
कैंडिडिऑसिस एक संक्रमण है जो कैंडिडा प्रजाति से जुड़े एक फंगस से होता है। इससे कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं। वे त्वचा, म्यूकस मेम्ब्रेन और गहराई वाले टिशू को प्रभावित करते हैं। इसके लक्षण बहुत परिवर्तनशील हैं और…
घुटने की आर्थ्रोस्कोपी ऑपरेशन के समय सर्जन के लिए जॉइंट्स को संपूर्णता में देख पाने की सहूलियत देता है। इसके बारे में ज्यादा जानने के लिए यह आर्टिकल पढ़ें!
घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपी एक सर्जिकल प्रक्रिया है। वे ट्रॉमा और आर्थोपेडिक सर्जरी में इसका इस्तेमाल करते हैं। यह टेकनीक डायग्नोसिस की सुविधा देती है और जॉइंट्स की कई बीमारियों का इलाज करने में मदद करती है।
यह प्रक्रिया कई दूसरी प्रक्रियाओं के मुकाबले बहुत कम इनवेसिव है। इस तथ्य के बावजूद यह ध्यान रखना अहम है कि घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपी एक सर्जिकल प्रक्रिया है। इस कारण सिर्फ आघात और आर्थोपेडिक सर्जनों को ही इसे करना चाहिए।
सर्जन को यह जो इमेज देती है उसे कैमरे से खींचा जाता है। इसे प्राप्त करने के लिए बस एक मामूली चीरा लगाना पड़ता है, जो मुश्किल से कोई निशान छोड़ता है। इसलिए यह एक नॉन-इन्वेसिव प्रक्रिया है जो अस्पताल में भर्ती होने के समय में कटौती करती है।
ज्यादातर मामलों में मरीज़ उसी दिन घर लौट सकते हैं, जिससे रिकवरी में सुविधा होती है।
यह तकनीक विशेषज्ञों को कम से कम इनवेसिव तरीके से घुटने के अंदर की स्थिति को देखने की सहूलियत देती है। वे इसका इस्तेमाल विभिन्न समस्याओं या चोटों का इलाज करने के लिए करते हैं।
आखिरकार कई बीमारियां और इंजरी जॉइंट के विभिन्न हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जैसे कि:
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लिगामेंट की चोटों में सही डायग्नोसिस के लिए घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपी की ज़रूरत होती है। ये चोटें दो तरह की होती हैं: एंटेरियर क्रूसिएट लिगामेंट (anterior cruciate ligament-ACL) इंजरी और पोस्टेरियर क्रूसिएट लिगामेंट (posterior cruciate ligament -PCL) इंजरी।
ACL वह लिगामेंट है जो अत्यधिक गति को नियंत्रित करता है। इसका नाम इस बात से निकला है कि यह एक अन्य लिगामेंट को पार करता है। यह अन्य लिगामेंट पोस्टेरियर क्रूसिएट लिगामेंट है। यह टिबिया के पिछले हिस्से से जुड़ता है।
यह चोट बहुत आम है और आमतौर पर जबरन घुमाने से होती है। इसके अलावा अगर वहाँ मेनिस्कस फटा हुआ है, एंटेरियर क्रूसिएट लिगामेंट और मेडियल कोलेटरल लिगामेंट, तो इसे “दुखदायी त्रयी’ यानी अनहैपी ट्राईयाड के रूप में जाना जाता है।
तकलीफ वाले एक युवा और ठीक-ठाक सक्रिय व्यक्ति में लिगामेंट को फिर से संगठित करना अहम होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह अक्सर डिजेनेरेटिव जॉइंट रोग का कारण बनता है और मेनिस्कस इंजरी पैदा कर सकता है।
फटे हुए मेनिस्कस वाले लोग आमतौर पर डायग्नोसिस और रिपेयरिंग दोनों के लिए इस टेकनीक का सहारा लेते हैं।
मेनिस्कस एक फाइब्रो-कार्टिलेज है जिसमें घुटने में महत्वपूर्ण काम होते हैं। यह,
कभी-कभी जब चोट अभी फ्रेश और ताजी है, तो एक्सपर्ट मेनिस्कस की मरम्मत कर सकते हैं। वे पूरी तरह से एक घुटने की आर्थोस्कोपी के साथ एक फटे हुए मेनिस्कस की रिपेयरिंग कर सकते हैं। वैकल्पिक रूप से वे इसका इलाज दवा से भी कर सकते हैं।
एक क्षतिग्रस्त मेनिस्कस को डोनर टिशू से बदलने वाले मेनिस्कस ट्रांसप्लांट्स को घुटने की आर्थोस्कोपी से भी किया जा सकता है।
कार्टिलेज एक चिकनी लोचदार टिशू है जो फीमर, टिबिया और नीकैप के जॉइंट को कवर करता है और उनकी सुरक्षा करता है। कार्टिलेज की चोटों का सबसे आम कारण ऑस्टियोआर्थराइटिस है।
हालांकि अन्य चीजों के अलावा ओस्टियोकॉन्ड्राइटिस (osteochondritis dissecans), इन्फेक्शन, मेटाबोलिक गड़बड़ियां और ट्रॉमा भी इन चोटों का कारण बन सकते हैं। रोगी की उम्र, एक्टिविटी और अपेक्षाओं के आधार पर कार्टिलेज की मरम्मत या रिकन्सट्रक्शन के लिए कई सर्जिकल विकल्प हैं।
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इस तकनीक की बदौलत रोगियों को अस्पताल में वक्त बिताने की ज़रूरत नहीं होती है। यह तेजी से रिकवरी की सुविधा देता है।
घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि सर्जन जॉइंट को पूरी तरह देखने में सक्षम होता है। इसके लिए उस छोटी सी डिवाइस को धन्यवाद देना चाहिए जिसे ऑर्थ्रोस्कोप कहा जाता है।
ऑर्थ्रोस्कोपी का एक और फायदा यह है कि इसके लिए बहुत ही छोटे से चीरे की ज़रूरत है। यह तकनीक आमतौर पर अस्पताल में थोड़ा वक्त बिताने और शीघ्र स्वस्थ होने की ओर ले जाती है। कई रोगी तो घुटने की आर्थोस्कोपी की प्रक्रिया कराने के दिन ही अस्पताल से जा सकते हैं।
आपको यह ध्यान रखना होगा कि रोगी विभिन्न चोटों या बीमारियों के कारण घुटने की ऑर्थ्रोस्कोपी से गुजरते हैं। इसलिए अस्पाताल में रोगी के रहने का समय उसके चोट की विशेष स्थिति पर निर्भर करेगा। संक्षेप में इस सर्जरी की हर रोगी में अलग-अलग हो सकती है।