ग्रैन्ड्पेरन्ट्स कभी नहीं मरते, हमारी यादों में जिंदा रहते हैं

हमारे ग्रैन्ड्पेरन्ट्स कभी नहीं मरते हैं। वे हमेशा के लिए हमारी यादों में रहते हैं। अपनी सबसे बड़ी विरासत जिसे वे पीछे छोड़ जाते हैं ,वे उनके अपने अनुभव और मान्यतायें हैं। उनके जाने के बाद भी ये अनुभव और  मान्यतायें जीवित रहती हैं।
ग्रैन्ड्पेरन्ट्स कभी नहीं मरते, हमारी यादों में जिंदा रहते हैं

आखिरी अपडेट: 21 मई, 2018

ग्रैन्ड्पेरन्ट्स से मिली परंपरा और विरासत चलती चली जाती है। इसके बीच वे चुपचाप हमारे दिलों में बने रहते हैं।

हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं जो सिर्फ भौतिक सुख देने वाली चीज़ों को महत्व देता है। लेकिन कुछ ऐसा भी है जो इन चीज़ों से भी ज़्यादा ख़ुशी देता हैं। जी हाँ! वह हमारे ग्रैन्ड्पेरन्ट्स से मिला प्यार है, उनके साथ बिताए ख़ास पल हैं।
हम जब भी अपने ग्रैन्ड्पेरन्ट्स की पसंद का कोई भी काम कर रहे होते हैं, तब हमारे जीवन में उनकी यादों की मिठास घुल जाती है। ये कुछ भी हो सकता है! जैसे उनकी बतायी रेसिपी से केक बनाना। उनके किसी घरेलु नुस्खे से ख़राब गले को ठीक करना। कुछ भी ऐसा जो उन्हें ख़ास बनाता था।

हम आपको आमंत्रित करते हैं, आइये इस विषय पर थोड़ी बात करें।

ग्रैन्ड्पेरन्ट्स को कैसे कहें अलविदा 

अपने ग्रैन्ड्पेरन्ट्स को बचपन में ही खो देना बहुत तकलीफदेह होता है। जब हम जवान हो चुके होते हैं, तब इस नुकसान को झेलना इतना कठिन नहीं होता है। उस समय इसका प्रभाव भी अलग होता है। बड़े होने पर हम ऐसे दुखों को आसानी से झेल ले जाते हैं। क्योंकि उस समय जीवन की इस दुखद सच्चाई का सामना करने के लिए हमारे पास कई साधन होते हैं।

अपने किसी एक ग्रैंडपैरेंट को अलविदा कहने में एक बच्चे की सहायता करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है ? आज हम आपको कई ऐसे तरीकों के बारे में बताएंगे।

ग्रैन्ड्पेरन्ट्स की यादें

जब छोटे बच्चे तकलीफ में हों

कोई भी बच्चा दर्द का सबसे ज़्यादा अनुभव तब करता है, जब वह उस व्यक्ति को खो दे जो उसे बहुत प्रिय था। इसे भुलाया नहीं जा सकता है।  बच्चा बाहर से देखने में ठीक लगता है। लेकिन अपने भीतर भावनाओं का सैलाब लिए घूमता रहता है। किसी को इसे समझा पाना उसके लिए बहुत मुश्किल होता है। हो सकता है, बातचीत या अपनी हरकतों से वह हमें कुछ संकेत दे जाए।

चाइल्ड स्पेशलिस्ट सलाह देते हैं कि बच्चों के साथ सच्चाई से पेश आना चाहिए। “दादाजी अब फरिश्तों के साथ है”, “दादीजी बस आराम कर रही हैं”, उन्हें ऐसी बातें कहने से बचना चाहिए।

  • बच्चे को भ्रमित करने वाले खोखले शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सिखाएं।
  • अपने बच्चे के सामने अपने दर्द को इस कारण से न छुपाएं कि वे आपको दुखी देख लेंगे।
  • अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से डरे नहीं। यदि बच्चों को रोने की जरूरत है तो उन्हें रोने दें।
  • बच्चों को आख़िरी बार अपने ग्रैन्ड्पेरन्ट्स को अलविदा कहने से दूर न रखें। उन्हें अंतिम संस्कार और शव यात्रा में शामिल होने दें।

हर बच्चे पर अपने ग्रैंडपैरेंट की मृत्यु का असर उसकी आयु के हिसाब से पड़ता है। लेकिन, हम ऐसा मान सकते हैं कि छह या सात साल की आयु के बाद एक बच्चा जीवन की इस कड़वी सच्चाई के बारे में पहले से जानता होगा।

ग्रैन्ड्पेरन्ट्स और छोटे बच्चे

ग्रैन्ड्पेरन्ट्स से मिली विरासत

  • हमारे लिए अपने ग्रैन्ड्पेरन्ट्स से मिली मान्यताएं ही असली विरासत हैं। यह हर सांसारिक सुख के ऊपर होती है।
  • बच्चे के लिए अपने ग्रैन्ड्पेरन्ट्स के साथ बिताए सभी पल सबसे ज़्यादा कीमती होते हैं।
  • ये रिश्ता हमारे अपने माता-पिता से बिल्कुल अलग होता है। यह बहुत ही प्रेम भरा और भावनात्मक होता है।
  • कहानियाँ से गुँथी एक टेपेस्ट्री, दोपहर के समय स्कूल से लेकर घर तक का पैदल रास्ता, और ऐसा ही बहुत कुछ हमेशा के लिए हमारे अन्दर रच-बस जाता है।
ग्रैन्ड्पेरन्ट्स से मिली विरासत

जिन्होंने हमारे लिए इतना कुछ किया, उन दादा-दादी को अलविदा कहना आसान नहीं है। लेकिन, बड़ा होने और समझदार होने का अर्थ ही है कि हमें इस दुखद अलगाव का सामना करना पड़ता है।

भले ही हमारे ग्रैन्ड्पेरेन्ट गुज़र चुके हों, लेकिन वो तो हमारे मन में बसते हैं। सच है! ग्रैन्ड्पेरन्ट्स मरते नहीं हैं, हमारे दिल में जिंदा रहते हैं।




यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।