मनोदैहिक बीमारी: भावनाएं और शरीर
भले ही आप स्वीकार करें या न करें, लेकिन अगर हम मन में बातों को पकड़कर रखते हैं तो इनके कारण हम बीमार पड़ सकते हैं। इन्हें साइकोसोमैटिक या मनोदैहिक बीमारी कहते हैं। इसलिए हमें अपनी भावनाओं की दुनिया पर अधिक ध्यान देना चाहिए। लेकिन हम रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसा नहीं करते हैं।
साइकोसोमैटिक या मनोदैहिक बीमारी के बारे में वर्षों से अनुसंधान किया गया है। इस विषय पर जर्नल ऑफ़ साइकोसोमैटिक रिसर्च जैसी पत्रिकाओं में रोचक बातें प्रकाशित की जाती हैं।
अमेरिकन साइकोसोमैटिक सोसाइटी जैसी संस्थाएं नियमित रूप से लेख प्रकाशित करती हैं। उनमें हमारे शरीर और भावनाओं के आपसी संबंध के बारे में नवीनतम आविष्कारों के बारे में बताया जाता है।
हमें अपने रोज के जीवन में इस मामले में कुछ बुनियादी तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए। हम आपको उनके बारे में जानने के लिए आमंत्रित करना चाहेंगे।
हम अक्सर जीवन भर स्ट्रेस और घबराहट जैसी नकारात्मक भावनाओं को अपने मन में दबाकर रखते हैं। इसका गंभीर दुष्प्रभाव हो सकता है।
बातों को मन में दबाये रखने से भावनात्मक अवरोध पैदा होता है और शरीर को क्षति पहुंचती है
कुछ समय पहले, एक रोचक और पॉपुलर TED टॉक हुआ था। उसमें एक मनोविज्ञानी ने अपने हाथ में पानी का एक ग्लास थाम रखा था।
दर्शकों ने सोचा कि वे किसी प्रसिद्ध सिद्धांत के बारे में बात करेंगी। वे उनसे पूछेंगी कि ग्लास आधा भरा है या आधा खाली है। लेकिन उनका मकसद कुछ और ही था।
उन्होंने दर्शकों से पूछा, “इस पानी के ग्लास का क्या वजन है?
दर्शकों ने अलग-अलग उत्तर दिए। उनमें से कुछ काफी हद तक सही थे। भावनात्मक मनोविज्ञान की विशेषज्ञ ने उसका गहरा अर्थ बताया।
- आप जितनी ज्यादा देर ग्लास को अपने हाथ में पकड़े रहेंगे आपको पानी उतना ज्यादा भारी लगेगा।
- पानी के ग्लास को 5 मिनट के लिए पकड़ने से कुछ फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन अगर आपको उसे 2 घंटे के लिए पकड़ना पड़े तो आपकी बांहें थक जाएंगी। आपको उसे नीचे रखना पड़ेगा।
- तनाव के साथ भी यही होता है। थोड़े समय में इस भावना का दुष्प्रभाव क्षणिक होता है। लेकिन अगर आपको इसे कई हफ्तों या महीनों तक झेलना पड़े तो आप इसके कारण बीमार पड़ सकते हैं।
मनोदैहिक बीमारी क्या होती है – Psychosomatic Illness in Hindi
- मान लीजिये आपके साथ काम करने वाला कोई व्यक्ति पीठ पीछे आपकी बात करता है। उसने सिर्फ एक दो बार यह नहीं किया है। बल्कि यह उसकी आदत बन गयी है। यह काफी समय से चल रहा है। इसके कारण कार्यस्थल का वातावरण नकारात्मक हो गया है।
- आप इस बात को अपने मन में कई महीनों तक रखेंगे। आपकी दमित भावनाओं का आपके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव होगा। यह कई महीनों के लिए ग्लास को अपने हाथ में ऊपर उठाकर पकड़े रहने के समान है।
जब मन के कारण तन में विकार होता है तो उसे मनोदैहिक बीमारी कहते हैं।
यह एक आम बात है। लोग यह भी मानते हैं कि कुछ शारीरिक बीमारियां तनाव और व्यग्रता जैसे मानसिक कारकों की वजह से और बिगड़ सकती हैं।
- उदाहरण के लिए, तनाव और व्यग्रता जैसी मनोदैहिक समस्याओं का सोरायसिस, एक्जिमा, पेट के अल्सर, उच्च रक्त चाप और अनेक प्रकार के ह्रदय के रोगों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि लोगों पर इसका असर अलग-अलग होता है। हर व्यक्ति का तनाव से निपटने का तरीका अलग होता है।
बातों को मन में दबाये रखने के शारीरिक प्रभाव
हमारे मन में कोई परेशानी होती है। हम उसके साथ ठीक से नहीं निपट पाते हैं। ऐसे में हमारा दिमाग उसे एक नकारात्मक भावना में परिवर्तित कर देता है। इसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। एड्रेनेलिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर को मुक्त करने के लिए नर्वस इम्पल्स की गतिविधि बढ़ जाती है।
खून में कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है। इस न्यूरोट्रांसमीटर और कोर्टिसोल के कारण निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं:
- इम्यून सिस्टम की कुछ कोशिकाओं की गतिविधि पर भावनात्मक रुकावट, तनाव और व्यग्रता का प्रभाव पड़ता है। इसलिए शरीर में बीमारी होने की अधिक संभावना होती है।
- क्षिप्रहृदयता
- चक्कर आना (जी मिचलाना)
- कंपन
- पसीना आना
- मुंह सूखना
- छाती में दर्द
- सिरदर्द
- पेट में दर्द
मनोदैहिक बीमारी का उपचार कैसे करते हैं – Psychosomatic Illnesses Treatment in Hindi
ज्यादातर लोग भावनात्मक प्रबंधन के बारे में नहीं जानते हैं क्योंकि उनको इसके बारे में प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। वास्तव में ये बातें स्कूलों में सिखाई जानी चाहिये। यहाँ कुछ बातें बताई गयी हैं जो हमारे लिए उपयोगी हो सकती हैं:
- स्वीकारात्मक बनें – जो बात आपको परेशान कर रही है उसके बारे में उसी समय बताएं, थोड़ी देर के बाद नहीं।
- बातों को मन में रखने से आप बीमार हो सकते हैं। यह बात हम सबको समझनी चाहिए। नकारात्मक भावनाएं आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। उनका ठीक से प्रबंधन करना चाहिए।
- प्रतिदिन भावनात्मक ईमानदारी का अभ्यास करें। दूसरों को सम्मान देते हुए स्वीकारात्मक व्यवहार करें। सहन करने की सीमाओं को निर्धारित करना आपका मौलिक अधिकार है। जो लोग “बस बहुत हो गया” कहते हैं वे स्वार्थी नहीं होते हैं।
- रोज अपने लिए एक या दो घंटे अलग रखें। अपने को प्राथमिकता दें। सैर के लिए जाएं। अपनी पसंदीदा रुचियों का आनंद लें या सिर्फ अपने विचारों के साथ कुछ समय अकेले रहें।
अगर आपको कोई भी तकलीफ हो जैसे पाचन बिगड़ गया हो, क्षिप्रहृदयता हो, या चक्कर आये तो अपने चिकित्सक से जरूर सलाह लें। इससे आपको इन लक्षणों का नियंत्रण करने में सहायता मिलेगी।