उसने कैंसर को मात दी, लेकिन स्कूल में डराये-धमकाने जाने को नहीं झेल सकी
माता-पिता का सबसे बड़ा डर यह होता है कि कहीं उनके बच्चे को कैंसर न हो जाए। न सिर्फ मृत्यु की संभावना बल्कि कैंसर के इलाज, इसके साइड इफेक्ट्स और उसके बाद की स्थिति माता-पिता को डराती है। मेडिकल मसलों के अलावा भी स्कूल में डराए-धमकाये जाने की संभावना भी माँ-बाप के लिए सबसे बड़े डर में एक है।
इन सबके बावजूद, हर दिन हमें ऐसे बच्चे ज्यादा से ज्यादा दिखाई दे रहे हैं जिनके लिए कैंसर भले ही एक बड़ी बाधा रही हो, लेकिन वे उससे उबरे हैं। हालांकि स्कूल में डराए-धमकाने जैसी अन्य परिस्थितियां भी हैं जो बच्चों को बर्बाद कर सकती हैं। ऐसा ही बेथनी (Bethany) के मामले में हुआ।
यह 11 वर्षीय बच्ची वर्षों तक स्कूल में डराये-धमकाये जाने का शिकार होने के बाद आत्महत्या करने का फैसला किया। डराने वाले हमेशा से ताक में थे और जो उनसे अलग हो उस पर हमला करने के इंतज़ार में थे। बेथनी उनके लिए सही शिकार साबित हुई।
हालांकि उसने 3 वर्ष की आयु में कैंसर को हराया था, लेकिन कैंसर ने उस पर एक निशान छोड़ा: एक टेढ़ा मुंह।
उसके कुछ स्कूली साथियों के लिए इतना काफी था जिन्होंने निर्दयता से बेथनी का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।
बेथनी जितना सह सकती थी उतना उसने सहन किया। उसने डराने धमकाने और परेशान करने के बारे में अपने माता-पिता और स्कूल के मैनेजमेंट से बात की। हालांकि स्कूल के प्रयासों और उसके माता-पिता के सपोर्ट के बावजूद कुछ भी नहीं बदला। उसने आत्महत्या करने का फैसला किया।
बेथनी और उसकी दोस्त ने पोस्टर की मदद से डराये-धमकाये जाने की सूचना दी
इतनी कम उम्र में ऐसी गंभीर बीमारी से लड़कर जीतना आपके ऊपर एक निशान छोड़ देता है।
जब कोई कैंसर से जूझ रहे होता है तो हर दिन और हर सेकंड मौत के खिलाफ एक संघर्ष होता है, इसलिए वह जल्दी सीखता है कि जीवन से सीधा सामना कैसे करना है। अगर इस यात्रा में उसे लोगों का साथ मिले तो बेहतर होता है।
इसलिए वह दूसरे बच्चों के तानों का विरोध करने के बाद जब थक गई तो उसने अपने एक मददगार की ओर रुख किया। यह मददगार कोई और नहीं बल्कि उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी। उन्होंने खुद को पोस्टर लगाकर और सशक्त बनाया, जिसमें लिखा था, “दोस्त, एब्युजर नहीं,” ताकि स्कूल के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स उन्हें एक बार अच्छी तरह सुन सकें।
वे इस समस्या से इंकार नहीं कर सके, जो अब इतना स्पष्ट था। उनका जवाब साफ़ था: हम कुछ नहीं कर सकते।
यह कार्रवाई बेथनी के माता-पिता के लिए आखिरी उम्मीद थी। उन्होंने स्कूल से संपर्क किया, इस उम्मीद में कि स्कूल कर्मचारी उनकी बेटी का ख्याल रख सकें।
लेकिन वह पर्याप्त नहीं था। स्कूल के बयान इस बात की पुष्टि करते हैं। स्कूल के अनुसार, वे बेथनी और उसके दोस्त के विरोध के आखिरी दिन से पहले समस्या से अवगत थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इसे कैसे संभालना है।
उन्होंने कभी भी उस पीड़ा की कल्पना नहीं की जो स्कूल के परेशान करने वालों से बेथनी को हो रही थी।
इसलिए बेथनी ने जब ये देखा कि उसकी शिकायत को नजरअंदाज कर दिया गया है, तो शायद घर वापस जाते हुए उसने मन बना लिया था। उसे पता था कि उसके सौतेले पिता ने एक बंदूक रखी है। उसने अपना जीवन समाप्त करने के लिए इसका इस्तेमाल किया।
जीवन से भरी हुई उसकी टेढ़ी मुस्कुराहट ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का नतीजा थी। लेकिन स्कूल में मिली दहशत और धमकियाँ सर्जरी, केमो या रेडियोथेरेपी आदि से कहीं ज्यादा तकलीफ़देह थी।
स्कूल में मिली धमकियां और डर: एक बढ़ती समस्या
स्पेन के एनजीओ ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के आंकड़ों के मुताबिक 9.3% बच्चे इस समस्या से पीड़ित होने की बात कबूल करते हैं, जबकि 6.9% कहते हैं कि वे साइबर-थ्रेट का शिकार रहे हैं।
यह हमें हैरान करता है कि आखिर क्या हो रहा है।
ऐसी दुनिया में जहां बच्चों और किशोरों के पास सूचना पहुंच रही हैं, जो कि कुछ सालों पहले तक अकल्पनीय था, यह बात गौर करने वाली है कि कैसे स्कूल में डराए-धमकाने से पीड़ित बच्चों की स्थिति पहले जैसी ही है, उन्हें सामान्य नहीं माना जाता है।
शिक्षक बताते हैं कि उनके लिए इतने बड़े क्लास की वजह से बच्चों को ठीक तरह से प्रशिक्षित करना असंभव है। इसके साथ ही अब उन पर ब्यूरोक्रेटिक जिम्मेदारियां ज्यादा हैं जबकि बच्चों के परिवार मदद के लिए कम ही आते हैं।
शिक्षकों के हालात और वर्किंग ऑवर का मूल्यों का ठोस आधार देने की प्रक्रिया से कोई तालमेल नहीं है। दूसरी तरफ, शिक्षक अब यह महसूस नहीं करते कि मूल्यों की शिक्षा देना उनका काम है, और न ही उनके पास इसका अवसर है।
- Sharp, S., & Smith, P. K. (2002). School bullying: Insights and perspectives. Routledge.