सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस : यह क्या है?
सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (Systemic lupus erythematosus -SLE) एक रयूमैटिक बीमारी है (वह बीमारी जो त्वचा और कनेक्टिव टिशू को प्रभावित करती है), जिसे ऑटोइम्यून बीमारी माना जाता है।
ऑटोइम्यून बीमारी होने के कारण इसकी सबसे विशिष्ट विशेषता ऑटो एंटीबॉडी की उपस्थिति होती है। दूसरे शब्दों में व्यक्ति की अपनी रोग प्रतिरोधी प्रणाली द्वारा बने एंटीबॉडी जो अपने ही शरीर की कोशिकाओं पर “हमला” करते हैं।
हालांकि ल्यूपस के मामले में, इन ऑटो एंटिबॉडी का अंतिम परिणाम अंगों और टिशू में घावों का उभरना होता है।
इस कारण इसे “सिस्टेमिक यानी प्रणालीगत बीमारी” या “नॉन ऑर्गन स्पेसिफिक” माना जाता है।
यह एक ऐसा रोग है जिसमें लक्षणों का घटना और बढ़ना बारी-बारी से जारी रहता है।
प्रसार
सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है जिसका अनुपात (10: 1) है। काले पुरुष और महिलाओं में इसका अनुपात (3: 1) है। बाकी आबादी के मुकाबले यह बीमारी मरीज के प्रत्यक्ष रिश्तेदारों के लिए ज्यादा जोखिमकारी होती है।
सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस के 65% मामलों में व्यक्ति की उम्र 20 से 40 वर्ष के बीच पायी गयी है।
एटियलजि (Etiology)
सबसे पहले बता दें की इस बीमारी का सटीक कारण अभी भी अज्ञात है। हालांकि यह निर्विवाद रूप से लगता है कि इसके कई कारण हो सकते हैं।
आनुवांशिक, हार्मोन और पर्यावरण से जुड़े कारकों की एक चेन पूर्व प्रवृत्त इम्यून सिस्टम पर असर करती है, जो आखिरकार रोग के ख़ास लक्षणों को उभरने की और ले जाता है।
इम्यून सिस्टम के “आनुवंशिक रूप से पूर्व प्रवृत्त” होने का क्या मतलब है?
किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम सिर्फ कुछ सीधे कारणों से इस असामान्य प्रतिक्रिया को ट्रिगर नहीं करता है, बल्कि इसलिए कि इसके लिए वह पूर्व प्रवृत्त है। इसका अर्थ यह है कि आनुवंशिक रूप से उसमें पहले से ही इसका असर मौजूद है।
यह पूर्व रुझान उमसें मौजूद अति संवेदनशील जीन के मौजूद होने के कारण (ये वे जीन हैं जो इस बीमारी से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं, और जिनके मौजूद होने पर उस व्यक्ति में इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है) और सुरक्षात्मक जीन की अनुपस्थिति के कारण होता है।
ये कारक मिलकर बाहरी या अंदरूनी फैक्टर के विरुद्ध रोग प्रतिरोधी प्रणाली की प्रतिक्रिया में बदलाव कर देते हैं।
आखिरकार जब यह प्रतिक्रिया बहुत लंबी हो जाती है, तो वे इसे ऑटोइम्यूनिटी कहते हैं।
निर्धारक कारण
जेनेटिक कारक
सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस का एचएलए – डीआर 3 (HLA – DR3) और एचएलए – डीआर 2 (HLA – DR3) से अहम संबंध है। यह उन जीनों से जुड़ता है जो पूरक प्रणाली (कॉम्प्लीमेंट सिस्टम) की कोड कम्पोनेंट (C2 और C4 की कमी से संबंध है) हैं।
एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) किसी व्यक्ति के शरीर में सभी कोशिकाओं में मौजूद अणु होते हैं। संयोग से वे इम्यून सिस्टम को अपने (हमला नहीं करना है) और दूसरे (हमला करना है) के बीच फर्क करने की अनुमति देते हैं।
कॉम्प्लीमेंट सिस्टम (complement system ) अणुओं से बनता है जिसका लक्ष्य ऐसी किसी भी चीज़ को खत्म करना होता है जो “गैर” है।
हार्मोन से जुड़े कारक
पुरुषों बच्चे पैदा करने वाली उम्र की महिलाओं में सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस ज्यादा असर सेक्स हार्मोन और इस रोग के बीच किसी किस्म के लिंक की सोच देता है।
इसलिए रोग के लिए एक हार्मोन (एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, प्रोलैक्टिन, टेस्टोस्टेरोन …) और अन्य (हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी या गर्भनिरोधक) अहम भूमिका निभाते हैं। इस प्रभाव की अहमियत पर कोई आम सहमति नहीं है।
पर्यावरण से जुड़े कारण
कुछ पर्यावरणीय कारक सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस को ट्रिगर या तेज करने लगते हैं।
- यूवी रेडिएशन, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता (सूरज की रोशनी के प्रति बहुत ज्यादा प्रतिक्रिया) से जुड़ा हुआ है। दरअसल यह बीमारी का एक लक्षण है और लंबे समय तक धुप में रहने के बाद फैलती है।
- वायरल संक्रमण, जैसे एपस्टीन-बार (Epstein-Barr) या एक रेट्रोवायरस।
- दवा-प्रेरित, जिन मामलों में लक्षण इम्यून सिस्टम को प्रभावित करने वाली कुछ दवाओं के कारण हो सकते हैं। ऐसा कुछ जो प्रीकैनामाइड (procainamide – antiarrhythmic) या हाइड्रैलेज़ीन (है ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए) से होता है।
पैथोजेनी (Pathogeny)
इसके अंतिम परिणाम शरीर के टिशू में इम्यून काम्प्लेक्स (immune complexes) का निर्माण और जमाव है। (इम्यून काम्प्लेक्स एंटीजन-एंटीबॉडी के मेल के परिणामस्वरूप बने अणु को दिया गया नाम है।)
सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस
यह जमाव वह मुख्य तंत्र है जिसके द्वारा टिशू में घाव बनता है, साथ ही असामान्य इम्यून रिस्पांस से होने वाली सूजन और एपोप्टोसिस प्रक्रियाएं (कोशिका मृत्यु) हैं।
आम लक्षण (95%): थकान, भूख की कमी, वजन में कमी, सामग्रीक असुविधा। लगातार जोड़ों का दर्द।
मस्कुलोस्केलेटल लक्षण (95%): मुख्य रूप से मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द से मिलकर होती हैं। संयोगवश यह सबसे आम लक्षण है।
त्वचा के घाव (80% मामलों में): ल्यूपस वाले ज्यादातर लोग प्रकाश संवेदनशीलता से पीड़ित होते हैं। त्वचा के घाव भी तीन तरह से दिखाई दे सकते हैं:
- एक्यूट क्यूटेनियस ल्यूपस (50%): घावों की एक किस्म जो इस रोग की बड़ी ख़ास विशेषता है, वह यही तितली के पंखों के आकार में चेहरे की एरिथेमा (चेहरे में लालिमा) का दिखाई देना। यह कोई निशान नहीं छोड़ता है। और इसका उभरना धूप और इसके नए प्रकोप से जुड़ा होता है। यह कभी-कभी दूसरे अंगों (गर्दन, कंधे, हाथ …) में लाल चकत्ते के साथ उभर सकता है।
- सबक्यूट क्यूटेनियस ल्यूपस (10%): धूप में गर्दन और कंधों पर बराबर सिमेट्री वाले फफोले दिखाई देते हैं। वे निशान नहीं छोड़ते हैं, हालांकि त्वचा का डिस्कलरेशन कर सकते हैं।
- क्रोनिक क्यूटेनियस ल्यूपस (30%): लगभग आधे रोगियों में मुंह और नेजल कैविटी की म्यूकस मेम्ब्रेन में अल्सर जैसे घाव भी होते हैं।
रक्त में बदलाव (80%): सबसे आम क्रोनिक एनीमिया है।
न्यूरोलॉजिकल लक्षण: जैसे कि सिरदर्द, डिप्रेशन, एंग्जायटी, कन्वल्शन …
फेफड़े के लक्षण: आधे रोगियों में। सबसे आम फुफ्फुसशोथ (pleuritis) है और सबसे गंभीर जबरदस्त एल्वियोलर हैमरेज (सौभाग्य से यह बहुत दुर्लभ है) है।
कार्डियक लक्षण: सबसे आम पेरिकार्डिटिस (pericarditis) है।
ल्यूपस नेफ्राइटिस (Lupus nephritis)। यह आधे रोगियों को प्रभावित करता है और चिंता का कारण है।
प्रभावित अंग के आधार पर कई दूसरे लक्षण भी हो सकते हैं, जैसे कि गर्भपात, केराटोकोनजंक्टिवाइटिस, आदि।
ल्यूपस की डायग्नोसिस
ल्यूपस का सबसे विशिष्ट लक्षण एएनए ऑटोएंटिबॉडीज (antinuclear autoantibodies) की उपस्थिति है, जो 80-90% रोगियों में पाया जाता है।
- एएनए ऑटोएंटिबॉडीज ल्यूपस के लिए विशिष्ट नहीं हैं, क्योंकि वे अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों में भी देखे जाते हैं।
- ये एंटीबॉडी मौजूद नहीं हो ने पर भी व्यक्ति को ल्यूपस हो सकता है। एएनए नेगेटिव मरीजों (10-20%) में रेनॉड बीमारी (Raynaud’s disease) हो सकती है।
- एएनए के मामले में एंटी डीएनए डीएस (Anti DNA DS) ल्यूपस के लिए सबसे विशिष्ट हैं।