गोलार्ध काम करना बंद कर देते हैं। इसलिए व्यक्ति स्वयं और पर्यावरण के बारे में जागरूक नहीं रह जाता है। हालांकि इस स्थिति में भी सबसे प्रमुख मस्तिष्क जो अपने वाइटल कार्यों को जारी रखता है, प्रभावित नहीं होता।
“लगातार जारी वेजिटेटिव स्टेट एक जटिल न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जिसमें रोगी जागता हुआ दिखाई देता है लेकिन खुद या अपने परिवेश के बारे में सजग होने का कोई संकेत नहीं देता।” – मोंटी एट अल., 2010
वेजिटेटिव स्टेट के कारण
वेजिटेटिव स्टेट के कई कारण हैं क्योंकि किसी भी गड़बड़ी में मस्तिष्क को क्षति होती है।
आम तौर पर यह इसलिए होता है कि ब्रेनस्टेम और डाइसेफेलोन का कामकाज किसी एजेंट के कारण दोबारा शुरू हो जाता है, लेकिन सेरिब्रल कोर्टेक्स के कामकाज या कॉर्टिकल फ़ंक्शन दुबारा शुरू नहीं हो पाते।
सबसे आम कारण हैं:
- हेड ट्रॉमा, किसे हेलमेट बाइकर की तरह जिसको किसी दुर्घटना में सिर में नुकसान पहुंचाता है
- ऐसी बीमारी जिसमें मस्तिष्क को ऑक्सीजन न मिलता हो जैसे कार्डियक अरेस्ट या श्वसन अवरोध।
- कार्डियोवैस्कुलर रोग जैसे कि कोई ब्रेन आर्टरी जो खून को मस्तिष्क तक पहुंचने नहीं देती और स्ट्रोक हो जाता है।
अन्य कारणों में ट्यूमर, हेमरेज, ब्रेन इन्फेक्शन और डिमेंशिया के अंतिम चरण जैसे कि अल्जाइमर आदि हो सकते हैं। ये समस्याएं आदिम ब्रेन को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, लेकिन सेरेब्रल कॉर्टेक्स को नुकसान पहुंचाती हैं।
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वेजिटेटिव स्टेट के लक्षण
वेजिटेटिव स्टेट वाले मरीज ऐसी कुछ चीजें कर सकते हैं जो आपको विश्वास दिला सकते हैं कि वे सजग हैं, जैसे:
- आंखें खोलना : रोगी के सोने के समय में बदलाव आ सकता है।
- दूसरी बातों के अलावा वे सांस ले सकते हैं, चूस सकते हैं, चबा सकते हैं, खांस सकते हैं, निगल सकते हैं और आवाज पैदा कर सकते हैं।
- यहां तक कि वे मजबूत उत्तेजनाओं के जावाब में प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
हालांकि प्रिमिटिव ब्रेन बिना किसी चेतना के इन प्रतिक्रियाओं को करता है। वे बुनियादी अनैच्छिक रिफ्लेक्स के परिणाम हैं।
डॉक्टर कैसे जान सकते हैं कि वे होश में नहीं हैं?
कोई व्यक्ति सचेत है, इसके लिए उनके कार्यों में इरादा होना चाहिए। यह इरादा दर्शाता है कि वे अपने बाहरी परिवेश से जुड़े हैं:
- हालांकि रोगी अपनी आंखें खोल और बंद कर सकता है और आंखों की एक्टिविटी कर सकता है, लेकिन उनका कोई उद्देश्य नहीं होता है। गतिविधियाँ रैंडम होती हैं और बिना किसी उत्तेजना के। उदाहरण के लिए अगर रोगी की आंखें खुली हैं और आप उनके सामने पेंसिल रखते हैं, तो उसकी आंखें इसके इधर-उधर करने पर पीछा नहीं करेंगी।
- रोगी कोई वॉलंटियरी या इनवॉलंटियरी मोटर मूवमेंट नहीं करता है। यदि वे एक इशारा करते हैं या एक अंग को उठाते हैं, तो इसलिए कि वे तीव्र उत्तेजनाओं पर प्रतिक्रिया कर रहे हैं। उदाहरण के लिए तेज शोर के कारण वे चौंक सकते हैं। बाकी गतिविधियाँ प्रिमिटिव रिफ्लेक्स हैं, जैसे कि चूसना, चबाना और निगलना आदि।
- वे एक शब्द भी नहीं बोलते और न ही बोल सकते हैं। यदि मरीज कोई शोर मचाता है, तो यह प्रिमिटिव शोर होगा।
- यदि उन्हें मौखिक या लिखित आदेश दिया जाता है, तो वे इसका पालन नहीं करते हैं या इस पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।
- रोगी में मल और मूत्र असंयम होता है।
- इसलिए रोगी को कुछ भी पता नहीं है लेकिन उनके दिल और फेफड़े काम करना जारी रखते हैं। दूसरे शब्दों में वे अपने रक्तचाप और कार्डियोरैसपाइरेटरी कार्यों को बनाए रख सकते हैं।
डायग्नोसिस
इस स्थिति की डायग्नोसिस डॉक्लटरों के मूल्यांकन पर आधारित है। हालांकि रोगी में वेजिटेटिव स्टेट के सभी लक्षण हों तो भी डॉक्टर को इसकी पुष्टि करने के लिए थोड़ी देर के लिए रोगी का निरीक्षण करना चाहिए। ऐसा न करने से चेतना के कुछ संकेतों की अनदेखी की जा सकती है।
इमेजिंग टेस्ट यह पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि मस्तिष्क का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है और देखा जा सकता है कि क्या इसका इलाज किया जा सकता है। किसी प्रकार की चेतना बची है, यह देखने के लिए डॉक्टर fMRI या इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) जैसे टेस्ट करा सकते हैं।
ये टेस्ट रोगी की चेतना के स्तर का पता नहीं लगा सकते हैं। वे केवल यह पता लगाते हैं कि क्या कोई ऐसी चेतना है जो आंखों से देखी नहीं जा सकती। ये नतीजे लॉन्ग टर्म केयर और रिकवरी की संभावना के बारे में निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं।
वेजिटेटिव स्टेट प्रोग्नोसिस
आम तौर पर एक महीने से ज्यादा वक्त के बाद यह एक लगातार बना रहने वाला वेजिटेटिव स्टेट माना जाता है। हालांकि, विशेषज्ञों ने स्थापित किया कि वेजिटेटिव स्टेट का कारण, इसकी अवधि और रोगी की उम्र ऐसे हैं जोहैं जो रोग के प्राग्नोसिस को बदल सकते हैं।
कुछ सुधार दिखाई दे सकता है। हालाँकि यह आम तौर पर बहुत कम होता है और जीवन की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी नहीं होती है।
वेजिटेटिव स्टेट के लिए ट्रीटमेंट
वेजिटेटिव स्टेट में लोगों को व्यापक देखभाल की जरूरत होती है। इन सबसे ऊपर डॉक्टर और तीमारदार निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं:
- गतिहीनता के कारणों के लिए निवारक उपाय। सहारा देने वाले स्थानों पर अल्सर उभर सकते हैं। इसके अलावा, खून नसों में स्थिर हो जाता है, जिससे थ्रोम्बी या रक्त के थक्के बन जाते हैं। इससे बचने के लिए रोगी को परोक्ष रूप से सक्रीय करना चाहिए।
- अच्छा पोषण। यह ट्यूब के जरिये होता है जो मुंह / नाक से पेट तक या सीधे पेट तक जाता है। पोषक तत्वों को भी इंट्रावीनस रूप से भी पहुंचाया जा सकता है।
- संक्रमण को रोकने के लिए ट्यूब और रोगी की अच्छी साफ़-सफाई होनी चाहिए
ठीक न होने की संभावना
यह संभावना नहीं है कि ये रोगी ठीक हो जाएंगे। डॉक्टरों, रिश्तेदारों और कभी-कभी अस्पताल की नैतिकता समिति से चर्चा करनी चाहिए कि रोगी का इलाज कैसे किया जाएगा।
इसके अलावा, इन इलाजों के बारे में रोगी की इच्छाओं पर विचार किया जाना चाहिए।
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