डिप्रेशन के बारे में 4 ज़रूरी बातें जिन्हें हर महिला को जानना चाहिये

जैसा कि आप जानती हैं महिलाओं को अपने जीवन में कई हार्मोनल परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है जिसकी वजह से उन्हें अक्सर किसी न किसी तरह का डिप्रेशन हो जाता है। इसलिए हमें जरुर से इस आम समस्या के बारे में जितना ज्यादा हो सके उतना पता करना चाहिए।
डिप्रेशन के बारे में 4 ज़रूरी बातें जिन्हें हर महिला को जानना चाहिये

आखिरी अपडेट: 07 जून, 2018

रोजमर्रा के जीवन में जब हमलोग आपस में मिलते हैं तो आमतौर पर डिप्रेशन के बारे में सामान्य बातें करते हैं। हमारी बातें काफी मामूली होती हैं और कई बार हमें इस विषय के बारे में ज्यादा मालूम भी नहीं होता है।

इस लेख में हम डिप्रेशन के कुछ अहम तथ्यों के बारे में चर्चा करेंगे ताकि आप इनके आधार पर अपनी मानसिक सेहत का मूल्यांकन कर सकें।

एक बात यह है कि लोग अक्सर भूल जाते हैं कि डिप्रेशन कई तरह के होते हैं। असल में हर व्यक्ति इसे एक अलग और खास तरीके से अनुभव करता है।

डिप्रेशन का सामना करते समय या इसकी बात करते समय हमें यह याद रखना चाहिए कि हम एक गंभीर अवस्था के बारे में बात कर रहे हैं। यह कोई व्यक्तिगत सनक नहीं है। इसलिए हमें कभी नहीं सोचना चाहिए कि यह एक कमजोर व्यक्तित्व या व्यक्तिगत संपूर्णता या हिम्मत के अभाव का लक्षण है।

डिप्रेशन एक ऐसा विकार है जिसका इलाज एक प्रोफेशनल व्यक्ति को करना चाहिए, खासतौर से जो मरीज को अच्छी तरह से जानता हो और जिस पर बीमार व्यक्ति का विश्वास हो। यह सबसे अच्छा तरीका है जिससे मरीज को बहिष्कृत या अकेलापन महसूस नहीं होगा और न ही ऐसा लगेगा कि उसको गलत समझा जा रहा है।

शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को अक्सर डिप्रेशन होता है लेकिन वे इसको अलग-अलग तरह से अनुभव करते हैं।

आमतौर पर पुरूष सहायता लेने में ज्यादा आनाकानी करते हैं। असल में भिन्न प्रकार के सामाजिक मानकों और दबावों के कारण वे ऐसा करते हैं।

आखिर अपने मन की सामान्य अंदरूनी बेचैनी, उदासीनता या जिन कामों को करने में पहले मज़ा आता था उनमें अब सुख न पाने को अलग से पहचानना हमेशा आसान नहीं होता है। ये सब डिप्रेशन के आम लक्षण हैं। कभी-कभी बिना वजह उर्जा की कमी होने जैसी साधारण बात भी इसका एकदम साफ संकेत हो सकती है।

जब अवसाद का दौर शुरू होता है तो ज्यादातर पुरूष उसकी उपेक्षा करते हैं। वे सोचते हैं कि यह सिर्फ कुछ दिनों की परेशानी है और समय के साथ ठीक हो जायेगी।

दूसरी ओर महिलाओं के पास अपनी भावनाओं का प्रबंधन करने और उनके साथ निपटने के ज्यादा उपाय होते हैं। उनके लिए ऐसा करना संभव होता है क्योंकि उनको समाज में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की ज्यादा छूट होती है।

इसके बावजूद, आमतौर पर महिलाओं में डिप्रेशन होने की ज्यादा प्रवृत्ति होती है।

आइये इस पहलू पर विस्तार से गौर करें। यहाँ हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि डिप्रेशन कैसे अलग-अलग तरह से खासतौर से महिलाओं को प्रभावित करता है।

1. एक जेनेटिक गुण के रूप में डिप्रेशन: एक खतरे का कारक, निर्धारक नहीं

यूनाइटेड स्टेट्स की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के डॉक्टर फुमिको होएफ्ट का कहना है कि मातायें अपनी बेटियों को डिप्रेशन की एक प्रकार की जेनेटिक प्रवृत्ति प्रदान कर सकती हैं।

विशेष रूप से दिमाग की समान बनावट पीढ़ियों से एक दूसरे में ट्रांसफर होती है। दिमाग का कोर्टिको-लिम्बिक सिस्टम, जो हमारी स्ट्रेस से निपटने की प्रतिक्रिया का प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार है, आतंरिक संयोजकों की समान संरचना और पैटर्न शेयर करता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि अगर एक महिला को डिप्रेशन है या पहले कभी हुआ था तो उसकी बेटी या बेटियों को भी अपने जीवन में कभी न कभी उसी स्थिति से गुजरना पड़ेगा।

वैज्ञानिक अध्ययन से इतना ज़रूर पता चलता है कि ऐसे में डिप्रेशन होने का ज्यादा खतरा होता है या कम से कम ज्यादा संभावना होती है।

लेकिन इस जेनेटिक खतरे के साथ दूसरी बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए जिनकी ज्यादा अहमियत है। जैसे कि व्यक्ति का सामाजिक वातावरण और वह अपने जीवन में होने वाले अच्छे और बुरे अनुभवों के साथ कैसे निपटता है।

2. डिप्रेशन से दर्द होता है: वह दर्द असली होता है

हमें बिना वजह सिरदर्द क्यों होता है?

यह बड़े दुःख की बात है कि आमतौर पर जब एक महिला डिप्रेशन से पीड़ित होती है तो उसके साथ के लोग और समाज उसे सिर्फ उदास होने का नाम दे देते हैं।

उदास होने की भावना डिप्रेशन का एक सच्चा हिस्सा हो सकती है। लेकिन इस बात से अवगत होना ज़रूरी है कि अवसाद के दौर में अनुभव होने वाली विभिन्न भावनाओं में इस भावनात्मक स्थिति का सिर्फ एक छोटा स्थान है।

दरअसल कई बार तो ऐसा होता है कि अवसादग्रस्त व्यक्ति उदास भी नहीं होता। सच्चाई तो यह है कि उसे गुस्सा आ सकता है, वह अपसेट हो सकती है, हो सकता है कि उसे अपनी भावनाओं पर काबू न रहे – इस तरह लिस्ट बढ़ती जाती है।

वास्तव में महिलाओं में डिप्रेशन का सबसे सामान्य लक्षण उदासी नहीं है। अक्सर कोई भी भावना इसका लक्षण नहीं होती है बल्कि कोई शारीरिक लक्षण होता है।

इसके कुछ खास लक्षण हैं:

  • नींद नहीं आना
  • बेहद थकान
  • मांसपेशियों में दर्द
  • सिरदर्द
  • शारीरिक दर्द की ओर ज्यादा संवेदनशीलता
  • पाचन की समस्यायें
  • कुछ हद तक याददाश्त की कमी
  • एकदम से वजन बढ़ना या घटना

3. कुछ तरह के डिप्रेशन सिर्फ महिलाओं को होते हैं

इसके अलावा कुछ ऐसे डिप्रेशन होते है जिनको सिर्फ महिलायें अनुभव करती हैं। जैसा कि हमने शुरू में बताया, हर महिला भी इन खास तरह के डिप्रेशन को विशिष्ट तरीके से अनुभव करती है।

यहाँ पर कुछ प्रकार के डिप्रेशन बताये गये हैं जो सिर्फ महिलाओं को होते हैं:

प्रीमेंसट्रूअल डाइस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी)

ज्यादातर लोग “प्रीमेंस्चुरल सिंड्रोम” के बारे में जानते हैं। इसमें मासिक धर्म से कुछ दिन पहले मूड में खास बदलाव और  चिड़चिड़ापन होता है।

  • लेकिन प्रीमेंसट्रूअल सिंड्रोम का और भी गंभीर रूप होता है जिसे प्रीमेंसट्रूअल डाइस्फोरिक डिसऑर्डर (पीएमडीडी) कहते हैं।
  • दुर्भाग्यवश इसमें आत्मघाती विचार और जोड़ों और मांसपेशियों में तीव्र दर्द होता है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन

पोस्टपार्टम डिप्रेशन को जो बच्चे के जन्म के बाद होता है, कभी-कभी “बेबी ब्लूज़” भी कहते हैं। यह महिलाओं के बीच एक टैबू वाला विषय है। लेकिन यह बहुत आम है।

मातृत्व के साथ गहरी खुशी और व्यक्तिगत संतोष जुड़ा हुआ है। इसलिए पोस्टपार्टम डिप्रेशन अभी भी कलंकित है जिसकी वजह से इस डिप्रेशन के मरीज को और भी ज्यादा महसूस होता है कि उसको गलत समझा जा रहा है या अस्वीकार किया जा रहा है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन में खासतौर से एंग्जायटी और बेहद थकान होती है। इसके साथ में मातृत्व की नयी भूमिका और उसकी ढेर सारी जिम्मेदारियों को न निभा पाने की कमी महसूस होती है

पेरीमीनोपॉज़ में डिप्रेशन

एक महिला के जीवन में पेरीमीनोपॉज़ या मीनोपॉज़ की ओर परिवर्तन, एक सामान्य अवस्था है। लेकिन कभी-कभार यह काफी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।

इसके दौरान मनोदशा की अस्थिरता, गर्मी लगना, चिड़चिड़ापन के दौर, एंग्जायटी और यह भावना कि अब हम किसी चीज का मज़ा नहीं ले पा रहे हैं, का होना एक सामान्य बात है।

इसलिए मीनोपॉज़ परिवर्तन के समय दूसरे तरह के डिप्रेशन होने की संभावना बढ़ जाती है।

4. डिप्रेशन में निजी और सामाजिक वातावरण की भूमिका

चाहें वह पुरूष हो या महिला, सबको एक जोरदार सहारा देने  वाले लोगों के नेटवर्क की ज़रूरत होती है। हम सबको डिप्रेशन के लक्षणों का प्रबंधन करने और उनसे निपटने के लिए अपने आसपास के लोगों से सहानुभूति की ज़रूरत होती है। लेकिन कई महिलाओं को बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है, जब वे डिप्रेशन से पीड़ित होती है। उस समय बहुत सारे लोग उनके ऊपर निर्भर कर रहे होते हैं।

महिलाओं की जिम्मेदारियां

महिलाओं की बहुत ज्यादा संख्या दूसरों की देखभाल करने की भूमिका निभाती है। अक्सर वे अपने रिश्तेदारों को सहारा देती हैं जो उनके ऊपर आर्थिक रूप से निर्भर करते हैं या किसी बीमारी से पीड़ित होते हैं।

बाकी महिलाओं के ऊपर अपने बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी होती है और वे अपने को परिवार को संगठित रखने का माध्यम समझती हैं। उन्हें एक आम डर रहता है कि अगर वे असफल होंगी तो परिवार के सदस्य अलग हो जायेंगे और वे जो सामंजस्य स्थापित करनी की कोशिश कर रही हैं वह खो जायेगा।

इस तरह की व्यक्तिगत परिस्थितियों में महिलाओं को डिप्रेशन के समय जिस सहारे की ज़रूरत होती है वह मिलना मुश्किल हो जाता है। कई बार उनके पास इस काम के लिए भी पर्याप्त समय नहीं होता है कि वे अपनी समस्या को जाने और इलाज कराएं, चाहें थेरेपी के लिए जाकर या खुद अपने आतंरिक संघर्ष से निपटकर।

इसलिए यह बहुत सामान्य बात है, जब महिलायें अपने से कहती हैं कि उनके लिए “दवाई की गोलियां ही काफी हैं”।

लेकिन हम बात बता दें कि शारीरिक या भावनात्मक दर्द का प्रबंधन करने के लिए चाहें आप कोई भी दवाई लें, वह कभी भी अकेले पर्याप्त नहीं होगी। हमें दूसरी युक्तियों पर भी विचार करना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि हमारे पास एक सेंसिटिव और नजदीकी सहारा देने वाले लोगों का नेटवर्क हो।

महिलाओं में डिप्रेशन, जैसा कि हमने देखा, कई खास लक्षणों के साथ आता है जिनकी ओर हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में ध्यान देना चाहिए। डिप्रेशन के लक्षणों से निपटने या किसी अवसादग्रस्त व्यक्ति को सहायता, आराम और सहारा देने के लिए ऐसा करना बहुत जरूरी है।




यह पाठ केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया जाता है और किसी पेशेवर के साथ परामर्श की जगह नहीं लेता है। संदेह होने पर, अपने विशेषज्ञ से परामर्श करें।