बच्चों के प्रवेश की अनुमति नहीं: बच्चों के प्रवेश पर संस्थाओं का निषेध
यह बहुत स्वाभाविक है कि दुनिया से संपर्क साधने और उसके बारे में जानने की कोशिश में जुटा एक खुशमिजाज़ बच्चा शोर मचाने वाला और चंचल स्वभाव वाला होगा। ऐसे में “बच्चों के प्रवेश की अनुमति नहीं”, यूरोप और अमेरिका में चला एक ऐसा अभियान है जिसने हाल ही में लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। भारत में भी कहीं-कहीं इस तरह का रवैया दिखाई पड़ रहा है। हालांकि यहाँ यह अभी सार्वजनिक मानसिकता का हिस्सा नहीं बना है फिर भी इस ओर से चिंतित होने के पर्याप्त कारण हैं। पहले हम समस्या के बारे में थोड़ा और जान लें।
यूरोप-अमेरिका में आजकल कई होटल “किड-फ्री” स्टे उपलब्ध करा रहें हैं। बार और रेस्तरां में भी ऐसा हो रहा है। इस अभियान ने पूरे ब्रिटेन और अमेरिका में अपनी जड़ें फैला ली हैं।
आज हम आपको इस जटिल विषय पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित करते हैं।
“बच्चों के प्रवेश की अनुमति नहीं”, अब सार्वजनिक जगहों पर भी लागू होने लगा है
हम प्रसिद्ध कैनेडियन गायिका-गीतकार साराह ब्लैकवुड के किस्से से शुरू करते हैं। पिछले साल उन्होंने अपने साथ हुई एक ऐसी घटना के बारे में बताया जिसने उन्हें बुरी तरह से प्रभावित किया है। अपनी इस कहानी के जरिये उन्हें उम्मीद है कि समाज इस अहम मसले पर गौर करेगा।
सात महीने की गर्भवती साराह अपने 23 माह के बच्चे के साथ सैन फ्रंस्सिस्को से वैंकोवर तक की हवाई यात्रा कर रहीं थीं। यह कोई पहली बार नहीं था जब वह हवाई यात्रा पर जा रहीं थीं। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।
प्लेन के उड़ने से पहले ही उनके बेटे ने रोना शुरू कर दिया। इसके थोड़ी ही देर बाद सभी यात्रियों ने उन्हें गुस्से में देखना शुरू कर दिया। उन्हें कई तरह की टिप्पणियाँ सुनाई देने लगीं। “कितनी ख़राब माँ है,” “ये अपने खुद के बच्चे का ध्यान नहीं रख सकती’- इस तरह की बातें उन्हें वाकई तकलीफ दे रही थी।
हद तो तब हुई जब फ्लाइट में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने उन्हें चेतावनी दे डाली। साराह से कहा गया कि बच्चे ने रोना बंद नहीं किया तो उन्हें प्लेन से उतरने के लिए कहा जाएगा।
युवा माँ लगभग शब्दहीन हो गई थी। उनके बच्चे का रोना केवल 10 मिनट ही चला। बाद में वह सो गया और प्लेन के लैंड करने तक सोता रहा था।
इस पूरी घटना से हमने क्या समझा? क्या लोग भूल गए हैं कि पैरेंट होने का क्या अर्थ होता है? क्या किसी को याद नहीं है कि बच्चा होना मतलब रोना, हंसना खेलना और उधम मचाना है।
किडफोबिया या यह सोच कि रोने वाल बच्चा ख़राब परवरिश का नतीजा है
यदि सार्वजनिक स्थलों पर कोई बच्चा चिल्लाए, रोए या दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचे तो अक्सर ऐसा मान लिया जाता है कि उसके पैरेंट “ठीक नहीं कर रहे हैं।”
- यह निंदा करने लायक बात है।
- हर बच्चा अपने आपमें अलग होता है। उसका दूसरों से व्यवहार करने का तरीका भी भिन्न होता है।
- कुछ बच्चे ज़्यादा व्याकुल स्वभाव के होते हैं और कुछ ज़्यादा शांत प्रवृत्ति के होते हैं।
- बच्चे रोते हैं। रोना तो उनके कुछ मांगने और संवाद कायम करने का एक माध्यम है।
इसलिए यदि यात्रा के दौरान, माता-पिता अपने अशांत बच्चे को शांत करने की कोशिश कर रहें हों तो हमें इस बात को लेकर ज़्यादा संवेदनशील और शिष्ट होना चाहिए।
किडफोबिया अमेरिका और ब्रिटेन में कई जगहों पर नाबालिगों के प्रवेश से इनकार करने का कारण बन रहा है। यह ‘बच्चों के प्रवेश की अनुमति नहीं’ की नीति का पालन करता है। हालांकि ऐसा करने से उनके माता-पिता के प्रवेश पर भी रोक लग जाती है। यह निश्चित रूप से चिंता की बात है।
जाहिर है, यात्रा कंपनियां मनचाही सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि कोई व्यक्ति बच्चे को देखे या सुने बिना छुट्टी पर जाना चाहता है तो उनकी पसंद हमारे सम्मान के काबिल है। फिर भी इसका मतलब यह नहीं कि बच्चों के प्रति अमानवीय रवैया अपनाया जाए।
खुशमिजाज बच्चा वह है, जो दौड़ता-भागता, चीखता-चिल्लाता है
बच्चे हर चीज को छूना, उनके साथ प्रयोग करना, उन्हें महसूस करना, और सीखना चाहते हैं … अगर हम उन्हें चुप रहने, धीरे-धीरे बोलने और अपनी सीट से बाहर न जाने के लिए मजबूर करते हैं, तो हम वास्तव में बच्चों को डरपोक बना रहे हैं। वे इतने भय में रहते हैं कि खुद दुनिया को एक्सप्लोर करने से डरते हैं।
- उनके रोने का जवाब दें, उन्हें खामोश कराने की कोशिश न करें। अगर कोई बच्चा कुछ छूना चाहता है तो हम स्वाभाविक रूप से उसे नुकसान करने से दूर रखना चाहते हैं। लेकिन एक बच्चे को अन्वेषण करने, कौतूहल से भरे रहने और अपने आसपास के वातावरण से वार्तालाप साधने की जरूरत होती है।
- बचपन स्वभाव से ही शोर-शराबे से भरा होता है। आपको किंडरगार्टन में वापस जाने की ज़रूरत नहीं है, यह जानने के लिए कि बच्चा होने का अर्थ क्या है।
- समय के साथ वे बड़े होंगे और हवाई जहाज में कैसे चुप रहना है, यह भी सीख जायेंगे।
हमें हर माता-पिता की कोशिशों और बच्चों के लिए उनकी फ़िक्र का आदर करना चाहिए। आखिर बच्चे ही तो हमारे इस प्यारे ग्रह का भविष्य हैं।
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