केबिन फीवर क्यों होता है?

कुछ लोगों के लिए सामान्य स्थिति में वापस जाना, काम पर जाना और घर में बंद रहने के बाद बाहर जाना कठिन होगा। यहां हम आपको केबिन फीवर के बारे में बताएंगे।
केबिन फीवर क्यों होता है?

आखिरी अपडेट: 21 जनवरी, 2021

कोरोनोवायरस के कारण दुनिया के बड़े हिस्से में घरों में बंद रहने का सीधा नतीजा है केबिन फीवर। हालांकि कई सरकारें लोगों को वापस सड़कों पर जाने या काम करने कीमंजूरी दे रही हैं, फिर भी कुछ लोग इससे बहुत चिंतित हैं।

दुबारा बाहर जाने में होने वाली यह चिंता केबिन फीवर के रूप में जानी जाती है। दूसरे शब्दों में यह परिवेश के बदलने का भय है।

वायरस अभी भी फैल रहा है। इसलिए कई वयस्क लोग इससे पीड़ित होने और लक्षणों के विकसित होने से डरते हैं। हालाँकि बहुत से लोग अपने घरों में रहना पसंद नहीं करते हैं, बल्कि वे बहुत से लोगों के संपर्क में रहने के बजाय घर रहेंगे।

केबिन फीवर कोई मनोवैज्ञानिक रोग नहीं है

विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे लोग नर्वस ब्रेकडाउन, अवसाद के एपिसोड और नेगेटिव और असंगत विचारों का शिकार हो सकते हैं जो उन्हें तकलीफ होती है।

दरअसल यह सिंड्रोम उन लोगों में होता है जो लंबे समय से जेल में रहे हों, अस्पतालों में या यहां तक ​​कि किडनैप परके रखे गए हों। तमाम मामलों में वे जगह बदलते समय भय और एंग्जायटी का अनुभव करते हैं।

अंत में हमें यह जिक्र करना चाहिए कि हम मनोवैज्ञानिक समस्या की बात नहीं कर रहे हैं। अंदर इतना समय बिताने का साधारण नतीजा यह है कि नर्वस सिस्टम घर या उस स्थान की सुरक्षा का आदी हो जाता है जहां व्यक्ति बंद है।

केबिन फीवर क्यों होता है?

केबिन फीवर क्यों होता है?

20 वीं शताब्दी की शुरुआत में पहली बार केबिन फीवर के मामले दर्ज किए गए थे। दरअसल अमेरिका में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों ने गैर-आबादी वाले क्षेत्रों में केबिनों में या लाईटहाउस में आइसोलेशन में महीनों बिताए थे उनमें ये लक्षण देखा गया।

इसके कारण इन लक्षणों को यह ख़ास नाम मिला। इसका कारण यह है कि मस्तिष्क को एक ख़ास वातावरण की आदत हो जाती है, और वह सिर्फ इसी स्थिति में सहज रहने में सक्षम होता है।

इसलिए वह वातावरण उस व्यक्ति के लिए अहम् और अभिन्न बन जाता है जो बाहरी दुनिया सेकटा हो। हम सब जानते हैं, जो अज्ञात है वह डरावना या परेशान करने वाला हो सकता है।

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केबिन बुखार के लक्षण

वैसे तो हर इंसान में इसमें थोड़ा अलग हो सकता है, पर इसमें सबसे आम हैं सुस्ती और एंग्जायटी। इसके अलावा दूसरे लक्षण हैं:

  • सामान्य से ज्यादा थकान
  • अत्यधिक नींद (हाइपरसोमनिया)
  • ऊपरी और निचले अंगों में सुन्नता
  • एकाग्रता में कमी
  • याददाश्त की समस्या
  • नेगेटिव विचार
  • सुखद अहसास करने में कठिनाई
  • जोश में कमी
  • बाहर जाने से भय
  • एंग्जायटी
  • जरूरत से ज्यादा खाना
  • एंग्जायटी मैनेजमेंट की रणनीति के रूप में कुछ खाद्यों की क्रेविंग

इस स्थिति में क्या करें

इंसानी व्यवहार के वैज्ञानिक अर्थात् मनोवैज्ञानिक, जानते हैं कि इस स्थिति को हल करने के लिए क्या करना है: धीरे-धीरे अपने आपको डर से सामना कराना। दरअसल यह समय के साथ इस समस्या को हल करने का सबसे अच्छा विकल्प है।

यह सिंड्रोम उन दूसरी स्थितियों की तरह है जिनका साइकोलॉजिस्ट या साइकिएट्रिस्ट अध्ययन करते हैं। इलाज में सफलता ज्यादा मिलती है।

हालाँकि आपमें से जो लोग अपने दम पर इसे हल करने की दृढ़ता महसूस करते हैं, उनके लिए हम नीचे कुछ उपयोगी टिप्स साझा करेंगे।

  • धीरे-धीरे अपने आप को “नए सामान्य” में प्रकट करें: आपके द्वारा अनुभव की जाने वाली भावनाएं सामान्य हैं, और उनका मतलब यह नहीं है कि आपको मनोवैज्ञानिक विकार है। इस कारण से, आपको अपने घर को एक या कुछ नहीं के रूप में छोड़ना होगा। आपको इसे थोड़ा-थोड़ा करके देखना होगा। कुछ फीट बाहर जाएं, छोटी पैदल यात्रा करें और दूरियों को उत्तरोत्तर बढ़ाएं।
  • एक दिनचर्या निर्धारित करें: यहाँ, गतिविधियों और सोने की दिनचर्या स्थापित करना अच्छा है। आवश्यकता से अधिक सोना अच्छा नहीं है। इसके अलावा, आपको बैठने या बिछाने में बहुत समय नहीं लगाना चाहिए। एक अच्छा आहार, शारीरिक गतिविधि के साथ, सामान्य भलाई में योगदान कर सकता है।

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अंततः, जैसे-जैसे स्थिति अधिक से अधिक सामान्य होती जाती है, और सभी का फिर से नियमित संपर्क होता है, यह स्थिति निश्चित रूप से दूर हो जाएगी। तो, जो लोग इससे पीड़ित हैं, उन्हें यह देखने की जरूरत नहीं है, यह स्थायी नहीं है। हालांकि, अगर चिंता काफी गंभीर है, तो ऑनलाइन मनोवैज्ञानिक तक पहुंचने में मदद मिल सकती है।




यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।