जानिए, पोटैटो लाइट कैसे बनाते हैं
अगर आपको स्कूल के समय अपनी साइंस की क्लास पसंद थी, तो यह छोटा-सा एक्सपेरिमेंट आपके लिए है।
इसके लिए आपको बस एक आलू चाहिये। अगर आप कुछ छोटी-मोटी चीजें इकठ्ठा कर सकते हैं, जो आपको किसी भी हार्डवेयर स्टोर में मिल सकती हैं तो यह स्टार्च एक बैटरी की तरह काम कर सकता है जो इकोलॉजिकल घरों की नई जनरेशन में एक एलिमेंट बनाता है।
इज़राइल के जेरूसलम स्थित हिब्रू यूनिवर्सिटी के हैम राबिनोविच वर्षों से एक ऐसी डिवाइस बनाने के लिए काम कर रहे हैं, जो आलू में जमा एनर्जी को निकालने की काबिलियत रखती है।
इस रिसर्च की शुरुआत उन लोगों की मदद करने के खयाल से हुई थी जिनकी इलेक्ट्रिकल ग्रिड तक पहुंच नहीं है।
राबिनोविच के अनुसार आपको बस इस सब्जी को दो वायर और स्क्रू से जोड़ना है, और हाँ! कृत्रिम रोशनी को अलग-अलग जगहों तक पहुँचाने के लिये एक LED बल्ब भी जोड़ना है।
अध्ययन में पाया गया कि पोटैटो लाइट का इस्तेमाल लगभग 40 दिनों तक किसी कमरे को रोशन करने के लिए किया जा सकता है।
पोटैटो लाइट कैसे बनाएं (make a potato light)
जरूरी चीजें
- 2 छोटे आलू (8 मिनट तक पकाये गए हों)
- 3 कॉपर केबल
- 2 कॉपर की वायर या रॉड
- 2 जिंक रॉड या कील
- 1 छोटा बल्ब, 1.5V
बनाने का तरीका
- कॉपर की दो वायर या रॉड पर कॉपर की केबल लपेटें।
- दोनों को एक आलू में चुभा दें।
- तीसरी कॉपर की केबल को जिंक रॉड पर लपेट दें और इसे भी एक आलू में चुभा दें।
- कॉपर केबल का एक सिरा लें और इसे दूसरी जिंक रॉड के चारों ओर लपेट दें।
- इसआखिरी जिंक रॉड को दूसरे आलू में डाल दें।
- वायर के दोनों खुले हुये सिरों को बल्ब के संपर्क में लायें (ध्यान रहे! कॉपर को न छुयें)।
- तैयार हैं? यह कमरे को रोशनी देता है!
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यह कैसे काम करता हैं?
असल में, आलू बिजली पैदा नहीं करता है। इसमें एस्कॉर्बिक एसिड होता है। इस कंपाउंड के एक कॉपर इलेक्ट्रोड और जिंक के साथ मिलने पर इलेक्ट्रॉन इस नेचुरल प्रोडक्ट को पॉवर ड्राइव के रूप में इस्तेमाल करके एक जगह से दूसरी जगह जाने लगते हैं।
इस घटना को “रेडॉक्स रिएक्शन” के रूप में जाना जाता है, और इसमें तरह-तरह के इलेक्ट्रिकल उपकरणों को चालू करने और पॉवर देने की क्षमता होती है।
“आलू को इसलिये चुना गया है क्योंकि वे लगभग हर जगह उगाए जा सकते हैं, यहाँ तक कि ट्रापिकल और सब्ट्रापिकल क्लाइमेट में भी। यह दुनिया में सबसे ज्यादा मात्रा में उगाई जाने वाली फसलों में से है। “
-हैम राबिनोविच–
पोटैटो लाइट का इतिहास (history of potato light)
राबिनोविच के मुताबिक, स्कूलों में आलू, बच्चों को साइंस सिखाने के लिये इस्तेमाल होने वाला नंबर एक भोजन है। लेकिन अभी तक किसी ने भी एक ऊर्जा स्रोत के रूप में इसका इस्तेमाल करने के बारे में कोई रिसर्च नहीं की है।
फिज़िसिस्ट एलेसेंड्रो वोल्टा और लुइगी गलवानी 1780 में पहले ही ऊर्जा पैदा करने के अलग-अलग तरीकों का अध्ययन कर चुके थे, जैसे कि:
- नमक के पानी में भिगोया हुआ कागज।
- दो मेटल प्लेटों और बहुत सारी मिट्टी या पानी की एक बाल्टी का इस्तेमाल करके “बैटरी” बनाना।
पोटैटो लाइट का रहस्य (The mystery of the potato light)
अगर यह एक्सपेरिमेंट पोटैटो लाइट के काम करने का तरीके और फायदों को साबित कर चुका है तो फिर इसका इस्तेमाल हर जगह क्यों नहीं शुरू किया गया?
राबिनोविच के अनुसार, इसे थोड़ा और “रिसर्च और प्रचार-प्रसार की जरूरत है। तभी लोग बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने के लिए आलू का इस्तेमाल करना शुरू करेगें, खासकर उन इलाकों में जहां बिजली उपलब्ध नहीं है।”
हालांकि, ऐसे भी कई लोग हैं जो खाने की चीज से बिजली पैदा करने के इस तरीके का विरोध करते हैं।
आलोचकों का तर्क है कि खाने की चीजों से ऊर्जा पैदा करने की यह तकनीक भूखे या अकाल झेल रहे लोगों को खाने से दूर करती है। इसे सफल या सही फैसला नहीं माना जाता है।
हालांकि, आंकड़े बताते हैं, दुनियाभर में लगभग 360 मिलियन टन आलू की पैदावार होती है। स्टोर करने में आसान और लंबे समय तक चलने के अलावा इसका उत्पादन भी सस्ता होता है।
यह इस वजह से सही है कि बिजली की कमी वाले इलाकों में इस तरह की टेक्नोलॉजी को विकसित और लागू करना आर्थिक रूप से फायदेमंद हो सकता है।
जिंक और कॉपर की रॉड का निर्माण भी केरोसिन लैंप से थोड़ा सस्ता ही पड़ता है। फिर भी, समस्या इस बेबुनियादी बात में है कि कमरे को रोशन करने के लिए खाने की चीज का इस्तेमाल ज्यादातर लोगों को पसंद नहीं है।
“यह एक लो वोल्टेज सप्लाई है, लेकिन यह एक बैटरी बनाने के लिए काफी है जो आपके मोबाइल फोन और लैपटॉप को उन जगहों पर भी चार्ज कर सकता है जहां बिजली उपलब्ध नहीं है।”
-हैम राबिनोविच–
- Golberg, A., Rabinowitch, H. D., & Rubinsky, B. (2010). Zn/Cu-vegetative batteries, bioelectrical characterizations, and primary cost analyses. Journal of Renewable and Sustainable Energy. https://doi.org/10.1063/1.3427222
- Yissum, Hebrew University of Jerusalem. (June 17, 2010) “Potato Power – Yissum Introduces Potato Batteries for Use in the Developing World”. http://www.yissum.co.il/sites/default/files/potato_batteries_eng_final.pdf