महत्त्वहीन बातों की ओर ध्यान न देना समझदारी है
विंस्टन चर्चिल ने कहा है, यदि कोई व्यक्ति अपनी ओर भौंकने वाले हर कुत्ते पर पत्थर फेंकने में समय गंवाता है तो वह अपने सौभाग्य को हासिल नहीं कर सकता। जिन बातों को बदला नहीं जा सकता कभी-कभी उनको नज़रअंदाज़ करना बुद्धिमानी होती है।
यह कैसे पता करें कि कौन सी बात महत्त्व रखती है और कौन सी नहीं? हर स्थिति अलग और निजी होती है। इसलिए हर आदमी को इसका फैसला खुद करना चाहिए।
आज हम आपको इस विषय पर सोचने के लिए आमंत्रित करना चाहते हैं। यह मुद्दा आपके व्यक्तिगत विकास से जुड़ा हुआ है। क्योंकि कुछ बातें आपको आगे बढ़ने से रोकती हैं। आइये देखें, कब उनका सामना करना चाहिए और कब उनको छोड़ देना चाहिए।
बुद्धिमानी से महत्त्वहीन बातों को नज़रअंदाज़ करने की कला
समझदारी से किसी बात की ओर ध्यान न देना एक कला है। यह ज्ञान और आपकी परिपक्वता की लक्षण है। लेकिन महत्त्वपूर्ण बातों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए ये बातें;
- हमें प्यार करने वाले लोगों को जो हमारे विकास में सहयोग देते हैं।
- अपने कुछ पहलुओं की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जैसे कि हमारी खूबियाँ जो हमें अपने लक्ष्य और सपनों के करीब ले जाती हैं।
- जो लोग हम पर निर्भर हैं उनकी जरूरतों को नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं है।
आइये कुछ युक्तियाँ देखें। ये हमें महत्त्वहीन बातों की ओर ध्यान ने देने की कला में दक्ष होने में मदद करेंगी।
हमारी सबसे बड़ी भूल है कि हम खुशी को “टालते” रहते हैं
साइकोलॉजी टुडे में एक बहुत अच्छा लेख था। उसमें बताया गया है, लोग खुशी के अवसर खो देते हैं। क्योंकि वे सोचते हैं कि “यह सही समय नहीं है।”
हम ऐसा क्यों सोचते हैं, कि “अभी सही समय नहीं है”?
- दूसरे लोगों की राय और आलोचनाएं इसका कारण हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, आप अपने विवाहित जीवन में खुश नहीं हैं। लेकिन आपके माता-पिता आपको इस रिश्ते को “कुछ और दिन निभाने” के लिए कहते हैं।
- कई काम हमलोग इसलिए करते हैं क्योंकि हम दूसरों को निराश नहीं करना चाहते हैं। हम यह सोचते हैं कि अगर हम कुछ देर और सब्र करेंगे तो खुशियाँ अपने आप आयेंगी।
खुशी को कभी नहीं टालना चाहिए। कभी-कभी हमारा दिल और दिमाग किसी बात को उचित नहीं समझता है। ऐसे समय पर विपरीत बातों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए। यह करने के लिए हिम्मत की जरुरत होती है।
आलोचनात्मक और तकलीफ देने वाली बातों की ओर ध्यान न दें
यह कहना आसान है कि आलोचना और दुःख देने वाले कमेंट्स को नजरअंदाज़ करना चाहिए। ये बातें हमारे आत्म-सम्मान को चोट पहुंचाती हैं। इसलिए यह करने के लिए काफी प्रयास करना पड़ता है।
- अपने प्रिय जनों के नेगेटिव कमेंट हमें सबसे ज्यादा दुःख देते हैं।
- हम सोचते हैं, “मैं अपने परिवार, पति-पत्नी, या जिगरी दोस्त की बात कैसे नज़रअंदाज़ कर सकता हूँ?”
- जो व्यक्ति आपको सच में प्यार करता है वह आपके व्यक्तिगत विकास में बाधा नहीं डालेगा, आपके स्वाभिमान को चोट नहीं पहुंचाएगा। वह अपमानित करने वाली भाषा का उपयोग नहीं करेगा।
ऐसी स्थिति में उनके नेगेटिव व्यवहार को नज़रअंदाज़ करना बुद्धिमानी है।
हमारे मन में हमारा सबसे बड़ा शत्रु छिपा होता है
कई बार हममें बचपन के कुछ अहसास और विश्वास होते हैं। ये हमें सीमित करते हैं। ये दूसरे लोगों की वजह से भी हमारे अंदर उत्पन्न होते हैं। हमको लगता है, “मैं यह नहीं जानता”, “मैं नहीं कर सकता” या “मुझसे नहीं होगा।”
- आत्मविश्वास की कमी से कई बार हममें पर्याप्त हिम्मत नहीं होती। हम दुःख देने वाले लोगों, परिस्थितियों और बातों की उपेक्षा नहीं कर पाते हैं।
- व्यक्तिगत असुरक्षा के कारण भी हम दुविधा में पड़ जाते हैं। आप डरते हैं कि “बुरा लगेगा”। इसलिए आप अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी सामाजिक कार्यक्रम का निमंत्रण स्वीकार कर लेते हैं।
ये छोटे-छोटे उदाहरण हैं। लेकिन ये इकट्ठे होकर हमारे जीवन का मुख्य हिस्सा बन जाते हैं। हम अपनी इच्छाओं को दूसरों की बातों के नीचे दबा देते हैं। यह सही नहीं है।
महत्त्वहीन बातों की ओर ध्यान न देना व्यक्तिगत हिम्मत प्रदर्शित करने की कला है। यह एक प्रकार का आत्मविश्वास है। खुश रहने के लिए हममें “नहीं” कहने की हिम्मत होनी चाहिए।
Dhiman, S. (2011). Personal Mastery and Authentic Leadership. Organizational Development Journal. https://doi.org/10.1023/A:1020950303998